Sat. Apr 19th, 2025

◆हिमालय चारणों की आदि भोमका।

◆राजा पृथु हिमालय की तपोभूमि से चारणों को आर्यावर्त की पवित्र भूमि पर ले आए।

◆चारणों का जीवन मानव जाति की उत्पत्ति से लेकर आज तक विस्तृत है।

◆चारणों की परंपरा मानव जाति के रीति-रिवाजों, संस्कृति और शास्त्रों से अटूट रूप से जुड़ी हुई है।

◆चारण यानी, “चार्यन्ति कीर्ति, नीति, धर्म, विद्या, इति चारणा:”

◆रामायण, महाभारत, भागवत, पद्मपुराण, गणेशपुराण, विष्णुपुराण, आदित्यपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्यपुराण, वायुपुराण, ब्रह्मपुराण, वामन पुराण, शिवपुराण, भविष्यपुराण, विष्णु रहस्य, गर्गसंहिता और जैन शास्त्रों में देवकोटि के आसन का श्रेय चारणों को दिया गया है। इन शास्त्रों के पन्नों – पन्नों में चारणों ने शुद्ध पवित्रता, वीरता और परिश्रम के पालक और पोषक होने का गौरव प्राप्त किया है।

◆चारण यानी संस्कारों का उपदेशक और संस्कृति का प्रसारक।

◆चारण यानी वीरता का वाहक और वीरता का प्रजनक।

◆चारण यानी पवित्रता का पालन करने वाला और सत्य का उद्घोषक।

◆चारण आध्याशक्ति का उपासक और माँ शारदा के साधक हैं।

◆चारण यानी शिव और शक्ति का अटूट उपासक।

◆हिमालय के पहाड़ों से पृथ्वी पर आये चारणों की भौगोलिक ओर सामाजिक पहचान साढे तीन पहाड़ो में विभाजित हुई।

◆हिमालय में नरनारायण पहाड़ के पास रहने स्व चारणकुळ नरा – अवसुरा के प्हाड़े में पहचान हुई।

◆चहुआ पहाड़ के निकट रहने वाले चारणकुळ चहुआ बाटी प्हाड़ा तरीके पहचान हुई।

◆चहराट पहाड़ के निकट रहने वाले चारणकुळ की चोराड़ा – मारू प्हाड़ा तरिके पहचान हुई।

◆नरनारायण पर्वत के निकट रहने वाले चारणकुल, जिसमें कोई चाळ (ચાળ ન હતી) नहीं थी, जिसे आधा प्हाड़ा माना जाता था।

◆इस प्रकार चारणों की मूल शाखा में सात और दूसरी सोलह शाखाएँ मिलकर और तेईस शाखाएँ हुईं। फिर शाखाओं प्रशाखाओं की कुल संख्या बढ़कर पाँच सौ हो गई।

◆न्याय को प्रकट करने के लिए पुरुष को प्रकृति के पास जाना पड़ता है और शिव को शिवत्व प्राप्त करने के लिए शक्ति की मदद लेनी पड़ती है, यह न्याय चारणकुळ में भी फैला हुआ है।

◆चारणकुळ में ईश्वर को अवतार दे सके ऐसी जगदम्बाओं का अवतरण हुआ।

◆सृष्टि के सर्जक पोषक एवम प्रलय कर्ता परमात्मा भी जिसकी कोख से जन्म लेने की और गोदी में खेलने से खुश होता है ऐसी जगत जननी ने चारण कुल में अनेकोंबार अवतार लिया है।

◆ऐसा कहा जाता है कि भगवान ने मां को इसलिए बनाया ताकि वह पूरे ब्रह्मांड में बार-बार अवतार ले सकें।

◆चारणकुल में जगदंम्बाओ के अवतार की परंपरा भी प्राचीन है।

गुजराती

◆હિમાલય ચારણોની આદિ ભોમકા.

◆રાજા પૃથુ ચારણોને હિમાલયની તપોભૂમિમાંથી આર્યાવર્તની પુણ્ય ભૂમિ ઉપર લાવ્યા.

