चारण समाज मे शक्तिअवतार की कड़ी में एक अवतार माँ कामेही का भी है
माँ कामेही का जन्म विक्रम संवत 1550 में गुजरात के खम्भालीया तहसील के राण गांव के पास ढाबरडी मे हुआ था आपके पिता का नाम जसुदान बाटी था
आपका विवाह पिपलीया गांव के मेघड़ा गौत्र में हुआ था माँ कामेही खम्भालीया के पास खजुरिया नेश में अपने मवेशियों के साथ रहते थे आपके पास एक सुंदर घोड़ी थी उस समय जामनगर पर राव लाखणसी का राज्य था लाखन की पुत्री का विवाह था विवाह समारोह में भाग लेने हेतु अनेक राजा,उमराव,कवि,विद्वान,पंडित सभी आये हुए थे राव के जंवाई ने कामेही जी की घोड़ी मांगी इस पर राव लाखन ने सैनिकों को गढ़वियो के नेश से घोड़ी लाने हेतु कहा पर सैनिकों व सामन्तो ने चारणों के नैश से घोड़ी लाने में असमर्थता जाहिर कर दी परन्तु राव लाखन स्वयं सैनिको को लेकर खम्भालीया गया वहां से खजुरिया नैश जहां माताजी विराजमान थी घोड़ी लेने पहुंचा
चारणों के नैश में पहुंचते ही माताजी का अलौकिक रूप देखकर उसकी मती भृष्ट हो गयी माताजी ने जब राजा को देखा तो उसे बधाने हेतु थाल सजाने लगी जैसे ही माताजी ने अक्ष,कंकु,नारियल थाल में रखकर बधाने आये तब राव लाखण ने कहा भाभी इसकी जरूरत नही मुझे आपकी जरूरत है माताजी ने ऐसा सुनकर झट से पलट कर अपने नैश में गये व अपने शरीर के अंग काटकर थाली में ले आये और कहा कि तुझे इसकी ही जरूरत थी न देखते देखते राजा के सामने अपने स्तनों को कटार से काटकर थाली में रखने लगी यह देखकर राव लाखण वहाँ से भाग गया और माताजी उनके पीछे पीछे पधारने लगे और कहा कि दुष्ट तेरे पाप का घड़ा अब भर गया है और जामनगर के पास सरहद पर आकर रेत का आसन कर विराजमान हो गये
शेष अगले अंक में
माँ लूंग सगत शरणम ग्रुप से
नरपतसिंह आशिया वलदरा जिला सिरोही राजस्थान।
परम पुज्य आई कामबाई माँ
{{पींगलशीभाइ पी. पायक // मातृदर्शन}}
पोस्ट टाइप:- सामराभाइ पी. गढवी, कल्याण पी. गढवी.
गाम:- मोटी खाखर कच्छ
आइ कामबाई सौराष्ट्रमां हालारमां थई गयां. जाम खभाळिया पासेना पीपळीआ तेमनो नेश हतो. तेओ जामनगरना स्थापक रावळ जामनां समकालीन हतां. संवत १५५० लगभग तेमनो जन्म थयो होवानुं मनाय छे. तेमनाप पिता नु नाम जशोभाई बाटी हतु. जशाभाईनी ६० वर्षनी वये तेमने त्या पुत्री जन्म थतां तेमनु नाम “आइ कामई” पाडवामां आवेलु. आइ कामबाईने पीपडीआ नामना गामे वाचा (पेटा शाखा मेघडा) शाखाना चारणोमां परणावेलां. आईनी घर गृहस्थीनी स्थिति बहु सारी हती खूब माल ढोर- भेशो गायो हतां. खेतीवाडी पण मोटे पाये सारी हती. एमना पति बळदो धोडाओनो वेपार पण करता हता. आई पोते घणा स्वरूपवान, तपस्वी, अने दिव्य प्रभाथी दीप्तिमान हतां. ए