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महाकवि चैनकरणजी सांदू ने कहा है-
देवी नव दिन्नांह, साचै मन समरण करां।
तीन सौ साठ दिनांह, विघन न व्यापै बीसहथ।।

आप सभी सहृदय सज्जनों को पावन नवरात्रि शुभारंभ की आत्मिक बधाई।मा करनी आपके जीवन में सुख,समृद्धि, शांति तथा सद्बुद्धि का विस्तीर्ण करें एवं आप साफल्य मंडित जीवन की राह में सदैव अग्रगामी रहें।


करणीजी रा छप्पय-
 ओड़ी पड़ियां ईसरी, कोड़ी दुख दे काप।
 दासोड़ी गिरधर दखै, जुग कर जोड़ी जाप।
 बसुधा बीकानेर, जको जग जाहर जांणै।
 सको इल़ा नम सेव, देव राजो देसांणै।
 मगरै में महमाय, दाय कीधी दासोड़ी।
 तूं राजै थल़राय, जेथ नवलख जुथ जोड़ी।
 समरियां सदा आवै सगत, लाखी ओढण लोवड़ी।
 दासोड़ी दास गिरधर दखै, मया रखै तूं मावड़ी।।1

 जियै अराधी जोर, दयासिंधु सांसण दीधो।
 वळ राघव उण वाट, लोवड़ी सरणो लीधो।
 अयो बलू तुझ ओट, राज नित ऊपर राखी।
 जुड़ी मदत जगतंब, अवन थल़वट कह आखी।
 सुरराय मात करनी सदा, छात छत्र री छांवड़ी।
 दासोड़ी दास गिरधर दखै, मया रखै तूं  मावड़ी।।2

 नह सांसण में नीर, देख परजा दुखियारी।
 पड़ै केम जद पार, बात सह गांम विचारी।
 बल्लू री जद वांम, ध्यांन दे धरणै धरियो।
 तिणरै ऊपर तूठ, कुवै जळ अणथग करियो।
 करनीसर अजै उथिये कहूं, खड़ी साख थिर खेजड़ी।
 दासोड़ी दास गिरधर दखै, मया रखै तूं मावड़ी।।3

 की परचां रो पार, गुणी कुण मांड गिणावै।
 नित नित नवला होय, सको संसार सुणावै।
 विकट थळी रै बीच, खास पण पाणी खारो।
 जिको कियो गंग जोड़, साख जग भर्यो सारो।
 अराधी आद आईं अगै, छाय छत्र री छांवड़ी 
 दासोड़ी दास गिरधर दखै, मया रखै तू मावड़ी।।4

 गाया दूदै गीत, राज जिणरी लज राखी ।
 करी फतै करनल्ल, साच जिणरो वंश साखी।
 जामण जिणरी जोय, दीह मुर धरणो दीनो।
 जद तूठी जगतंब, कूप गंग जोड़ै कीनो।
 दासोडी थान थळवट दिपै, पह तोरै परताप सूं।
 करनला मात गिरधर कहै, जुग कर जोड़े जाप सूं।।5

 पढै दास छंद पूर, गुणी के चिरजा गावै।
 काली गूंगी कत्थ, मात नै बाल़ मनावै।
 मांनै तूं कर मोद, सदा अरजी सुरराया।
 मरजी नितप्रत मात, हितू हिंयै हरसाया।
 मही बात थल़ परतख मनै, देवी पख धर दोवड़ी।
 दासोड़ी दास गिरधर दखै, मया रखै तूं मावड़ी।।6

 चावो हद चहुंकूट, थान थळवट मे थारो।
 जंगळ दो कर जोड़, सदा मुरधर वो सारो।
 जादम जैसळमेर, साच मन आवै सेवी।
 पूरै इच्छा  पूर, दया करनै तूं देवी।
 सरब ही  जात तोरै सरण, छाय छत्र री छांवड़ी ।
 दासोड़ी दास गिरधर दखै, मया रखै तूं मावड़ी।।7

 ~गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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