छंद मोतीदाम
करनी सुजश
नमो तुझ्झ मैह सुता करनल्ल।
सदा कर रैणव काज सफल्ल।
प्रसू तव दैवल आढीय पाय।
महि पर धन्य भई महमाय।
सही किनियां कुल ग्राम सुआप।
अहो वय ऊपजिया धिन आप।
मही पर बेल बधंतिय मान।
दिया घण दीपवधू वरदान।
सदा तन कंकण चूड सुहात।
रहे कर चक्र असि दिन रात।
सजै घण आयुध रम्य शरीर
करनल्ल चढत यान कंठीर।
करै नर याद सचे दिल कोय।
जदै क्षण बीच संभारत जोय।
अट्टकीय नाव दधी बिच आय।
सुरा हथ लिधाय शाह बचाय।
अहि बण वर्त जुडी धिन आप।
ततक्षण तक्षक को हर ताप।
हठी जद नृप किधो उपहास।
बणे सिंघ कीनोय कांन्ह विणास।
दुखी निज सेवक को घण दैख।
सिवा बण चील.उबारियो सैख।
पति धर जैसल व्याधित पीठ।
अहो नृप तारियो मेट अदीठ।
गुणी नह दक्ख सकै गुणगान।
दियो तुं ही क्षत्रिय जीवन दान।
पड्यो जद पुंगल मे पवि पोट।
उणी विध लोवड किधिय ओट।
अगे मढ त्रणक बाज अनेक।
करै भणकार म्रंदग कितेक
तुरी बज भूंगल ढोल सितार
करै डमरू बरघु बणकार।
उडे घण कैशर और अबीर।
सुहावत दैवीय भव्य शरीर।
धरै कवि शक्त करनल्ल ध्यान।
दहो मुझ श्रेस्ठ मया वरदान।।
महाकवि डा. ऐस.डी. कविया
प्रैषक- मोहन सिह रतनू,ऐडमीन काव्य कलरव ग्रुप