जमानामां एमना रूप, तेजस्विता, अने दिव्य चमकनो कोइ झोटो न हतो. सवत १५७० लगभगनी जामनगर वस्या पहेलांनी आ वात छे. कच्छमांथी हालारमां ऊतरी आवेल प्रसिद्ध रावळ जामनी राजधानी ए वखते जाम खभाळियामां हती. आईना पति वेपारना कामे बहार गाम गएला, त्यारे एक दिवस सवारना पहेला पहेरे आई कामबाई तथा नेशाना बीजां माणसो सौ घर काममां गूथाएलां हतां ए वखते खभाळियाथी थोडाक माणसोना रसाला साथे नीकळेल रावळ जाम ए नेश पासे पहोंच्या. भेशो गायो चरीने पासेनी नदीमां पाणी पी रही हती. वृक्षोनी जामेली घटाथी नेश कृष्णना गोकुळ जेवो शोभतो हतो. रावळ जाम तथा तेनी साथेना माणसोने तरस लागेली एटले पाणी पीवा माटे नेश पासे आव्या. जाम साहेब वगेरेने पाणी पीवु छे, तेवी खबर मळतां ठंडा पाणीनु वासण लोटा प्याला उपडावीने आई कामबाई नेश बहार पधार्या. सौने पाणी पायुं अने खूब आग्रह करी नेशमां तेडी गयां साकर एलची नाखीने उकाळेल दूधनी तासळीओ भरी भरीने सौने आग्रह पूवक पाई. जमवा माटे रोकाइ जवानो आग्रह कर्यो, पण जाम रावळने ऊतावळ होवाथी रोकाया नहि. रावळ जामनी साथे ए दिवसे राजा नामनो एक चारण हतो, जेने आई कामबाइनां सासराना कुटुंब वाळाओ साथे अणबनाव हतो. ए राजा नामना चारणे ज रावळ जामने कहेलुं के – चारणनी दीकरीने- आई कामबाइने “भाभी” कहेवाथी ते प्रसन्न थसे’ अने रावळ जामे तेनो कहेवाथी भूल खाधेली. रावळ जामे २०० कोरी आपवा मांडी पण आइए के बीजा कोइ चारणे तेनो स्वीकार न कर्यो. दरमीआन चारणत्वनी दिव्य प्रसन्नतानां, किरणो प्रसरावतु आईनु दैवी रूप जोईने जाम रावळनां पाप कर्मोए तेने भूल खवरावी अने आईना मुख कमळ तथा अं गो पर लोलुप नजर फेकीने मश्करी करतो होय तेम ते बोल्यो के “भाभी ! आ तो जामनी भेट कहेवाय, ए भेट तो तमारे राखवी ज पडे. समज्यांने !{{तुंबेल चारणोमां सर्वे परणेतर बाईओने मानपूर्वक बाई बहेन कहीने बोलाववामां आवे छे. एक पति ज बाई बहेन कहेतो नथी. वहु कहेवानो रिवाज ज नथी. कारण के सौ चारण पुत्रीओ सासरे होय के पियरमां तेमने जगदंबाओ आइयो मानीने कोइ वहु तरुके के भाभी तरिके संबोधन करतुं नथी}} एम कहीने फरीने तेणे आईना प्रभा प्रसारता रूप पर कुदष्टि करी. ‘भाभी. ए शब्द साभळतां ज तपोमूतिॅ आई रावळ जामना ए शब्दमां घोळेलु झेर पारखी गयां पोताना शारीरिक रूप पर चारणपुत्रीना रूप पर कोइ कुदष्टि करवानी हिम्मत करे ए विचार तेमने हळाहळ झेरथी पण विशेष भयंकर लाग्यो. तीखी तरवारनी धार जेवी एमनी चारणवट भभकी ऊठी, तेमनी आंखो ध्रमेल त्रांबा जेवी थई गई. तेमांथी अग्रि शिखाओ वषॅवा लागी. एमनु आखु शरीर रोमेरोम प्रजवली ऊठयु अने पोते बोल्या के ” रावळ जाम ! गोझारा ! ते मने चारणने ‘ भाभी’ कही, मारी पर चारण