कौन किसकी बात को किस अर्थ में ले जाएगा
यह समूचा माजरा तो वक्त ही कह पाएगा।
आसमां में भर उड़ानें आज जो इतरा रहे हैं,
वक्त उनको भी धरातल का पता बतलाएगा।
जिंदगी की चाह वाले मौत से डरते नहीं,
कौन कहता है परिंदा आग से डर जाएगा?
था हमारी हर अदा पे नाज जिसको आज तक,
क्या पता था वो हमारी खामियां गिनवाएगा।
जिंदगी के ‘ज’ तलक से अबतलक अंजान है,
कल हमें वो ही सलीके-जिंदगी समझाएगा।
है उसूलों से हमारी यारियां गहरी ‘गजा’,
बीच में आएगा उससे यार ये टकराएगा।।
~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’