◆ચારણોની હયાતી માનવ જાતના ઉદ્ગમથી શરૂ થઇને આજ સુધી વિસ્તરી છે.

◆ચારણોની પરંપરા માણસ – જાતના સંસ્કાર સંસ્કૃતિ અને શાસ્ત્રો સાથે અભિન્ન થઇને સંકળાયેલ છે.

◆રામ – કૃષ્ણ અને વેદ પુરાણના આકાશ સુધી ચારણ અસ્મિતાના સૂરજના તેજ ઉતર્યા છે.

◆ચારણ એટલે, “ચારયંતિ કીર્તિ, નીતિ, ધર્મ, વિદ્યા, ઇતિ ચારણા:” સત્કીર્તી, નીતિ, ધર્મ, વિધા, સત્ય, વેદ અને કવિતાને પ્રગટાવે, પ્રસરાવે, ગતિ આપે બિરદાવે, વહાવે અને વેગ આપે એ ચારણ,”

◆ચારણો રામાયણ, મહાભારત, ભાગવત, પદ્મપુરાણ, ગણેશપુરાણ, વિષ્ણુપુરાણ, આદિત્ય પુરાણ, સ્કંદ પુરાણ, મત્સ્યપુરાણ, વાયુપુરાણ, બ્રહ્મપુરાણ, વામન પુરાણ, શિવપુરાણ, ભવિષ્યપુરાણ, વિષ્ણુ રહસ્ય, ગર્ગસંહિતા અને જૈના શાસ્ત્રોમાં દેવકોટિના આસને આરૂઢ થઇને સત્યવકતા અને સ્પષ્ટ વકતાનું બિરૂદ પામ્યા છે. આ શાસ્ત્રોના પાને પાને ચારણોએ શેહશુદ્ધ પવિત્રતા, વીરતા અને કર્મઠતાના પાલક અને પોષકનું ગૌરવ પ્રાપ્ત કર્યું છે.

◆ચારણો એટલે સંસ્કારના પ્રચારક અને સંસ્કૃતિના પ્રસારક.

◆ચારણો એટલે વીરતાના વાહક અને શૌર્યના સંવર્ધક.

◆ચારણો એટલે પવિત્રતાના પોષક અને સત્યતાના ઉદ્ઘોષક.

◆ચારણો આદ્યશક્તિની આરાધક અને મા શારદાના સાધક.

◆ચારણો એટલે શિવ અને શક્તિ બેયની અખંડ ઉપાસક.

◆ચારણો એટલે પ્રકૃતિ અને પુરૂષ ઉભયના પૂજક.

◆ચારણોની વાણીમાંથી કવિતા અને કૌવત બેય સઇજ પ્રગટ થાય છે.

◆કવિતા ચારણોનો વ્યવસાય નહીં પણ જીવનધર્મ છે.

◆હિમાલયના પહાડો ઉપરથી પૃથ્વીના પાટલે પધારેલ ચારણોના ભૌગોલિક અને સમાજિક વસવાટની ઓળખાણ સાડા ત્રણ પહાડા (પહાડ) માં વિભાજીત થયા.

◆હિમાલયમાં નર નારાયણના પહાડ પાસે રહેતું ચારણકુળ નરા – અવસુરાના પ્હાડામાં ગણાયું.

◆ચહુવા પહાડ નજીક રહેતું ચારણકુળ ચહુવા બાટીના પ્હાડા તરીકે લેખાયું.

◆ચહરાટ પહાડ નજીક રહેતું ચારણકુળ ચોરાડા – મારુ પ્હાડા તરીકે લેખાયું.

◆નરનારાયણના પહાડ નજીક રહેતું ચારણકુળ જેને કોઇ ચાળ ન હતી તેથી તે અર્ધા પ્હાડામાં ગણાયું.

◆આમ ચારણોની આદિ શાખા સાત અને બીજી સોળ શાખા મળી અને ત્રેવીસ શાખા થઈ. પછી તો શાખા – પ્રશાખાનો સરવાળો પાંચસોનો થયો.

◆પુરૂષને પ્રગટ થવા પ્રકૃતિના આશરે જવું પડે અને શિવને શિવત્વ સાધવા શકિતનો સહારો લેવો પડે એ ન્યાય ચારણકુળમાં પણ પળાયો.

