कुरसी तूं तो सदा कुमारी।
थिर तन लचक बणी रह थारी।
बदन तिहारै सह बल़िहारी।
वरवा तणै विरध ब्रह्मचारी।।1
कुण हिंदू कुण मुल्ला-काजी?
तूं दीसै सगल़ां नै ताजी।
रूप निरख नै सह रल़ राजी।
बढ बढ चहै मारणा बाजी।।2
पँगरी तूं तोड़ावै प्रीति।
रसा रायतो करदे रीति।
नूर थारो बदल़ावै नीति।
ज्यूं-त्यूं चहै तन्नै ही जीति।।3
जग में नहीं थारो को जामी।
खरी दीसै तूं तो बिन खामी।
वर की दिखण की अरूं वामी।
करड़ी निजर घालवै कामी।।4
लेता जिकै नाम रो लेखो।
परमानँद में रैता पेखो।
छत्राल़ी वप भाल़ी छेको।
डुल़ग्या सँत डिगँबर देखो।।5
भइयो तूं जिणरै मन भावै।
लोभण तूं जिणनै ललचावै।
ऊ सब छोड गुढै तो आवै।
वरवा लोकलाज विसरावै।।6
गजबण गीत तूझ सह गावै।
अहरनिसा सपना तो आवै।
लोयण -तिरछां तूं लोभावै.।
सज धज चढै बींद बिन सावै।।7
अंतस में जिणरै तूं आवै।
लेस जिकै नै दूर लखावै।
बैवै ऊ दावै बेदावै।
लंफ वैरी नै गल़ै लगावै।।8
पाजी पावण तोनै पारां।
धुर विपरीत रल़ै सथ धारां।
बेच बात नै बीच बजारां।
कुटल़ बैठग्या अपणी कारां।।9
~गिरधरदान रतनू दासोड़ी