आज का प्रश्न यह है कि हम ईश्वर चिंतन, भगवत गुणगान, मैया की वंदना एवं यज्ञ आदि खूब करते हैं परन्तु हमारी प्रार्थनाएं जो शतप्रतिशत फलीभूत हों, हमें मन चाही सफलता एवं शुभ ईच्छाओं की पूर्ति हो वैसा फल क्यों नहीं मिलता ? यह एक गहरा विचारणीय मुद्दा है, तो आइए… हम इस पर अपनी शक्तियों का केंद्रीयकरण कर आत्मसात हो मंथन करें कि कहां ऐसी चूक हो रही है जिसके कारण विफलता ही हिस्से आती है । विद्वानों ने दो प्रसंगों में युं आपना अभिप्राय दिया है।।
पहला प्रसंग….यह स्कंद पुराण में आठवें स्कंद का वर्णन है….
” गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र ”
जब गज को मगर ने अपने महान शक्तिशाली दांतों में जकड़ लिया.. गजराज के प्राण कुंठित होने लगे तब गज ने प्रभु को पुकारना शुरू किया… हे प्रभु ! बचाओ.. बचाओ..बड़े ही पीड़ित स्वर में एक पुष्प अपनी सुंड मे लिए हुए गजराज ईश्वर को पुकार करने लगे। गजराज की करुणामयी पुकार सुन प्रभु अविलम्ब गुरुड़ पर सवार हुए व पलक झपकते ही प्रथ्वी की तीन बार परिक्रमा कर डाली और कहा कि मेरा दास कहां है । देवताओं के देखते ही देखते भगवान गुरुड़ से उत्तर सरोवर से मगर को खींच बाहर लाए व चक्रदार से उसका शीश छेदन कर उसी क्षिण गज को बचा लिया…👌
अब दूसरा प्रसंग द्रौपदी के चीरहरण समय का है….विद्वानों ने लिखा हे प्रभु ! जब गज ने पुकारा तो आप एक क्षिण मे ही वहां सरोवर तट पहुंच गए और द्रौपदी अबला की जब बीच सभा में लाज जा रही थी व द्रौपदी हाय प्रभु ….हाय प्रभु… पुकार रही थी फिर भी आप विलंब से क्यों पहुंचे ? पीड़ एक को प्राण बचाने की और दोसरे को लाज बचाने की थी…भक्त तो दोनों गज और द्रौपदी आपके ही तो थे…आपका वायदा क्या! भक्तों की श्रेणी पे आधारित है…कौनसा पहले व कौनसा बाद में । यह समझ में नहीं आया प्रभु । तो भगवान ने विद्वानों के प्रश्न का उत्तर युं दिया।
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प्रभु ने कहा…” गज ने जब मुझे पुकारा तो पूर्ण द्रढ निश्चय, अटल श्रद्धा एवं एक ही विश्वास के साथ कि मुझे मेरे प्रभु जरूर बचाएंगे।
यह अटूट श्रद्धा देख में बिना विलंब के गज को छुड़ाने उमड़ पड़ा । अब जब द्रौपदी मुझे पुकार रही थी तो उसने साड़ी का एक पल्लू दांतों के बीच दबा रखा था कि कहीं मुझे बीच सभा मे नग्न ना होना पड़े…जबतक मेरे नाथ आएंगे मैं साड़ी का एक छेड़ा दांतों तले दबा कर रखूंगी।
बस, यही तो पूर्ण श्रद्धा मे फर्क है। अतः मेरी विलम्ब कारण यह था बाकी बचाना तो मेरा कर्तव्य है इसमें कोई शंका नहीं ।
भावार्थः—हमारी प्रार्थना, आराधना एवं पूजा ईश्वर के दरबार में तब स्वीकृत होगी जब हम सभी, सब कुच्छ, सच्चे दिल से भगवान के चरणों मे समर्पित कर देंगे तो स्वतः ही इच्छा पूर्ण होगी ।
इसी भावार्थ को मदेनजर रख, यह निम्न पंक्तियां आप सब शिव शक्ति भक्तों की सेवा में प्रस्तुत हैं।
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👍क्यों ! नहीं सुनते कृपालु 👌
कविताएं हम करते सभी ,
कृपालु क्यों ! सुनते नहीं ।
क्या! यशगान शुद्ध आत्मा से,
बीज प्रीत बोते नहीं ।।
यहाँ कहने को कुच्छ और है ,
करने का कुच्छ है अजीब ।
बस, बातें बतंगड़ बेवजह ,
हम द्वेष दाग़ धोते नहीं ।।
गर,मिल जाए मौका कभी ,
चोट करना नहीं चूकें ।
हे देव चारण ! शब्द तेरे ,
क्यों ! एक्ता पोते नहीं ।।
धंसता जा रहा,देव चारण ,
कुरीतियों के कुंड में ।
भाता नहीं भवानीपत्यै ,
जीना इन्हें इक झुंड में ।।
टक्कर बिखर, इधर उधर,
आज चारण है चला ।
गहरा नहीं कोई घाव ऐसा ,
फिर, और क्या, कारण भला ।।
पहचान खो कर, पाओगे क्या !
आपसी…टकराव… में ।
शक्ति सिमटती,साख घटती ,
बात बिगड़ती बेतुके बर्ताव से।
अर्ज मेरी ,आज सुन लो ,
काँन खोल सारे सज्जन ।
जो,गढ़ एकता ढ़ह गया ,👈
हो जाएंगे सारे दफन ।।
माता भवानी, क्षुब्ध खासी,
यह देख चारण आचरण ।
जब, देव ही दानव बने !!
मैया देती नहीं कबहु शरण ।।
ना महादेव माने,ना मैया पहचाने,
द्वार हम जाएं जभी ।
ना इधर होगा, ना उधर होगा ,
तेरा आसरा चारण तभी ।।
👍 ( अतः एक ही उपाय)👌
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लो ! लौट कर हम लिपट जाएं ,
शिव यति की शरण में ।
कहीं घुस न जाए , घुल ना जाए ,
विष देव चारण वर्ण में ।।
इस ” आहत ” के भी आचरण में… लो ! लौट कर हम लिफ्ट….
जाएं ..शक्तिरुपी ..शरण में ।🙏
🙏👇
हम गण तुम्हारे, बे सहारे ,
शंभू तेरी शरण हैं ।
उबार लेना उमापति ,🙏
तू हि तारण तरण है ।।
मृतयुंज्य…महादेवाय…
नम: शिवाय….नमः शिवाय…
नमः शिवाय…….. 🕉 कहविता..हम..करते…सभी👌
विनीत:—-आशूदान मेहड़ू “आहत” जयपुर राज.।🔱✅