◆ચારણ કુળમાં ઇશ્વરનેય અવતાર આપી શકે એવી જગદંબાઓનું અવતરણ થયું.

◆જગતના નાથને પણ જેનો ખોળો ખુંદવાના કોડ જાગે એવી જગતજનનીઓએ ચારણકુળમાં અવતાર લીધા.

◆જેનો એક હાથ ઊંચો થાય અને જગત આખું ઝળાંહળા થઈ જાય અને જેની એક આંખ જરા સરખી કરે અને અવનિ આખી ઊથલ . પાથલ થઇ જાય એવી દિવ્યશક્તિઓએ ચારણકુળમાં જન્મ ઘર્યા.

◆કહેવાય છે કે ઇશ્વર આખી અવનિ ઉપર વારંવાર અવતાર ધારણ કરી શકે એ માટે એણે માનું સર્જન કર્યું.

◆ચારણોએ તો માના સ્વરૂપે જગંદબાઓને અવતાર દીધા.

◆ચારણકુળમાં અવતરેલ જગદંબાઓની પરંપરા પણ આદિકાળની છે.

क्रमांकजानकारी
1. आई वाकदेवी- सर्व प्रथम आई तत्व ऋग्वद में पाया जाता है। ऋग्वेद की देवी सूक्त की रचनाकार और अन्यूण नाम के चारणऋषि के पुत्री आई वाकदेवी ये चारणकुळ के पहले आई।
2.आई गिरा देवी – ये छंदशास्त्र के आदि प्रणेता चारण ऋषि पिंगळाचार्य के पत्नी.
3.आई आदि आवड़- आई आवड़ का रहवास हिमालय, नरा ओर तुम्बेल शाखा के चारणों की कुलदेवी.
4.आई हिगलाज- आज के पाकिस्तान, कराची के पास बलूचिस्तान कोहला पहाड़ में इनका स्थान, ब्रह्माचारिणी ओर धर्मशास्त्रों के प्रारंगत तपस्विनी, इनको सरस्वती ओर ब्रह्मणी के रूप में जाना जाता है. More details click here
5.वांकल माँ- राजस्थान के बाड़मेर जिले में चौहटन उपखंड मुख्यालय से 9 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा की तरफ रेतीले टीबे और पहाड़ियों के बीच स्थित है। जो कि श्री वाकल धाम महातीर्थ विरात्रा के नाम से जाना जाता है। More details click here
6.आई रवेची- रव नामक गाँव मे नराकुळ में रवसुर गढवी के वहा प्रागट्य।
7.आई चालकनेची- पिता चकलुजी आढा, राजस्थान जैसलमेर जीला के चालक गाँव मे प्रागट्य, इनको माडेची ओर डुंगरेची भी कहते है। (कवि मधुकर भंवरदानजी मेड़वा:-चालकनेची ही आवड़जी है यह चालकना गाम बाड़मेर जिले में है। संवत भी 838, राजा तणू ओर विजयराव चुड़ाला के समय सें सही मेल इतियास मिलता है।)
8.आई आवड़- वि. संवत 808 मादा शाखा के चारण कुळ में मामडिया चारण के घर सात बहने ओर एक भाई महेरख का जन्म, 1.आवड़, 2.होल, 3.गेल, 4.आई रांगळी (रंगबाई), 5.आई रेपल (रूपबाई), 6.आई सांसई, 7.आई लघुबाई आई (खोडियार – जानबाई) ये सात-बहने। More Details Click Here
9.आई खोडियार माँ- More Details Click Here
10.आई वरवड़ी-  ”दूसरे” कच्छ जिले के भचाऊ के पास खोड़ासर गाँव मे नरा शाखा की उपशाखा गोखरू में जन्म हुआ। इनका विवाह हलवद विस्तार के खोड़ गाँव मे मारू शाखा की उपशाखा देथा शाखा में हुआ। रा’नवघण चतुर्थ के समकालीन 1345 से 1425 बीच।
11.आई शेणबाई- जुनागढ़ विस्तार के भेसाण के पास गोरिवायाली गांव में वेदा चारण के वहा सं. 1370 में जन्म। सेणीजी लालस जाति की चारणी गुजरात की काछेला वेदा जी की पुत्री थी ! अपनी बाल्य अवस्था मे हिमालय जाकर अपना लोकिक शरीर त्याग दिया था ! वीझानंद जो भाचलिये शाखा के चारण थे व उक्त शक्ति से ब्याह करना चाहते थे ! लेकिन वचनानुसार समय पर नही पहुच पाये, शक्ति ने अपना शरीर त्याग दिया था ! माताजी का ग्राम जुढीया, जिला जोधपुर मे भव्य मन्दिर हे ! More Details Click Here
12.आई पीठड माँ- माता-मालुबाई ओर पिता-सचाभाई बाटी, सुरेन्द्रनगर के धांगध्रा तहसील के बावळी गांव में इनका जन्म स्थान। रा`नवघण के पहले के समकालीन में। इनकी दूसरी बहने आई रखाई माँ, आई कांत्रोडी, आई फलमाल (करमाई) आई हेमश्री, आई भीचरी, आई घोघश्री तथा आई सुंदरी इन सभी आईओ के स्थान झालावाड़ में है। More Details Click Here
13.

