Sat. Apr 19th, 2025

राजस्थान री संस्कृति, प्रकृति, जीवनमूल्य, परंपरा अर स्वाभिमानी संस्कारां री अंवेर करण वाळो अंजसजोग छापो ‘रूड़ौ राजस्थान’ तर-तर आपरौ रूप निखारतो, सरूप सँवारतो, समै री माँग मुजब सामग्री परोटतो पाठकां री चाहत रो केंद्र बणतो जा रैयो है। इण ओपतै अर उल्लेखणजोग छापै रा सुधी-संपादक भाई श्री सुखदेव राव मायड़भाषा राजस्थानी अर मायड़भोम राजस्थान रै गौरवमय अतीत रा व्हाला विरोळकार है। इण रूड़ौ राजस्थान छापै रै दिसंबर, 2019 अंक में आपरै इण नाचीज़ मित्र रो एक आलेख छपियो है, इण सारू भाई सुखदेव जी राव रौ आभार अर आप सब मित्रां सूं अपेक्षा कै आज रै समै परवाण ‘संस्कारां रै संकट सूं जूझता रिश्ता’ री साच सोधण सारू ओ आलेख ध्यान सूं पढ़ण री मेहरवानी करावजो।

-संस्कारां रै संकट सूं जूझता रिश्ता-

अेकर अेक दाखां सूं भरेड़ै बाग में गधेड़ा बड़ग्या। आपरै जलमजात सभाव रै मुजब गधा उण बाग में मनमरजी सूं दाख खावै अर खुला विचरण करै। बाग रै अेक छेड़ै आम गेलो हो। कवि समन किणी काम सूं गेलै-गेलै आगे जावै हो। कवि री निजर दाख रै बाग में चरता बिचूरता गधां पर पड़ी तो उणनैं पीड़ा हुई अर कवि हाथ में लाठी लेय गधां नैं बाग सूं बारै काढ्या। गेलै चालतै दूजै मिनख पूछ्यो ‘कविराज! ओ बाग आपरो है काईं’? समन बोल्यो ना भाई। ना तो बाग म्हारो अर ना ही गधा म्हारा पण दाख जियांकली चीज नैं गधा चरै तो आ अजोगती बात है जकी म्हारै सूं सहण नीं हुई, इण कारण म्हैं तो आं गधां रै लारै लट्ठ लेय’र भाज्यो अर आं नैं बाग सूं बारै घेर्या है-

समन पराए बाग में दाख तोड़, खर खाय।
अपना कुछ बिगरे नहीं, (पर) असही सही न जाय।।

जिण भांत समन कवि री वेदना ही, उणी भांत री वेदना सूं लारलै दिनां म्हारो पालो पड़्यो। शेखवाटी रै अेक गाँव री घटना है। चौधरी री भरी-पूरी गवाड़ी। चार बेटा। च्यारूं परणायोड़ा। पोता-पोत्यां सूं बाखळ भरेड़ी। गायां-भैस्यां, रेवड़, खेती-बाड़ी हर दीठ सूं सात थोक। रामजी राजी। गांव में चौधरी री चोखी पूछ। भाई-भाई घणा राजी-बाजी पण देराण्यां-जेठाण्यां री मूंछ्यां अड़णी सरू हुई। बात चौधरी कनैं पूगी तो बण कोई नैं समझाई तो कोई धमकाई अर कोई घणी बीफरी उणनैं पंपोळ’र ठंडा छांटा देय घर नैं बंध्यो राखण री जुगत करी। बडेरां साची कैयी है रोग, अगनी, विष अर राड़ नैं तो बधण सूं पैली ही बुझावणी ठीक रैवै, बध्यां पछै तो बिगाड़ ई बिगाड़ हुवै। उणनैं रोकणो बस रो सौदो नीं रैवै। राजिया नैं संबोधित करतां कवि कृपारामजी खिड़िया लिख्यो-

रोग अगन विष राड़, ज्यांरा धुर कीजे जतन।
बधियां पछै बिगाड़, रोक्यो रुकै न राजिया।।

