सखी अमीणो सायबो
घर आंगण मांहे घणा, त्रासे पडिया ताव।
जुध आंगण सोहे जिके, बालम बास बसाव।।
वीर स्त्री कहती है संकट की घडी मे भयभीत होने वाले तो प्रत्येक घर मे मिल जायेगे परन्तु सूरमाओ का पडोस तो सौभाग्य से प्राप्त होता है।
सखी अमीणो सायबो, सुणै नगारा ध्रीह।
जावै पर दल सांमुहो, ज्यु सादूलो सीह।।
वीर स्त्री कहती है, हे सखी मेरा वीर पति रण वाध्यो की ध्वनी सुनते ही जगाये शेर की भांति रण क्षैत्र मे निकल जाता हे।
सखी अमीणां सायबो, मदन मनोहर गात।
महा काल मूरत बणे, करण गयंदा घात।।
हे सखी कामदेव सी कमनीय शरीर वाला मैरा पति रण क्षैत्र मे महाकाल का रूप धारण कर हादियो को मार गिराता हे।
सखी अमीणां सायबो, बांकम सू भरियोह।
रण बिगसै रितु राज मे, ज्यु तरवर हरियांह।।
हे सखी मैरा पति देव पराक्रमी ऐव रण बंका है जैसे बसंत रितु मे वृक्ष हरा भरा होता हे वैसे यह युद्व भूमि मे प्रफुलित होता है।
सखी अमीणां सायबो, गिणै पराई दैह।
सर बरसै पर चक्र सिर, ज्यू भादवडे मैह।।
हे सखी मैरा वीर पति अपना शरीर पराया समझता हे ऐसै बाणो की बर्षा करता हे जैसे भादवै मे जल बरसता है।
सखी अमीणो सायबो, निरभै कालो नाग।
सिर राखे मिण साम्रधर्म, रीझै सिंधु राग।।
हे सखी मैरा पति काले नाग की तरह हे जो मस्तिष्क मे स्वामी भक्ति की मणि धारण करता है तथा सिंधु राग मे मस्त होता है।
सखी अमीणां सायबो, सूर धीर समरत्थ।
जुध मे बामण डंड जिम, हैली बांधे हत्थ।।
हे सखी मैरा पतिदेव वीर, धैर्यवान ऐव सभी कार्य करने मे समर्थ है
युद्व भूमि मे बावन अवतार की तरह आकाश छूने का मादा रखता है।
सखी अमीणा कंत री, पूरी ऐह प्रतीत।
कै जासी रण द्रगडै, कै आसी रणजीत।।
हे सखी मुझै मेरे पति पर मुझै पूरा भरोसा है कि या तो स्वर्ग जायेगा अथवा रण जीत के लोटेगा।
रचयिता- महाकवि बांकीदासजी आसिया
संकलन एवं प्रेषक-
मोहनसिह रतनू, चौपासणी, जोधपुर