आई देवल माँ- चारण समाज में देवल देवी के नाम से चार लोक देवीयां अवतरित हुई थी। उनमें से एक- जैसलमेर के बोगनयायी गांव के मीसण शाखा के चारण अणदाजी की पुत्री एंव करणानन्दं आणंद की बहिन थी, जिन्होने वीर पाबुजी राठौड़ को केसर कालमी घोड़ी दी थी, ईसके सम्बधं में एक दौहा प्रसिद्ध हैं:-

अणदै री मीसण नमो, झलै त्रिसुळां झल्ल।
पाबु ने दी कालमीं, गढांज राखण गल्ल।।

14.आई देवल माँ- चारण समाज में देवल देवी के नाम से चार लोक देवीयां अवतरित हुई थी। उनमें से एक:- देवलबाई प्रसिद्ध भक्त कवि ईसरदासजी की धर्मपत्नी जो शक्ति का अवतार मानी जाती है।
15.आई देवल माँ- चारण समाज में देवल देवी के नाम से चार लोक देवीयां अवतरित हुई थी। उनमें से एक:- देवल देवी आढांना नामक गांव के स्वामी आढा शाखा के चारण मांढाजी के पुत्र चकलुजी की पुत्री थी, जो सुवाप गांव के स्वामी किनीयां शाखा के चारण मेहाजी की पत्नी थी, करणीजी आदि सातों बहनों को जन्म देने का सौभाग्य इसी देवल देवी को था, इन्हे भी शक्ति का अवतार माना जाता है।
16.

आई देवल- चारण समाज में देवल देवी के नाम से चार लोक देवीयां अवतरित हुई थी। उनमें से मूळ नाम देवबाई, शाख सिहढायच वि.स. 1444 में, राजस्थान में जैसलमेर जिले के पोकरण तहसील के माड़वा गांव में जन्म। पिता भलोजी सिहढायच, विवाह बापल देथा के साथ सिंध के थरपारकर जिले के खारोड़ा गांव में, 141 वर्ष की आयुष में अंतध्र्यान हुये। वर्तमान में माताजी का मंदिर खारोड़ा गांव में है। इनके 6 पुत्रियां थी जिसमे 1.बूट मां, 2.बलाड़, 3.बेचराजी, 4.जेतबाई, 5.बाजरीबाई (बालवी, 6.मानश्रीबाई ओर तीन भाई मेंपाजी, खीमाजी ओर गोगाजी। More Details Click Here

चारण बरण चकार में, देवल प्रगटी दोय।
पैली तो मीसण थई, बीजी सिंढायच जोय।।1
सवळ घड़सी आंख में, होतो दुष्ट अदीठ।
सो बळिहारी देवला, आन कियोज मजीठ।।2
मांणक हंदो काळजो, रोज बींधतो आंण।
सो पच देवल गांळियो, सिंढायच सब जांण।।3