बापड़ो चौधरी कदै कोई सी बीनणी नैं समझावै तो कदै कोई सी न पण समझणी चावै जद समझ असर करै। सूत्यां नैं जगायो जा सकै पण जागतां थकां सोवण रो सांग करै, वांनैं कियां जगाईजै। बीनण्यां हरेक बात में कुतरकां पर उतरगी। बीनण्यां रै सागै-सागै बेटा-पोतां में ई ओ रोग जड़ां घालण लागग्यो। अेक दिन तो हद ई होगी। छोटकड़ी बीनणी रो नानड़ियो बाखळ में खेलै हो। घर रै सामनै आयोड़ै रेत-आँगणै नैं बाखळ कैया करै। शेखावाटी वाळा इणनैं गवाड़ी कैवै। नानड़ियै नैं रेत खावण री लत लागगी। गवाड़ी में रेत खावतै पोतै नैं देख्यो तो दादै उण पर रोळा कर्या। थोड़ो फटकार्यो। इतरै उण टाबर री मा आयगी तो दादै उणनैं ई डांटतां जोर सूं कैयो कै ‘जे आज बाद में ओ छोरो गवाड़ी में रेत खावतो लाधग्यो तो ठीक कानी रैवैली’। बण सोच्यो छोरो आपरी मा रै समझायां समझ जावैलो अर माटी खावणी छोड देवलो पण छोरै री मा रो जवाब सुण्यो तो बूढ़ियो काईं आस-पड़ोस वाळा ई चितबगना होग्या। आपरै सुसरै सूं बीनणी बोली ‘‘क्यूं ईं गवाड़ी में म्हारो सीर कोनी के? म्हारै छोरै नैं रेत खावण सूं रोकणियो कुण है? म्हारै पांती री है जकी खास्यां।’’

बूढ़ियै रा कान खुस’र हाथां में आयग्या। सुणणियां सूना सा हुग्या। जद म्हारै अेक मित्र म्हनैं बातां-बातां में आ बताई तो म्हारै काळजै में डबको सो उठ्यो। हे सांवरिया! के टेम आई है। संस्कारां री नासती रै इण बगत में सबसूं बेसी मार पवित्र रिश्तां पर पड़ी है। दादै-पोतै अर सुसरै-बहू रै पावन रिश्तां में इण भांत रो बंतळ हरेक सजग मिनख नैं सोचण पर मजबूर करै। बहू रो जको पड़ूतर आपरै सुसरै नैं हो, उणरी विरोळ करां तो ब्होत सारा कारण अेकै सागै सामी आवै अर वां में सबसू मोटो कारण है संस्कारां रो संकट।

स्वारथ रो आंधळघोटो खेलती दुनियां इतरी आप मतलबी हुगी कै कोई री कीं सुणणी ई नीं चावै। बीनणी रै मन में आपरै सुसरै अर सासरै रै परिवार रै प्रति आ धारण घर कर चुकी ही कै अै लोग उणरै हित री कोई बात कर ई नीं सकै। ओ ई कारण हो कै आपरै टाबर री भलाई वाळी बात नैं ई सावळसर नीं सुणी। उणरो ओ जवाब सुसरै रै प्रति श्रद्धा अर विश्वास री कमी रो परिणाम हो। आ घटना तो बानगी रूप है। हर घर अर हर गांव में इयांकली घटनावां रा ढिगला लागेड़ा है। समन रै सामी तो अेक बाग अर दो-चार गधेड़ा हा, वांनैं बारै काढ़’र आपरो फरज निभा दियो पण आज रा समन कवियां रै सामी संस्कारां री टूटती सीमावां मोटी चुनौती है। खुदोखुद में सिमटतै मानखै नैं आ कुण समझावै कै मूळो पानां सूं ई फूठरो लागै।

