श्री खेतरपाळ रो छंद
रचना–राजेन्द्र दांन विठू (कवि राजन) झणकली।
व्याधी विपदा वासदी त्रासदी ऐरू टाळ।
डेरलाइ रा डोकरा खम खम खेतरपाळ।।
विघन हरण वरदावतों संकट मेट सदाय।
सुख संपत समपो सदा खेतरपाळ खमाय।।
छंद त्रिभंगी
धन धन तुझ धामां करत सलामा देवत दामा दरबारी
ओटे सम आमा मेरख मामा नमत नमामा नरनारी
भागे दुख भामा दुष्ट दमामा तुरत तमामा तमा तमा
मॉमड़िये वाळा देव दयाळा खेतरपाळा खमा खमा जी रह रखवाळा हमा तमा,,,,,1
मोहवर्ती माजी होवत राजी जद हिंगलाजी आयाजी
पावन सुत पाजी मेरख भा जी मोमड़िया जी माया जी
सातों बहना जी संग तुझ आजी सब सुख थाजी समा समा
मॉमड़िये वाळा देव दयाळा खेतरपाळा खमा खमा जी रह रखवाळा हमा तमा,,,,,2
तन सिंदूर तारी गळ मण कारी खड़गो धारी खपराळा
मद छाक अहारी पूजत प्यारी जनता सारी जबराळा
करतो हितकारी स्वान सवारी नवलख वारी नमा नमा
मॉमड़िये वाळा देव दयाळा खेतरपाळा खमा खमा जी रह रखवाळा हमा तमा,,,,,,3
चेलो चामुंडा भय भेकुंडा चार भुजंड़ा चतवारी
भेरू भळकंड़ा नाच नचंडा खळ बळ खंडा खगधारी
दुश्मण दळ दंडा रुण मुण रुंडा प्रेम प्रचंडा पमा पमा
मॉमड़िये वाळा देव दयाळा खेतरपाळा खमा खमा जी रह रखवाळा हमा तमा,,,,,,4
भैरव भयहारी सरवत सारी दाळद टारी दुखियारी
धूजै मणधारी भोपा भारी मरजन मारी मुखियारी
बोतल मद वारी अज शीशारी दे दुनियारी दमा दमा
मॉमड़िये वाळा देव दयाळा खेतरपाळा खमा खमा जी रह रखवाळा हमा तमा,,,,,5
भेरू भुरजाळा अगर खेवाळा पाँचम वाळा पुजवारा
लळगछ चुरमाळा नारेळाळा मिसर मेवाळा चढ़वारा
खेवे घी ख्याळा पूज चढाळा ठावत ठाळा ठमा ठमा
मॉमड़िये वाळा देव दयाळा खेतरपाळा खमा खमा जी रह रखवाळा हमा तमा,,,,,,6
काळा बीड़लिया थुथा थलिया गूगर गलियां गळ मलिया।
चावर टीकलिया धौळा धलिया वाछ उतरिया वळ वलिया
पटेळा पलिया दूधा दलिया धर पर धरिया धमा धमा
मॉमड़िये वाळा देव दयाळा खेतरपाळा खमा खमा जी रह रखवाळा हमा तमा,,,,,7
बाजत नग बम्मा ढम ढम ढम्मा झालर झम्मा झम झम्मा।
घुंघरू घम घम्मा छेरल छम्मा खण क़त खम्मा खम खम्मा।
नाचत नम नम्मा बावन बम्मा धूजत धम्मा धमा धमा
मॉमड़िये वाळा देव दयाळा खेतरपाळा खमा खमा जी रह रखवाळा हमा तमा,,,,,,,8
दुख दाळद हरणा भर सुख भरणा काज सुधरणा किरतारा
कीरत कव करणा नमता निरणा जय जग जरणा जयकारा
राजन तव शरणा चमरों ढरणा शबद उचरणा समा समा
मॉमड़िये वाळा देव दयाळा खेतरपाळा खमा खमा जी रह रखवाळा हमा तमा,,,,,9
छपय
देव बड़ो दातार खेतरपाळ तोय खमा
देव बड़ो दातार सदा आगळ शीश नमा
देव बड़ो दातार मेरख मॉमड़ तात रो
देव बड़ो दातार सहोदर बहना सात रो
सहोदर बहना सात रे पूजिजे जग परियाण
कर जोड़ कवि राजन कहे कष्ट भय टाळे कुबधाण।।
भूलचूक करजो भली आपो कवि आशीष।
राजन शरणे रावळी सदा नमावों शीश।।
जय खेतरपाल जी री
कर्ता कवि राजेन्द्र दान विठू(कवि राजन झणकली)