17.आई बेचराजी- देवल आई और बापल देथा की पुत्री चारणों के संघ के साथ तीर्थ यात्रा पर गुजरात आये तब मेहसाणा जिले के शंखलपुर गांव में रुक गये उनका स्थान शंखलपुर में है। More Details Click Here
18.आई बुट माँ- आई बुट माताजी का मंदिर अहमदाबाद जिले के ढोलका तालुका में अरणेज गांव में स्थित है। ढोलका से 3 किमी दूर स्थित यह मंदिर ऐतिहासिक, और प्राचीन है। More Details Click Here
19.आई बल्लाल माँ- आई श्री देवल माँ और बापल देथा की पुत्री गोहीलवाड़ ओर हालार प्रदेश में पूजा की जाती है।
20.आई करणीजी माँ- पिताजी का नाम मेहाजी किनिया,  करणीजी का जन्म 21 माह गर्भ में रहने के बाद वि.स. 1444 आसोज सुद सातम शुक्रवार को फलोदी के पास सुआप गाँव में हुआ ! करणीजी 7 बहने – लांला बाई, फुलां बाई, रिद्धी बाई, केशर बाई, गेंदा बाई, गुलाब बाई, सिद्धी बाई, और 2 भाई – सातल, सारंग थे ( करणी जी छटे थे ) !देशनोक बीकानेर में माँ करणीजी का भव्य मंदिर है। More Details Click Here
21.आई चंदू माँ- भगवती चंदू का जन्म माडवा गाँव में उदेजी सिंहढायच के घर अणदूबाई की कोख से हुआ आपका ससुराल दासोड़ी था। भगवती चंदू ने ठाकुर सालमसिंह के खिलाप अखेसर तालाब की पाल पर जंवर किया था तो आपकी माता अणदूबाई ने गुडी के पोकरणो के अत्याचारों के खिलाप जंवर किया था ! More Details Click Here
22.आई मोगल माँ- चारणों की घांघणीया शाखा में जन्म हुआ। पिता-देवसुरभा घांघणीया, जन्म स्थान- ओखा विस्तार का भीमराणा गांव। More Details Click Here
23.आई नागबाई- जुनागढ जिले के वंथली तहसील के घणफुलीया गांव में मादा शाखा के चारण हरजोग गढवी के वहां अश्वनी शुक्ल सप्तमी सं. 1439 में जन्म हुआ। विवाह दात्राणा के रवसुर गारेवियाला के साथ हुआ। More Details Click Here
24.आई गौरवी- इनका विवाह नरा शाखा की नेचड़ा उपशाखा में हुआ। इनका स्थान गोरवीयाली गीरनेस में, इनके पुत्र सोडचन्द्र इनके पुत्र वेदों चारण, इनकी पुत्री आई शेणबाई।
25.आई कामबाई- माँ कामेही का जन्म विक्रम संवत 1550 में गुजरात के खम्भालीया तहसील के राण गांव के पास ढाबरडी मे हुआ था आपके पिता का नाम जसुदान बाटी था। आपका विवाह पिपलीया गांव के मेघड़ा गौत्र में हुआ था माँ कामेही खम्भालीया के पास खजुरिया नेश में अपने मवेशियों के साथ रहते थे। More Details Click Here
26.सुहागी बाई- विक्रमी सवंत 1580 में मेंहडू शाखा के चारण भादाजी मेंहडू को गंगाजी सोढा द्वारा सुुहागी गाँव भेंट स्वरूप प्राप्त हुआ। सुुहागी का तत्कालीन नाम मेंहडु वास था। भादाजी मेहड़ू की सुपुत्री सुहागीबाई का विवाह महिया शाखा के चारण से हुआ। सुहागीबाई के पुत्र का नाम मांडणजी महिया था। माडणजी महिया से सोढा राजपूतों ने घोड़ो की माँग की माडणजी ने यह माँग अस्वीकार कर दी। तत्पश्चात सोढा राजपूत घोड़ों को षड्यंत्र पूर्वक चोरी करके ले गये। more details click here