आज परिवारां में बूढ़ा-बडेरां रै प्रति घटतो आदरभाव आपणै जाणमूळियै रो कारण बणेला। आज री मोट्यार पीढ़ी में घटता संस्कार, बधता अपराध अर धीरज धरम री उडती धज्जियां रो मोटो कारण आज रा अेकल परिवार अर वांरो रहण-सहण है। अखबारां री सूर्खियां देखो भलां सामान्य खबरां। हर ठौड़ मौत रो तांडव निगै आवै। अगमद्रष्टा कवि मनुज देपावत पाँच दसक पैली लिख्यो हो कै ‘‘रे देख मिनख मुरझाय रैयो, मरणां सूं मुस्किल है जीणो’’। आज आ बात साव साची हुगी। टीवी, अखबार अर सोशल मीडिया हर ठौड़ जिंदगी सूं हारेड़ा लोगां री मौत सूं मुलाकातां रो मंजर है। चौरासी लाख जूणियां में भटकतां-भटकतां भला करमां सूं मिल्योड़ै मिनखा जमारै नैं अळीसाट हारण री घटनावां संवेदनशील मिनख रै विचलित करै। आपरा समूचा अरमान, परिवार, घर, मित्र, आस-पड़ोस सबसूं नातो तोड़’र मौत नैं गळै लगावण रो निर्णय वो ई मिनख करै, जिणरै जींवतो रैवण रा सगळा मारग बंद हुज्यावै। पण आज कालै जकी आत्महत्या री घटनावां हुवै, वां रै कारणां री खोज करै अर साच सूं रूबरू हुवै तो अेकलो बैठ्यो आदमी आपरा खुद रा बाळ खोसण लाग ज्यावै। कोई बात न बात रो नाम। दो चार दाखला देखो-

काॅलेज में पढण वाळी बेटी मोड़ी आई तो उणरी माँ कारण जाणणो चायो, संतोषजनक कारण नीं होवण सूं माँ थोड़ा रोळा कर दिया, बेटी सूं आ बात सहण नीं हुई अर वा आपरै कमरै में जाय’र फाँसी खायगी।

गांव में दो-चार बूढिया चौपाळ में बैठा हा। चिलम भरण रो विचार कियो, सोच्यो चिलम अर तंबाकू तो कनैं है पण बासतै कोनी जगायोड़ो। खी’रो कुण ल्यावै। इतरै तो 8-10 बरसां रो टाबर आवतो दीख्यो। अेक बूढियै हेलो कर्यो अर कैयो- ‘बेटा! जा थारै घर सूं थोड़ो बासतै ल्या, चिलम पर खी’रो चाढणो है। टाबर घर में सुणै ज्यूं ई कैवै। टाबर हर देखी न हिल्ल। तुरंत उत्तर ठरकायो- ’’बाबोसा! म्हारै घरै तो बासते म्हां ई जोगो है।’’ रीस बळतै डोकरै रोळा कर्या अर बोल्यो जाओ तो थे तो बळो सगळा जको गेल छूटै। पण टाबर रो उत्तर आपां नैं सोचण पर मजबूर करै कै छेवट इणरो कारण काईं?

सातवीं आठवीं जमात में पढण वाळो अेक टाबर स्कूल रै जाजरू में आपरै अेक साथी नैं चाकू सूं वार कर’र मार देवै अर पुलिस री पूछताछ में मारण रो कारण बतावै तो सुण’र पगां नीचै सूं धरती खिसक जावै। 10-12 बरसां रो बो टोबर आपरै साथी नैं इण कारण मार देवै क्यूंकै वो जिण छोरी सूं प्यार करतो, वा छोरी उणरै उण साथी सूं भी बात करती अर आ बात उणनैं सहण नीं हुई।

