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पुलिस के सम्मान में कुछ पंक्तियाँ खाखी की जुबानी

खाखी बोलै आज खरी
डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

जस अपजस इण जगत में, है बस हर रै हात।
नर नाहक नखरा करै, जाण बिगोवै जात।। 01।।

पको गळतियां पूतळो, ओ आदम रो अंश।
निज परिहर, पर निरखणो, देणो खुद नैं दंश।। 02।।

सुख रै बदळै दुख समप, निज दुख मत नूंतोह।
समझो अरे सँसारियां, किरतब निज कूंतोह।। 03।।

खाखी वरदी खलक में, पलक न राखै पोल।
इण खातर क्यूं अटपटा, बोलो अबढ़ा बोल।। 04।।

अवगुण ले-ले ऊपणै, गुण री करै न गल्ल।
जो-जो फितरत जगत री, हिय में व्है हलचल्ल।। 05।।

रैयत खातर रैण-दिन, खाखी सैण सतोल।
नैण खोल निजरां निरख, बैण सुलखणा बोल।। 06।।

खाखी अब बोली खरी, खोली सब खिड़कीह।
जग बोली तोली जुगत, भटकी नां भड़कीह।। 07।।

इक इक करतां आपरी, बोली खाखी बात।
आँख्यां जग री उघड़गी, रही न अँधली रात।। 08।।

।।खाखी बोली खरी-खरी।।
करतां इज काम निकरमी बाजूं, करता मो पे गजब करी।
दिल रो दरद दुहेलो उझळ्यो, खाखी बोली खरी-खरी।।

अै नकटा, अै निपट निकरमा, अै गुँडा अै आदमखोर।
अै पापी, अै ढ़ोंगी पक्का, अै पाखंडी, नामी चोर।।
जग रै मूंढै आ जस गाथा, कहो किसी तपतीश करी।
रंज‘र रीस टीस बण रड़कै, खाखी बोलै खरी-खरी।।

आवै जद ई ईद दिवाळी, मँडै मगरिया देसूं-देस।
सी.एल.जी. री जुड़ै सभावां, वरदी झेलै खँच विशेष।
सगळा रह परिवारां साथै, तीज तिंवारां लेय तरी।
पुळ उण ऊभूं म्हैं पौ’रायत, खाखी बोलै खरी-खरी।।

उच्छब री अणगिणत उमंगा, (इत) पंगां वाळी खबर पड़ी।
चावी फाग रागणी चंगां, (इत) खाखी दंगां बीच खड़ी।
(पण) जिणरी ज्यान बचावण जूझी, जीभां वै ई जहर भरी।
सुण-सुण बैण काळजो सुलगै, खाखी बोलै खरी-खरी।।

पूछ-पूछ टाबर पिछतावै, अम्मां कद बो दिन आसी।
और जिम आपां संग अब्बा, खीर सेवईय्यां खासी।
परणेतण आंसूड़ा पूंछै, दुखड़ो मन में दाब परी।
देख्यां टूक हुवै दिलड़ै रा, खाखी बोलै खरी-खरी।।

अपराधी खूनी आतंकी, ज्यां सूं खुद जमराज डरै।
मारै गंडक ज्यूं मिनखां नैं, मौत बांटता मगन फिरै।
प्राणां री परवाह छोड़ म्हैं, पकड़-पकड़ नैं जेळ भरी।
उण पुळ बंद जगत री आंख्यां, खाखी बोलै खरी-खरी।।

हर घटना में म्हैं लूटीजूं, छीजूं जगती सूं छानैं।
भर-भर नैण खुदोखुद भीजूं, मुलक बात आ नीं मानैं।
खाखी तद-तद लाल हुई है, जद-जद जग में विपद परी।
खुद्दारी रो म्हैं हूं खूंटो, खाखी बोलै खरी-खरी।।

मत ना रोज लगाओ लांछण, जाणो जितरी मत ताणो।
खाखी खेलै है खतरां सूं, मनगत थे मौजां माणो।
म्हैं कर्तव्य निभाऊं म्हारो, करता म्हारी मदद करी।
जस नीं तो अपजस मत दीजे, खाखी बोलै खरी-खरी।।

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