27.आई राजबाई- सौराष्ट्र धांगध्रा विस्तार के चराड़वा गांव में उदयभाण वाचा के वहा माँ राजबाई का जन्म करणीजी के महाप्रयाण के ठीक 10 माह बाद वि.स.1595 चेत्र शुक्ल नवमी को । आप आजीवन ब्रम्ह्चारिणी रही, आपने 80 वर्ष की आयु प्राप्त की व वि.स.1676 को स्वधाम पधारे। चराड़वा में माँ राजबाई का भव्य मंदिर बना हुआ है। More Details Click Here
28.आई श्री जीवा माँ- जन्म वागड़ में रापर तहसील के जाटावाड़ा गाँव में महिया शाखा के चारण दिताजी के घर हुआ था। आई माँ की मातुश्री का नाम रूपाबाई था जो करसनभाई पेथाभाई मेहडू की पुत्री थे। More Details Click Here
29.आई जीवणी- कच्छ के धानाभाई नैया के वहा सं. 1711 में जन्म, दुष्काल में कच्छ में से सौराष्ट्र के सरधार के पास नेश बनाकर वही बसे। More Details Click Here
30.आई वानु माँ- (मोरझर) सं. 1712 में कच्छ जिले खंडिर विस्तार के वावड़ी गाँव मे खोड़ीदान के घर आई माँ का जन्म। More Details Click Here
31.आई गीगाई- विक्रम संवत 1730 आषाढ सुद पाचंम को नागौर जिले की मकराना तहसील के इन्दोखा गांव में जोगीदासजी बीठू के घर सांपू कंवर की कोख से गीगाईजी महाराज ने जन्म लिया। More Details Click Here
32.आई जानबाई, उढास, सोरठ- सांडा गाँव मे वेजाणंद उढास के घर जन्म। तेरहवी पीढ़ी में सोनल माँ का जन्म हुआ था !
33.आई पुरबाई- सोरठ के बांटवा के पास मीती गांव भाभाभाई भांगड़िया के घर जन्म।
34.आई बेनबाई- (ऐरडा कच्छ) जुनागढ जिले के घेडमां ऐरडा गांव में मांडण मोड़ के घर सं. 1570 से 1650 के बीच जन्म काल आई बेनबाई माँ का।
35.आई चांपबाई- गुजरात के मोरबी के पास टंकारा गांव में हरपाल चारण “चोराड़ा शाखा की उपशाखा कवल” में आई चांपबाई माँ का जन्म। More Details Click Here
36.आई जेतबाई- गुजरात के खेड़ा जिले के वालोवड़ गाँव मे लाखाजी मेहडू के घर आई जेतबाई का जन्म। More Details Click Here
37.आई कागबाई- बाबरा गाँव के चाटका शाखा के चारण छात्रवभा के घर आई कागबाई माँ का जन्म ओर बाबरीयात गाँव मे आई कागबाई माँ सती हुये।
38.जामो सतीजी- जामो सतीजी जो हड़वेचा ग्राम के सुंदरदान चारण की पुत्री थी, आपका ब्याह मिठ्डीये सिंध प्रदेश मे हुवा था, पति का नाम अमरदानजी देथा था ! आपने रिंध नामक सकल जाति के असुरो को जमर करके ख़त्म किया था ! व हरिसिंह को अमर कोट का शाशक होने का वरदान दिया था!!
39.आई सगत हरियाँ माँ- आई श्री सगत हरियाँ माताजी का जन्म सिरोही जिले की रेवदर तहसील के ग्राम मीठन में हुआ! आपके माताजी का नाम उदयकुंवर व पिताजी का नाम वखतदान जी बारहठ था। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार श्री हरियाँ माताजी का जन्म ईसवी सन 1813 में हुआ था ! आपका ससुराल सिरोही जिले के वाडखा गाँव मे पति का नाम दानजी था। उन्हें हिरणी ठाकुर के आदमियों ने ख़त्म किया था, इस बात का पता अठारह दिन बाद सती को चला, तब अपने पति का वेर लेने की उदेश्य से जमर किया, सावल जाति मे महँ सती कहलाई ! आपके बड़े चमत्कार हे !! More Details Click Here
40.आई शिला माँ- राजस्थान के जैसलमेर जिले के कोडा गाँव मे सं. 1878 शंकरदानजी रतनू के घर आई शिला माँ का जन्म हुआ व आई माँ का विवाह बाड़मेर जिले के झणकली गाँव में हुआ पति का नाम जोगराजजी बीठू। More Details Click Here
