।।दोहा।।
सुरपत केम बिसारियो, मरुधर हंदो मोह।
मारण सूं अबखो मरू, बरखा तणो बिछोह।।
।।छंद – सारसी।।
बरखा बिछोही शुष्क रोही,
और वोही इण समैं।
मघवा निमोही बण बटोही,
हीय मोही लख हमैं।
बलमा बिसारी धण दुखारी,
जीव भारी कष्टकर।
पत राख सुरपत दर बिसर मत,
मेट आरत मेह कर।
जिय देर मत कर मेह कर।
कैक काट्या देख दिनड़ा,
एक इण हिज आस में।
निरस तन नैं हरस मिलसी,
सरस सावण मास में।
पिय दरस दे बण बरस बादळ,
परस पावन देह कर।
पत राख सुरपत दर बिसर मत,
मेट आरत मेह कर।
जिय देर मत कर मेह कर।।
अरज सांभळ कंत कांठळ,
बण सकळ इळ पर उमड़।
गरड़ाट कर धर गाज गहरो,
घरर घर घररर घुमड़।
सुरराज मिलियां जीवसोरो,
निरख अवनी नेह कर।
पत राख सुरपत दर बिसर मत,
मेट आरत मेह कर।।
‘गजराज’ सावण मन्न भावण,
आज खावण आ रह्यो।
वणराय सूखी गाय भूखी,
लाल लूखी खा रह्यो।
अब छोड़ ऐठण हे सजन घण,
दरद मेटण देह धर।
पत राख सुरपत दर बिसर मत,
मेट आरत मेह कर।
जिय देर मत कर मेह कर।।
~डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”