पुत्री पर कुदष्टि करी, नक्की तारी बुद्धि नाश पामी छे. चारण राजपूतना पवित्र संबधने तु अभडाववा तैयार थयो ! तने रूप जोईए छीए, ऊभो रहे, हमणांज हु तने रूप आपु छु एटलु बोली जगदबा स्वरूप आई कामबाई पोताना झुपडामां कटारी लेवा गयां आ बाजु आईनी अग्रि वर्षावती दष्टिथी दाझेलो अने तीखी तरवार जेवी वाणीथी घवायेलो रावळ जाम पोतानु मलिन मुख लइने साथीदारो साथे नेश बहार नीकळी भाग्यो. त्यां तो काळजाळ आई खुल्ली कटारी साथे बहार आव्यां, तेनी पाछळ दोडयां अने बोल्यां ऊभो रहे, ऊभो रहे गोत्र हत्यारा ! ऊभो रहे. मारू रूप तारे जोइए छीए ते लेतो जा. एम कहीने आईए कटरीथी पोतानुं एक स्तन कापीने दोडी जइने रावळ जाम तरफ फेकयुं आईनो प्रचड पडकार सांभळीने रावळ जाम ध्रुजी ऊठयो. तेणे आतॅ भावे पोतानु मुख आई तरफ फेरव्यु त्या तो आईए पोतानु बीजु स्तन पण कापीने तेना तरफ फेकयु अने बोल्यां के रूपना रसिया चारण आईना रूपनी ते राजपूते लालच करी? ले लेतो जा ए रूपने. हाथमां लोहीयाळ कटारी साथे लोहीथी बबोळ आईना विकराळ स्वरूपने जोइने ध्रुजतां ध्रुजता रावळ जामे हाथ जोडया. तेनी आखोमांथी पश्र्वातापनां आंसु वरसवा लाग्यां अने ते गळगळो थई बोल्यो के ”माडी ! जगदबा !मारी आभ जेवडी मोटी भूल थई. कये मोढे क्षमा मागू? आपनो अपराधी छु, आप चाहे ते सजा करो. आईए उत्तर आप्यो के “रावळ जाम !मारो अवतार माँ नो छे. माँ सजा नकरे. एटले मारे तने कांइ सजा करवी नथी. पण तारी कुदष्टिए अभडावेल रूपवाळु शरीर हवे मारे न जोइए. ए रूप ए शरीर जेणे आप्यां ते जगदबाने हु अर्पण करू छु ते जोतो जा. रावळ जाम बोल्यो के माँ ! माँ ! खमेया करो. मारा हजार गुना माफ करो. आईए उत्तर आप्यो के तने बधु माफ छे पण याद राखजे कोइ दिवस भूले चूकेय चारणोना नेश सामे नजर नाखतो नहि. मारां आ वेणनु उल्लघन करीने जे दिवस अमारा नेश पर नजर नाखीश ते दिवस तारू आयुष्य समाप्त पृरू थशे, एम चोक्कस मानजे. नेशनां सर्वे मनुष्यो आईने पगे पडवा लाग्यां. तेमने आईए पोताने माटे तात्कालिक चिता तैयार करवानु जणाव्यु चिता तैयार थई एटले आई तेना पर आरूढ थयां. आईनु ए समयनु प्रलायाग्रि समान दझाडतु स्वरूप जोइने कोइने कांई कहेवा बोलवानी शुद्ध रही नहि, हिम्मत चाली नहि, सौ शोकमग्र थई मूगे मोढे जोइ रह्या,
अने आइए “ज्या माताजी जय जगतम्बा बोली कटारी गळामा पहेरी लीधी अने तेओनो साथी (खेती काम करनार) एक हरिजन वणकर हतो, तेणे पण कटारी खाईने मृत्यु वहोरेलुं. आईनी चिता पर घी रेडवानु सूचन कयु ते घी रेडाइ रहेतां आइए पोताने हाथेज अग्नि प्रगटायो. क्षणवारमां अग्निदेवनी जवाळाओ आईना देहने वीटी वळी अने ए देह आकाश वायु अग्नि जळ अने पृथ्वीनां तत्त्वोमां मळी गयो.