41.आई केशरबाई- (बेणप) कच्छ वागड़ में रापर तहसील के सणवा गाँव मे रूपशी लाळस के घर सं. 1872 में आई केशरबाई माँ का जन्म।
42.सगत हीरा माताजी का जन्म सिरोही जिले के बरलूट गांव में सामाजी देवल के घर विक्रम सम्वत 1898 में हुआ था आपकी शादी गांव वलदरा के चतराजी आसिया के साथ हुई थी। माँ हीरा माताजी को हरिया माताजी का इष्ट था। More Details Click Here
43.आई सोनबाई- (सरकड़िया वाले) अमरेली जिले के राजुला तहसील में अमुली गाँव मे राणा गियड़ के घर सं. 1884 में आई सोनबाई माँ का जन्म हुआ। More Details Click Here
44.श्री कल्लू माता- श्री कल्लू माता का जन्म कोडा गांव (जैसलमेर) में रतनू कुल में हुआ था। इनके पिता जी का नाम गज दान रतनू था। कल्लू माता जी का विवाह बालेवा(बाड़मेर) गांव के बारहट शाखा के चारण नारम दान से हुआ था। मातेश्वरी ने वि.सं.1910 में माघ शुक्ल चौदस को जमर किया था। More Details Click Here
45.आद्यशक्ति इंद्र बाईसा- जोधपुर मण्डल के नागोर जिले के अंतर्गत खुडद नामक गाँव में वि.स. 1964 को आषाढ़ शुक्ल नवमी शुक्रवार के दिन श्री सागरदानजी रतनू की धर्मपत्नी श्रीमती धापूबाई की कूख से पूजनीय आदिशक्ति श्री इंद्र बाईसा का अवतरण हुआ! More Details Click Here
46.आई मोटवी माँ- धोरीमन्ना उपखण्ड मुख्यालय से करीब 20 किमी दूरी पर सांचौर की तरफ जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पंद्रह पर बोर चारणान बस स्टेंड से उत्तर की तरफ दो किमी दूरी पर सैकड़ों बीघा में फैले ओरण के मध्य आया हुआ है। More Details Click Here
47.आई देमां माँ- आई देमां माँ जो कि घुवडा गाम के घुवड़ थे। नारायणदानजी की सुपुत्री और झणकली के बीठू भानदानजी इनके पति थे। इन्होंने शरणागत की रक्षा के लिये 1807 में जमर किया था।
48.आई श्रीचंपाबाई माँ- आई श्रीचंपाबाई माताजी का शुभ अवतरण श्रावण माह, शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत 1975 को ग्राम डीनसी, जिला थारपारकर, प्रान्त सिंध, पाकिस्तान में हुआ था। पिता वाघजी मेहड़ू और जनेता धनुबाई घुद की कुख से साक्षात शक्ति और ईश्वर की मूर्ति समान आई चम्पाबाई का जन्मोदय हुआ। More Details Click Here
49.आई सोनल- सोनल माँ का जन्म दि.- 08-01-1924 पोष सुदी बीज मंगलवार को हमीरजी मोड़ के घर मठडा ग्राम में हुआ आपकी माता का नाम रणबाई था, आप दि.- 27-11-1974 कार्तिक सुदी तेरस को स्वधाम पधारे थे, आपका समाधीस्थल कणेरी, तहसील- केशोद, जिला- जुनागढ में हे ! More Details Click Here
50.आई लुंग माँ- माँ लुंग सगत का जन्म वि.स.1987 आषाढ सुदी बीज को वलदरा ग्राम में अजीतदानजी आशिया के यहाँ हुआ था, आपके माता का नाम मैतबाई था और आपका ननिहाल पातुम्बरी (स्वरूपगंज के पास) में था और आपका ससुराल धनायका (जिला- राजसमन्द) में था! More Details Click Here

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