अमर क्रांतिवीर केशरी सिंह बाहरठ पर सौरठा
आतंकी अंग्रेज, मुलक लूटता मोकळो।
सोता शूळी सैज, इण भारत रा आदमी।।1।।
(अर्थ- अंग्रेज देश में लूट का आतंक मचाकर भारत को हर तरह से लूट रहै थे। भारत का हर आदमी दुख रूपी शूलों की सेज पर सोता था)
जुलमी कीन्हो जोर, मारण रज मरजाद नैं।
चूंट गया घर चोर, बिळखी घण माँ भारती।।2।।
(जुल्मी अंग्रेज पुरजोर माँ भारती की मर्यादा को मारने का प्रयास कर रहै थे, और पूरे घर (भारत) को नोच चुके थे, इन परस्थितियों को देख माँ भारती भी बिलखती थी।)
आजादी री आग, इण भावां अंतस तणी।
बळतोङो घर बाग, आप बचायो केसरी।।3।।
(ऐसी परिस्थितियों में अपने अंतस में आजादी के भावों की अग्नि जलाई केशरीसिंह बाहरठ नें और जलते हुऐ घर को बचाया।)
दिल्ली रो दरबार, करजन री सेवा स’ज्यो।
झु’क्या सकल जोधार, आंगण उण अंग्रेज रै।।4।।
(लार्ड कर्जन नें दिल्ली में भव्य दरबार सजाया सभी राजाओं को न्योता दिया। लगभग सभी राजाओं ने अधीनता स्वीकार कर ली थी।)
मेवाङी मरजाद, अटल अडिग ओजस रही।
उर धारक उनमाद, मेवाङी म्हाराण हा।।5।।
(मेवाङ रियासत की मर्यादा हमेशा अटल अडिग और शोर्यता की परिचायक रही थी और मन में हमेशा ओजस्वी उन्माद धारण करने वाले यहाँ के महारणा रहै है।)
(पण)फतो भूलियो पाग, मरु माटी मेवाङ री।
रमणों सैंधव राग, जोधारां जचती जकी।।6।।
(लेकिन न जाने क्यों मेवाङ के तत्कालीन महारणा फतेहसिंह अपनी सदा ऊंची रही पगङी को भूल गये और वो सिंधु राग भूल गये जिस पर उनकी पीढियां रीझा करती थी)
बण्या जदै बै भीर, झुकण ब्रितानी राज में।
सतपुरसां रो सीर, डगमग दीख्यो डोलतो।।7।।
(जब फतेहसिंह कायरों की तरह ब्रितानी राज के अधीन होने चल पङे तो ऐसा लगा जैसे पुरखों का सिंहासन जो सत्य पर अडिग रहा वो डोल रहा है।)
अंतस बळगी आग, इसङी जद केसर सुणी।
जाग केहरी जाग, चारण मन केहर कही।।8।।
(केशरी सिंह जी को जब इसका भान हुआ तो कलेजे में आग सी जल गयी और अपने चारण हृदय से कहा जाग केशरी जाग। तेरे होते हुये यह अनर्थ कैसे हो सकता है)
केहर भरै चरुंठ, सजग सबळ लिख सोरठा।
लजतोङी चौखूंठ, राखण नैं माटी तणी।।9।।
(तत्पश्चात केशरीसिंहजी ने स्वाभिमान को याद दिलाने वाले तेरह सबल सोरठे लिखे जो गौपालसिंह खरवा के हाथों फतेहसिंह तक पहुँचे।)
फतमल नैं फरियाद, केहर रुकणैं री करी।
पुरखां री मरजाद, सोरठियां में सूंप दी।।10।।
(उन सोरठों में केशरीसिंह ने मेवाङ की पुरानी मर्यादा और शोर्य की कहानी लिख दी और रुकने की फरियाद की)
पढतां ही फतमल्ल, अंतस तजियो ओझको।
देर करी ना पल्ल, मुङिया पाछा मोद सूं।।11।।
(महाराणा फतेहसिंह ने जब सोरठे पढे तो उनका स्वाभिमान जो सो गया था वो जाग गया, और पल भर भी देर न करते हुऐ वे वापस मेवाङ की तरफ मुङ गये और दिल्ली जाने का फेसला तज दिया।)
निज बेटो अर भ्रात, और जमाई ईसरो।
मिटिया हित भू मात, निवण केसरी सा नरां।।12।।
(अपने बेटे प्रतापसिंह बारठ,भाई जोरावर सिंह बाहरठ, और जामाता ईश्वरदान आशिया सहित पूरे परिवार को आपने आजादी की लङाई में होम दिया ऐसे केशरी सिंह के संस्कारों को नमन।)
आजादी री आंच, केसरसीह प्रबळ करी।
सतवट वाळो सांच, जीवत राख्यो आप ही।।13।।
(स्वतंत्रता की लङाई की आंच को प्रबल कर सतवटता की सच्चाई को जीवंत रखने वाले आप केशरी सिंह बाहरठ ही थे।)
छैलू चारण “छैल” नाथूसर, बीकानेर