अेक अमीर घर रै बेटै रो वां सूं ई अमीर घर री बेटी साथै धूमधाम सूूं ब्याव हुयो। दोनां कानी रा घर वाळा राजी बाजी। समाज में च्यारां कानीं इण ब्याव री ई चरचा। दिल खोल’र खरचो हुयो। बींद-बीनणी ब्याव रै दूजै दिन ई हनीमून पर स्विटजरलैंड गया। 20 दिनां बाद पाछो आवण री टिगटां बणाई। तीजै दिन पाछा आयग्या। बिना किणी सूचना अर बातचीत रै इयां बावड़ण रो कारण पूछ्यो तो दोनूं चुपचाप ऊभा रैयग्या। बींदणी आपरै पीहर वाळां नैं फोन कर’र बुला लिया। बिना कोई बातचीत कर्यां ई आपरो सामान बांध’र बीनणी ब्हीर हुगी। समूची रामाण रो कारण ठाह पड़्यो तो कदे हंसी आई तो कदे जोर-जोर सूं रोवण रो मन बण्यो। बठै विदेश में बै दोनूं पैलै दिन गया अर होटल में रुकग्या, आपरा आराम सूं रैया। दूजै दिन घूमण नैं बारै गयो तो बठै उण लड़की री पोसाख अर मेहंदी आद नैं देख’र कोई सैलानी जोड़ो उणसूं बातां करण लागग्यो। लड़कै नैं उण जोड़ै री बातां में कोई रुचि कोनी ही इण कारण वो थोड़ी दूर जाय’र खड़ो हुग्यो अर आपरी घरनार नैं कैयो-‘आज्या चालां।’ वा बोली बस आई। इयां करतां कोई दस-बीस मिनट रो टेम लागग्यो अर आ बात लड़कै नैं आपरी तौहीन लागी। इण बात नैं ले’र दोनां रै बहस छिड़गी अर छिड़ी के दोनां नैं बिछुड़ण पर मजबूर कर दिया। अेक ‘स्टुपिड’ कैयो तो दूजोड़ै ब्लाडी कैय दियो अर इयां कैय’र लाडो-लाडी अहम री उळटी आडी में फंसग्या। बस्यां पैली घर ऊजड़ग्यो।

इयांकला दाखला आपणै च्यारूंमेर इतरा है, जकां नैं लिखण बैठां तो द्रोपदी री साड़ी दाईं वांरो विस्तार अपरम्पार हुवै। आं सब घटनावां रै लारै ब्होत सा कारण है, पण सबसूं मोटो कारण संस्कारां रो अभाव है। टाबर आपरै माईतां नैं अर आसंग-पासंग रा लोगां नैं देख’र सीखै। लोक में मोकळी कैबतां इण बात री साख भरती निगै आवै। ‘‘घर में बोलै डोकरा, बारै बोलै छोकरा’’ ‘‘बेटी देखै बाप घर अर करै आप घर’’ ‘‘घड़ै जिसी ठीकरी अर माँ जिसी डीकरी’’ ‘‘माँ पर पूत पिता पर घोड़ो, घणो नहीं तो थोड़़ो थोड़़ो’’ ‘‘बडी जेठाणीर काढी कार, सारो कडूंबो अेकै लार’’। अै सब कैबतां रंग-रूप अर डीलडोळ री ई बात नीं करै वरन संस्कारां री साख भी भरै। आज छोटी-छोटी बातां सूं बेचैन होय आपरी जीवण जेवड़ी नैं खुदोखुद अगन झाळ में बाळ’र राख करण सारू ऊँतावळी पीढी रै आचरण, व्यवहार अर सभाव री सिलसिलेवार विरोळ करां तो वांरै इण भांत रै कायराना अर अजोकतै व्यवहार रा कई सारा कारण सामी आवै-

आज अेकल परिवारां में पति-पत्नी दोनूं काम काजी है या पति कामकाजी अर पत्नी गृहणी है। घर में अेक टाबर हुवै। तीन रै अलावा चौथो कोई प्राणी हुवै तो का तो कुत्तो अर का कोई पालतू तोतो। पिता उण टाबर रै सूत्यां थकां काम पर जावै अर सोयां पछै पाछो आवै। माँ अेकली पूरै घर रो काम करै तो टाबर नैं खेलण सारू कोई न कोई रामतियो देवै। आज रो रामतियो मोबाइल। पूरै दिन मोबाइल में आंख्यां फोड़ै। छुट्टी छपाटी नैं बाप घरै रैवै उण बगत भी मोकळा काम उणरै हाथ में रैवै। माँ-बाप दोनूं आप-आपरै काम में व्यस्त रैवण रै कारण टाबर नैं उणरी पसंद रो खेलणियो या वो जियां चावै जियां दे देवै अर आपरी ड्यूटी पूरी करै। मासूम टाबर आपरै माता-पिता रै आचरण, व्यवहार अर बातचीत सूं सीखै। वो देखै कै वै दोनूं आप-आपरी जिद्द पर अड़ेड़ा रैवै तो टाबर ई आपरी जिद्द मनावण में कामयाब हुवै। इयां करतां वो टाबर केवल अर केवल स्वयं ताणी सिमट’र रैय जावै। अर आगै चाल’र जद उणनैं आपरी जिद्द नीं चालती दीखै तो वो इणनैं आपरी तौहीन मानै अर आपरी ईहलीला खतम करण सारू तैयार हो जावै। कारण भी साफ है क्यूंकै बण आपरी जिंदगी में कदैई कोई नैं माफी मांगतां या माफ करता देख्यो ई कोनी। उणनैं इण बात रो ई अहसास नीं करायो गयो कै आ बात ठीक है अर आ बात ठीक कोनी।