रावळ जाम पश्र्वातापनां आंसुथी उभराता हृदये पोतानी राजधानी तरफ रवाना थया. अने तेणे ए दिवसथी खजुरीयाना (पीपडीआ) मार्गेथी नीकळवानु बध कर्यु जीवनभर काळजी सेवी, चारणो दूभाय नहि अने प्रसन्न रहे तेम र्वत्यो. कहेवाय छे के जीवनना छेला दिवसोमां वृध वये एक वखत तेमना एक राणी साथे ए प्रसंगनी वात करतां राणीए खजुरीया नेश कई बाजु आव्यो, ते पूछतां ख्याल फेरथी जाम रावंळे ए नेश बाजुनी बंध रहेती बारी उघडावीने ए नेशनी दिशा तरफ आंगळी चीधी त्यां वीजळीना प्रवाहनी माफक एक कुदरती झाटको लाग्यो अने जाम रावळनु प्राण पंखेरू ऊडी गयुं.
आई कामबाईना आ आत्म बलिदानना प्रसंगनी स्मृतिमां घणा काव्यो लखायां छे तेमांथी नीचेना त्रण दोहा विशिष्ठता वाळा छे. जे नीचे मुजब:-
दोहा
हु भीनने तु भा, (ई) साचो आदूनो सबध;
(तोय) कवचन, काछेला ! कये अवगुणे कढ्ढीऊं,.,.,.1
(कच्छ थी ऊतरी आवेला एवा) हे काछेला राजा ! चारण बाईओ अने राजपुतो वच्चेनो सबंध बहेन-भाइना पवित्र सबंध जेवो छे.ए न्याये हुं तारी बहेन थाउ अने तुं मारो भाई था, छतां तें मारामां एवो शुं अवगुण जोयो, एवी शुं अपवित्रता जोई के जेथी तें मने अयोग्य वचन – कुवचन थी संबोधन कर्यु ?
चारण राफ न छेडीये जागे कोक जडाग;
जागी जाडेजा शीरें, कामइ काळो नाग.,.,.,.,२
भावार्थ:- चारणना घर-नेश रूप राफ़डानी छेडछाड कोइए करवी नहि. एनी छेडछाड करवामां आवशे तो ए राफ़डामांथी काळाग्नि समान भयंकर कोइ फणिधर नाग प्रगटशे, जाडेजा रावळ जामे आई कामबाई पर कुद्दष्टि करी, तेमने छेडयां, तेनुं परिणाम ए आव्युं के आई कामई काळा नाग जेवां बनीने ए जाडेजा रावळ जाम ना मृत्युनुं कारण बन्यां.
चारण ने चकमक तणी ओछी म गण्ये आग;
टाढी होय ताग, (तोय ) लागे लाख णशी हरा ! .,.,३
भावार्थ:- हे लाखा जामना पौत्र रावळ जाम ! चारण अने चकमक ए बन्नेमां गुप्त रीते- सुषुप्त रीते अग्नि रहेलो होय छे, ए अग्निने तुं अल्प मानतो नहि. एमने स्पर्श करतां- एमनी साथे व्यवहार करतां ए बन्ने भलेने बहारथी ठंडा-शीतळ लागे, तेमनी अंदर गुढ रूपे रहेल अग्नि शांत लागे. पण घर्षण थतां तेमांथी अग्नि प्रजवळी ऊठे छे, जे बाळीने भस्म करे छे.
श्री नरूजी कवियाए लखेल “जगदंबारा पवाडा” नामना चित्त इलोल गीत मा आई कामई विषे तेमणे गायु छे के:-
आंगळीसूं लाय लागी, जागी सब तन जुप, कामही ! तें कोप कीधो भसम रावळ भुप –
तो बेकूफ, जी बेकुफ बदीओ बात मुख बेकूफ.
{आइ कामबाइए ज्यां शरीर छोडयु त्यां एक जुनो ओरडो अने तेमनी खांभी हती ए ओरडो पाछडथी पडी गयेलो. पू. आईमा श्री सोनबाईमां माडी गामे एक नील पारायना प्रसंगे पधारेलां तेमने ए स्थानक जर्जरित थयानी में वात करतां पोते ए स्थान जोवा पधार्या अने तेओश्रीनी प्रेरणाथी ए ओरडानो जीर्णोद्धार करी त्या सुंदर मजाना बे ओरडा करवामां आव्या छे. अने माताजीनु नियमित पूजन आरती करवामां आवे छे. अने दर वरसे बाराडी पंथकना सर्वे चारणो त्यां जात्रा निमित्ते भेळा थाय छे. मेळो भराय छे.}
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