मैं देख देख हो रहा निहाल जिंदगी,
कदम कदम पे कर रही कमाल जिंदगी।
वो गाँव जो कि टीबड़ों के बीच में बसा हुआ,
कि अंग अंग अर्थ के अभाव में फंसा हुआ।
अकाल पे अकाल सालोंसाल भाल-लेख ये,
कि कर्ज-कीच में हरेक शख्स था धंसा हुआ।
बेहाल में भी ना हुई निढ़ाल जिंदगी,
कदम कदम पे कर रही कमाल जिंदगी।
अभाव में भी भाव ये कि है नहीं कमी कहीं
न हीनता न दीनता न नैन में नमी कहीं
बलैयां बार-बार मैं विचार के ये ले रहा
रुकी नहीं झुकी नहीं थकी नहीं थमी नहीं
महान मूल्यबोध की मिसाल जिंदगी
कदम कदम पे कर रही कमाल जिंदगी
साँस-साँस स्नेह से संवारती रही है तू
नित्य नव्य नेह दे निखारती रही है तू
भूल से भी मूल से न रंच भी डिगी कभी,
उसूल के लिए समूल वारती रही है तू
(तू) चालती रही है ज्यों ही चाल जिंदगी
कदम कदम पे कर रही कमाल जिंदगी
तू प्रीत की पुनीत रीत पालती रही सदा
ओ आँख में अनूप स्वप्न डालती रही सदा
मैं हुआ निराश तो तू बन के आस आ गई,
कि टूटता रहा मैं तू संभालती रही सदा
जिंदादिली के जाविये की ढाल जिंदगी
कदम कदम पे कर रही कमाल जिंदगी
है आज वो ही गाँव मेरा पाँव पे खड़ा हुआ
संसाधनों ओ साधनों का दायरा बड़ा हुआ
ये काहे का सुरूर है अभी तो लक्ष्य दूर है,
है मंजिलों का रास्ता वो आसमां अड़ा हुआ।
तू काल के कपाल दे कुदाल जिंदगी
कदम कदम पे कर रही कमाल जिंदगी।
है इल्तिज़ा ये एक ही कि स्वाभिमान साथ दे
जहां का साथ हो न हो, ऐ जिंदगी तू साथ दे
कि ये मित्रता मरे नहीं सुपंथ से टरे नहीं,
हताश हो जो हौसला तो हाथ मेरे हाथ दे
मचाके शत्रु-वक्ष में भूचाल जिंदगी
कदम कदम पे कर रही कमाल जिंदगी।
~डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”