पारकर जी प्रीत- आशूदान मेहड़ू
आज जयपुर में रिमझिम बारिश बरस रही है.. ऐसे सुहावने मौसम में जन्मभूमि *”पारकर”* की याद उमड़ पड़ी.. बच्पन जहां बीता, जवानी के जश्न मनाए जहां
पाराणे पारकर की सुंदर सभ्यता से अमोल सीख मिली, कारूंझर के कुंगरों की ओट बैठ सुहावनी प्रभात की ठंडी लहरों तले मधुर रसभरे गीत गुनगुनाए, हर शाम रसभरे किस्से, कहानियां, छंद, गीत और अलगोजे की ललकार सुनी। भला!! उस मात्रभूमि को कौन कैसे भुला पाएगा, यादें, यार दोस्त व साथी सब बिछड़ गए… केवल वे सुहावने पल व उस वीर सोढों की वीरता एवं प्रखर चारण कवियों की सुंदर रचनाएं ही इस हृदय पर आजतक अंकुरित रह गई हैं। आज मानस बनाया… लोरी गाऊँ
मैंने यह लोरी स़िंधी भाषा मे गाई है… धाट पारकर वासी कच्छी एवं सिंधी भाषा प्रेमियों को अवश्य ही आनंद आयेगा।
पारकर जी प्रीत
दोहा
हारियन हेज मां खंयां, खर हर डाँहं खेत।
वठो मींहं गड़ा, पाराणे भर पेट।
पल्लर रेलम् रेत, मारू मुरकन मन में।।
वल्लर गांयुन, मेंहुंन जा, वथाणन में वीह।
छांगुं रिढ़न छ: वीहुं उठ्ठुन जुं ऊणींह।।
टोल्यूं धणारुन जुं, माणिंन मौज मींहं।
डिस्जे नथो डींहँ… ढ़कयो कारे ककरुंन।।
ढ़कयो कारे ककरुंन, कुँझर अज कमाल।
पल्लर बूँदन पट्ट कयो, धधके नीर धमाल।
खावँद डोथी खुशहाल, मारू लगन मलीर जा।।
मारू मुहिंजा मिठड़ा, पावन संन्दन प्रीत।
आदर, अदब, कुरब घणो, सुहिणां संन्दन संगीत।
राजाउंन जी रीत, पारीन मुंहिंजा पारकरा।।
तिर्ज:– पारकर तो सां केर प्रीत
न कंदो, सहंन्दो केर मयार
ड़े यार….
जडहें कारूंझर झोल
झलींदो..किरंदा कँध हजार
ड़े यार…पारकर तो सा…
1. रोज़, रस रिहाण्युं, क्ई किस्सा
कहाण्युं।
छंद, गीत अईं गाल्हियूं पुराण्युं।
डींहँ थदा, अईं रातयुं सुहाण्युं।
लगंदी दोस्तन जी दरबार….
पारकर तो सां..
केर प्रीत न कंदो….
2. तुहिंजा काचर,बोर, मतीरा
मिठा।
हवा,पाणी, सब गोठ सुठा।
कैर, साँगरी, पैरूं पक्का।
हर भिट्ट अलगोजे़ ललकार..
पारकर.. तो सां…
केर प्रीत न.. कंदो….
3. तुहिंजे कारूंझर ते टहुकन
मोर।
नदी,तलाव अईं झरणा जो़र।
मेघ मल्हार वसन हर हँद,
लँभ पट्टन ते लहरन तौर।
दिलकश नज़ारा पारकर
तुहिंजा कियँ भुलां किरतार।
पारकर.. तो सां.. केर प्रीत न
कंदो….
4. गायुँ, मेहुँ, उठ, घोड़ा सुहिणां।
मख्खण,मलायुं ,खीर,विलोणां।
झण, मठ्ठा, लगन लजी़ज़ चहुंणां
थिए थध्क पेट में…अचे डकार…
पारकर… तो सां..केर प्रीत न
कंदो.. . ..
5.मुंग, मोठ, बाझर, तुहिंजा
मिसरी।
जिन खाधा तिन किंयं वींदा
विसरी।
अँजां याद अच्चन,भले
सदी गुज़री।
उहे डींहँ मुखे डातार।
पारकर.. तो सां.. केर प्रीत न कंदो…
6. हु्ई शील, सभ्यता, उते स्नेह सच्चो।
कंदो आदर दिल सां बच्चो बच्चो।
हो नारी सम्मान अथाह उच्चो।
हो अमन,सुल्ह सदा उते,
न बुधी कडिहँ तकरार।
पारकर..तो सां…केर
प्रीत न कंदो….
7. जेका जन्मभूमि आई चँपा जी,
जेका गौराँ सती जो स्थान रही।
जेका कवि खुमाण,मीसण खेतसी, धरती जेका अंजस रही।
जिते सदेवन्त-सावलिंगा, व्यंग
पाराणे,विर्ह निज विशाल सही।
इतिहास असांजो अदल सच्चो,
जा़णे सभ संसार.. पारकर… तो सां…केर प्रीत न कंदो….
8. जिते कोल्ही रूपलो घायल सडाणो।
धणी सोढन लाए न मूर विकाणो।
कष्ट फरंगियन डिना केतरा,
नर रहयो निडर निमाणो।
अखर सोनहरी इतिहास लिखाणो
कलमबद्ध किरदार।
पारकर… तो सां…केर प्रीत न… कंदो…
9. उते हुआ दसूंधी मेहडू़ पारकरा
सोढें जा सिरमोड़ कवि ।
राठी ,डींडसी ,लाकड़खड़यो,
जागीर इनायत क्ई हु्ई ।
किशना ,चांगा,कवि चतुर ,
मेहड़ू मंझां पिण थ्या कैई ।
“आहत” वट्ट रहयो असांजो
जडिहँ सोढन जी सरकार ।
पारकर…तो सां.. केर प्रीत न कंदो…सहंन्दो केर म्यार ड़े यार
जडिहँ कारूंझर झोल झलींधो
किरंन्दा कँध हजार ड़े यार.. पारकर तो सां…केर प्रीत न कंदो।
घायल प्रीत कयो घणो,
मुखे मारयो डेई मयार।
हुन पारकर जे प्यार,
लोरी लिखण मजबूर क्यो।
👉त्वहांजो पहिंजो “आहत”👌