साची बात कहूँ रे दिवला,
थूं म्हारै मन भावै।
दिपती जोत देख दिल हरखै,
अणहद आणंद आवै।
च्यारुंमेर चड़ूड़ च्यानणो,
तेज तकड़बंद थारो।
जुड़ियाँ नयण पलक नहं झपकै,
आकर्षक उणियारो।
चत्रकूंटां सड़कां चौराहां,
पुर-डगरां पळकाई।
परतख तेज गगन लग पूगो,
साख धाक सबळाई।।
ओ सब साच जगत अंगेजै,
अखूं जकी सुण आगै।
थारै तळ अँधियारो थिरचक,
लख दृग भूंडो लागै।।
ओ अँधियार घणो अणखाणो,
कहूँ जकी सुण कानै।
चक-चक लोग करै चौराहां,
छुपी न तोसूं छानै।।
मोह घणो तोनै महलां सूं,
पण वै मोह न पाळै।
सुगन मनाबा थनै संजोवै,
अर धर राखै आळै।।
महंगी लड़ियाँ जाय मोलावै,
सखरा द्वार सजावै।
दुनियाँ सामी करै दिखावा,
पीलचोस पळकावै।।
माया रै कोठै मत मलफै,
बारै आ बतळाऊँ।
कुणसै घरां कद्र है थारी,
दिवला थनै दिखाऊँ।।
दिवा सिवा नहं जोत दूसरी,
इक पण महल न ऐसा।
लख फ़ानूस लाख रँग लड़ियाँ,
हर इक महल हमेसा।।
अठी देख झोंपड़ियाँ आतुर,
वध वध थनै बधावै।
उर सूं कोड करै अणगिणती,
गीत सुमंगळ गावै।।
दिवला दोय भगावण दाळद,
साचै मन्न सँजोवै।
एक करै मनुहार द्वार पे,
हिक सूं पूजा होवै।।
इतरी बात मानजे अबकै,
कहणो म्हारो कीजे।
साच-झूठ रो न्याय सदीनो,
दिवला तूँ कर दीजे।।
पूजा मांय रखै जो पूंजी,
उणमें मैणत आंकी।
खरो कठै है खून-पसीनो,
झूठ तणी कठ झाँकी।।
दिवला मती मानजे दौ’रो,
मो मन दरद न मायो।
बस इतरो संकेत बताकर,
सकव थनै समझायो।।
महल भलां उजवाळ मोकळा,
ढमकां ढोल घुरावै।
(पण) झुग्गी-झोंपड़ियाँ जगमगियाँ,
असल दिवाळी आवै।।
दिवाळी री घणी घणी बधाई।
रामा-श्यामा।
~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’