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कवि मधुकर छंद रोमकंद निजर

सिंढायच चन्दू सती, वर्ण हन्दू रख वात।
शरणो दे ऊदल सदू, अवन बंदु अखियात।1

अखियात सुगात प्रभात उचारत,
मात चन्दू वर्ण जात मही।
तव आणद मात सुतात तो ऊदल,
लै पक्ष भ्रात सुपात लही।
माड़वै प्रख्यात सती जग मानत,
गात गली देव पात गती।
विखमी पुल धार संढायच वाहर,
सार चन्दू वर्ण वार सती।।2

अवसांण कियो मारवाड़ अवनीय,
सांसण माड़व गाम सखी।
ससुराल दिपै धन धाम दासोड़िय,
अंजस रतनु रांण अखी।
भिड़ गयो भड़ भूप भतीज भवानिय,
जांण दुनी महरांण जती।
विखमी पुल धार संढायच वाहर,
सार चन्दू, वर्ण वार सती।।3

उनियासिय साल धुखी हद आरण,
सदी अठारण वार सजी।
अगहंन अधांरन जमर जारन,
चोथ मंझारन अंग तजी।
सठ सालम मारण, सोज संहारण,
सेवग तारण आद सती।
विखमी पुल धार संढायच वाहर,
सार चन्दू वर्ण वार सती।।4

पोकराड़ पती जद राड़ करी,
पछलाड़ उजाड़ पछाड़ लियो।
धर धीठ पड़ी पंड धूबक धोमस,
क्रोध कड़ा कड़ धाड़ कियो।
फट फाड़ फगाड़ अरी तन फिंफर,
मेट दियो असुरांण मती।
विखमी पुल धार संढायच वाहर,
सार चन्दू वर्ण वार सती।।5

बण रुप बाघम्बर आय अखम्बर,
जोत सो जम्मर जाय जली।
अवनी होय अम्बर साख ससम्बर,
चन्दूय चम्मर थोक चली।
गढवी कर गम्मर साय तो सम्मर,
भम्मर तोय करै भगती।
विखमी पुल धार संढायच वाहर,
सार चन्दू वर्ण वार सती।
अखि अंजस दासोड़ी गाम अती।।6

कलस
पोकरण धर पछाड़ियो,
ठाकर सालम ठार।
मधुकर चाकर माड़वै,
वरण चन्दू कर वार।।

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