दयाहीन दुर्देव ने हमारे सेवाभावी सखा गोसेवक श्रवण जी गुर्जर को हमसे छीन लिया। रेल की पटरी पर निश्चिंत बैठी गोमाताओ को हादसे से बचाने हेतु अपनी जान जोखिम में डाल कर दनदनाती रेल से गायों को बचाने वाला अपने आपको नहीं बचा सका। कलियुग के इस स्वार्थी दौर में निःस्वार्थ भाव से गायों को बचाने वाले को बचाने जब गोपाल कृष्ण नहीं आया तो मन बड़ा विचलित हुआ। गोपाल कृष्ण को उलाहना देकर अपना दर्द बयां करते हुए सखा श्रवण जी को अपनी भावांजलि भेंट करता हूँ –
अरे वा’रे जगत जहान रखवारे तेरे,
अटल अन्यारे कार पार मैं न पा सक्यो।
विरुद गोपाल धारे काम नाम सारे कारे,
गाय के पुकारे हाय रेल ना रुका सक्यो।
गूजरी के जाये को पठाए झट धेनु काज,
कहे ‘गजराज’ हाय! श्याम तू न आ सक्यो।
न्याय पे तिहारे करें काय पतियारे कृष्ण,
गाय को बचाने वारे को न तू बचा सक्यो।।
रेलपाथ के मंझारे बैठो गोधन निहारे,
दया दिल में विचारे आयो दौड़ के उठाने को।
दे दे टिचकारे गाय करत किनारे इते,
देती फटकारे रेल आई क्यों ये जाने को।
गुजरी को लालो ‘गजराज’ सेवाभावी सखा,
रामा! रामा!! बोलतो हो नागर रिझाने को।
गाय को बचाने धायो श्रवण सिधायो स्वर्ग,
हाय! क्यों न आयो कृष्ण उसको बचाने को।।
हवा कलिकाल वारी क्रूर ओ करारी यातें,
बच्यो ना बिहारी ठाढ़ो भूलि के ठिकाने को।
कवि ‘गजराज’ ब्रजराज ने बिसारी बाण,
आयो ना गोपाल लाल ग्वाल को बचाने को।
सखा बिछुरे को सोच एतो ना रहेगो सदा,
रहेगो न मोच मन वाके चले जाने को।
सोच ये रहेगो श्याम भयो ना सहाय आय,
मेरे मन मोच तेरे विरुद भुलाने को।।
आए हैं सो जाए यामें काहे पछिताए,
काहे मातम मनाए, नहीं याको समझाने को।
शोक को सिराने नहीं ढाढ़स बंधाने,
नहीं कवित्व दिखाने नहीं किसी को रिझाने को।
गाय को बचाने वारो बच्यो ना हमारे बीच,
ब्रजराज आयो नहीं ‘श्रवण’ बचाने को।
कहे ‘गजराज’ मैंने कवित्त रचे हैं कृष्ण,
लज्जित तिहारी लाज यह बतलाने को।।
हे परमपिता परमेश्वर! दिवंगत आत्मा को श्री चरणों में वास देना
~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’