आज दो टाबरां रै बीच सात-आठ साल रो फासलो आम बात है। घर में जे दो टाबर हुवै तो ई वै दोनूं साईना-दाईना कोनी हुवै। इण कारण दोनां रा खेल न्यारा-न्यारा हुवै। इण काम में ई मनोवैज्ञानिक रूप सूं दोनूं टाबरां रै विकास में जको माहौल मिलणो चाईजै वो नीं मिल पावै।

माईतां सूं तो सगळा ई छांटा लेवण लागग्या। ज्यादातर तो बेटा आप-आपरै खावण-कमावण री ठौड़ है अर माईत बापड़ा आपरै जूनै रैवास पर कबाड़ में जुगाड़ कर’र काम चलावै। खुदा न खासता जे कोई लोक-लाज सूं या कोई और कारण सूं माईतां नैं सागै ले आवै का गांव में माईतां सागै रैवण नैं राजी हुवै। वां घरां में भी माईतां नैं बोझ दाईं मान’र वांरी जिंदगी नैं इतरी मायूस बणा देवै कै वै आपरै पोता-पोतियां साथै भी हंस’र बात करतां पचास बार सोचै कै बीनणी नाराज नीं हो जावै। अठै प्रसंगवश अेक बात और कैवणी समीचीन लागै कै आज हरेक जवान बेटो हुवो भलां बहू अकड़ीजता सा बोलै कै ‘बूढिया म्हारै सागै रैवै का बूढियां नैं तो मैं ई राखूं’’। म्हारो कैवणो ओ है कै सबद रो उच्चारण आपणै आचरण रो आधार हुवै। सबद रै उच्चारण सूं अहंकार अर विनम्रता रो प्रगटाव हुवै। वाक्य में अेक सबद बदळण सूं का सबद रो क्रम बदळ देवण सूं ई भाव बदळ जावै, इण वास्तै बोलती टेम जे थोड़ो सो विचार कर लेवां तो सबद सूं सोच अर सोच सूं संस्कार पनपतां देर कोनी लागै। दो वाक्य देखो-

(1) माँ-पिताजी म्हारै सागै रैवै।
(2) म्हे माँ-पिताजी सागै रैवां।

दोनां वाक्यां रो मोटा-मोटी मतलब अेक ई है पण थोड़ो सो बोलण रो बदळाव करतां ई भावां रो जको फरक सामी आवै वो उल्लेखणजोग है। पैलड़ै वाक्य में बेटो या बहू कैवै कै बूढियां वांरै सागै रैवै। इण वाक्य में बोलणियै रो अहंकार झलकै, माईतां री मजबूरी झलकै। इयां लागै जाणै बेटो-बहू दया कर’र वांनैं आपरी सरण में राख राख्या है। दूजोड़ै वाक्य में बोलणियां री विनम्रता झलकै, माईतां रै प्रति वांरो सम्मान भाव प्रगट हुवै, सुणै उणरो ई जीवसौरो हुवै कै कितरा संस्कारी मिनख है। ओ वाक्य वक्ता में कर्ता भाव रो अहंकार आवण सूं रोकै।

