आज विचार आया कि इस संसार में गर्ज क्या क्या रंग दिखाती है एवं गर्ज मे फर्ज़ की फाड कैसे फिट हो जाती है ।
इस गर्ज मे फर्ज़ की फाड से स्वयं भगवत अवतार भी अछूते नहीं रहे… उन्हें अपने भक्तों की लाज रखने के लिए, उन्के प्रण पूर्ण करने के लिए स्वयं उपस्थित हो कारज सारने पड़े। इसके अलावा जगत को महसूस करवाने के लिए
स्वयं की गर्ज के भी उदाहरण जगत के सामने पेश किए ।
हम तो प्राणी हैं हमें गर्ज मे गज़ब के रोल अदा करने पड़ते हैं… तो लिजिए “गर्ज में फर्ज री फाड”
का वर्णन।👇👇👇
👍 गर्ज में फर्ज री फाड 👌
🌈 गीत 🌈
गर्ज मे फर्ज री फाड इणविद्ध फसे,डसे ज्यां कालियो रात
काली।
गर्ज में अनेकों अवतार घण ईश्वरा
गर्ज अर फर्ज री वात पाली ।।
गर्ज गूंगी बणे फर्ज रे फेर में,
सेर ने साब्तो पाव तोले ।
गर्ज मे गाबड़ो नेण नींचा करे,
वेण पण मुख सुं नांहि बोले ।।
गर्ज में रूप,बहुरूप गिरधर किया,
भीर वेला भक्त काज सारया ।
चेन खवास रि चाकरी सार ने,
नाई बनी नृप प्रण पारया ।।
गर्ज मे द्रौपदी दासी बणी,
गर्ज मे कानजी गायो चरावे ।
गर्ज बिन कोई पूछे न गाछे ,
गर्ज बिन कोई आवे न जावे।।
गर्ज मे बृहनट्टा वेस पारथ कियो,
द्वारपाल बणंताँ भीम देख्या ।
गर्ज मे चुड़ियाँ कामिनी कारणे,
वेचतां मुरलीधर ओपता देख्या ।।
गर्ज मे रामजी केवटा आगले ,
भागले पगे पग पखवार डारया।
वच्चनबद्ध होय ने जानकीनाथे,
जुगोजुग भील रा वँश तारया ।।
गर्ज मे नेताजी गिड़गिड़े गाबड़े,
थाबड़े थोक नमत् देख्या ।
गर्ज मे स्वार्थी परमार्थी पापीया, खमत वेण कड़वा, रमत रैण पेख्या ।।
गर्ज मे घेलियो, नार अलखामणी,
प्रीत इण रीत रि पाप पाले ।
गर्ज मे घात ऊंडी करे आपरा ,
छापरा लग आग चाले ।।
गर्ज सारे एक स्वार्थ बिन साँवरो,
नाम रो जाप नर्क टारे ।
भक्त रे फर्ज री कर्ज चुक्तु करण,
वालीड़ो चोपता वेस धारे ।।
जगत मे स्वार्थी सारथी सगला ,
हरि सत्य हेकलो हेत राखे ।
कवि “आशू “कहे पूंछड़ी पटक ले,
कदे नि झूठ री खेत पाके ।।👌
गर्ज…मे…फर्ज..री…फाड. .. इणविद्ध…फंसे….🙉👏🙊👏आशूदान मेहड़ू जयपुर राज.