इणरो अेक दूजो पख भळै है, वो ई संस्कारां री कमी अर स्वारथ री बधताई रो ई सूचक है। वो ओ है कै चार-पांच बेटां मांय सूं माईतां सागै कोई अेक रैवणो स्वीकार करै। बाकी वाळा ना तो माईतां री सुध लेवै तो नां ई वां सूं कोई लेणो-देणो राखै। अेक बेटो जको सागै रैवै, वो वांरी खूब सेवा करै, पूरो सम्मान करै। बाकी भाइयां सूं कीं खरचो-पाणी भी नीं लेवै। वांरी दवा-दारू अर तीरथ जातरा रो खरचो ई खुद भोगै। आई-गई बैन-सवासणी नैं हाथ-कांचळी अर बेसबागो ई देवै, उणरो ई कोई हिस्सो पांती भायां सूं कोनी लेवै। उणरै बावजूद ई गाहे-बगाहे जे बात चाल जावै तो दूजोड़ा भायां रै मूंढै सूं मर्यां ई आ बात नीं निकळ पावै कै ‘‘हां भई, म्हारो फलाणो भाई अर उणरा टाबर म्हारै माईतां री खूब सेवा करै, भगवान उणरो भलो करै।’’ ना करै नारायण, खुद तो कांई कैवै जे दूजो कोई कैय देवै तो उणरै गळै पड़ जावै-‘थनैं घणो ठाह है कै जचै जठै रैवो माईतां नैं कुण मना कर्या है। वांरी दो रोटी सूं कुणसो फरक पड़ै। ओजूं तो रात-दिन काम करै।’ अरे भोगनांफूटां! आछै नैं आछो कैवण में थांरो कांई जावै। पण बाकी भाईड़ां नैं इयां लागै जाणै जे उणनैं आछो बतायो तो लोगड़ा आपां नैं नाजोगा बतावैला कै बापड़ो बो अेक है जको मायतां री सेवा करै बाकी तो हुया-बिन-हुया अेक सारीखा है। अै सगळी बातां ई आं टाबरां आपरै माईतां सूं ई सीखी है।

बात नैं घणो विस्तार नीं देवतां सार रूप में ओ ई कैवणो है कै आपणै संकीर्ण स्वारथ अर सोच रो गंदो सायो टाबरां पर मती पड़ण दो। घर-परिवार में जको ई आदमी भलो अर आछो काम करै, उणरी सराहणा करण में कंजूसी मत करो। रिपिया-पीसा आज है काल कोनी रैसी अर आज कोनी बठै काल हुज्यावैला पण जे संस्कारां रो काळ पड़ग्यो तो पछै धन-माया धरिया रह जासी, होसी फूट फजीता। आज बदळतै समै री मांग नैं देखतां संयुक्त परिवारां रो संप्रत्यय संभव कोनी पण अेकल परिवार नैं भी इतरो अेकल मत बणाओ कै माईत ई उणरा अंग नीं हुवै। अरथ रो घाटो-मुनाफो मत देखो, जे टाबरां नैं संस्कार देवणा चावो, वांनैं जीवण री साची सीख देवणी चावो, वांनैं परिस्थितियां सूं जूझण री जुगत अर साहस देवणो चावो तो माईतां रै सागै रैवण रो मारग लेओ। दो बेटा हो तो दोनूं अर चार हो तो चारो कोड कर-कर’र बारी-बारी सूं माईतां रै सागै रैवण री जुगत करो। आपणी निजी सुख-सुविधावां नैं थोड़ी देर आंतरै राख’र टाबरां सूं खुद भी स-हेत बंतळ करो। वांरी चाहत, उपलब्धि अर आसा-अपेक्षा नैं सुणो, समझो। उण पर विमर्श करो। कोरो स्कूलां अर ट्यूशनां का कोचिंगां रै भरोसै छोड़्यां तो कामयाब तो भलां ई बण जावै पण काबिल बणणा मुस्किल है। आओ हेत-प्रीत रा बीज बोवां अर संस्कारां री फसलां उगावां। राम राम सा।

~डाॅ. गजादान चारण “शक्तिसुत”

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