दिनांक 02जुन 2019को कविराजा विभुतिदान बीठु की जयंती कार्यक्रम लालसिंहपुरा सींथल बीकानेर मे कविराजा विभुतिदान जी की मूर्ति स्थल पर
कविराजा विभूतिदान का घराना
चारण – कवियों में एक खांप बीठू नाम से संबोधित होती है। उस खांप का प्रवर्तक चारण बीठू भादरेस (जोधपुर राज्य !) गांव का निवासी था। फिर उसने अपने नाम पर बीठणोक गांव बसाया। उसके वंशधर बीठू कहलाते हैं । बीठू ने अपनी कवित्व शक्ति से जांगल देश (बीकानेर राज्य) के स्वामी को प्रसन्न कर बहुत – सा द्रव्य और बारह गांव प्राप्त किये। कई पीढ़ी बाद उसके वंश में जैकिशन हुआ, जिसने बीकानेर के महाराजा गजसिंह से बहुत सम्मान प्राप्त किया। जैकिशन का पुत्र प्रभुदान और उसका पुत्र भौमदान हुआ। भौमदान का पुत्र विभूतिदान समझदार और मन्त्रणा – कुशल व्यक्ति था। जब बीकानेर के महाराजा सरदारसिंह का वि.स. 1929 (ई.स. 1872) में निःसंतान देहांत हो गया, तब वहां के उत्तराधिकार के लिए कई व्यक्ति खड़े हुए। उस समय विभूतिदान ने महाराज लालसिंह के ज्येष्ठ पुत्र डूंगरसिंह को, जो वस्तुतः वहां का हकदार था, राजगद्दी पर बिठलाने के लिए पूर्ण प्रयत्न किया। महाराजा डूंगरसिंह ने राज्याधिकार मिलने पर विभूतिदान की बड़ी कद्र की। उसको कविराजा का खिताब और ताजीम का सम्मान तथा पहले से रांनेरी, एवं मोरखेड़ी गांवों के अतिरिक्त तीन गांव – कुंकणियो वि.सं. 1930 आषाढ़ सुदी 7 (ई.स. 1873 ता. 02 जुलाई), बनिया वि.सं. 1931 आषाढ़ सुदी 1 (ई.स. 1874 ता. 14 जुलाई) और लालसिंहपुरा वि.स. 1935 ज्येष्ठ सुदी 14 (ई.स. 1878 ता. 13 जून) प्रदान किये। यही नहीं उसकी योग्यता से प्रभावित होकर उसने उसको बीकानेर में पोलिटिकल एजेंट के पास वकील नियत किया और फिर वि.सं. 1934 (ई.स. 1877) में बीकानेर की स्टेट कौंसिल का सदस्य बनाया। अपनी आयुपर्यन्त वह इन दोनों पदों का कार्य करता रहा। महाराजा डूंगरसिंह की उस पर असाधारण कृपा थी। वि.सं. 1936 (ई.स.1879) में उसकी बीमारी के अवसर पर महाराजा ने उसकी हवेली पर जाकर उसे बहुत कुछ धैर्य दिया। वि.स. 1936 श्रावण सुदी 7 (ई.स. 1879 ता. 25 जुलाई) को विभूतिदान की मृत्यु हुई। उसके पांच पुत्र — भैरूंदान, भारतदान, सुखदान, मुंकनदान और मुलदान हुए।
विभूतिदान की मृत्यु होने पर महाराजा डूंगरसिंह ने उसके (विभूतिदान) ज्येष्ठ पुत्र भैरूंदान को कविराजा की पदवी देकर पूर्व – प्रतिष्ठा प्रदान की। वह अपने पिता की विद्यमानता में ही राज्य – सेवा में प्रविष्ट हो गया था। वि.सं. 1936 (ई.स.1879) में महाराजा ने उसको बीकानेर के पोलिटिकल एजेंट के पास वकील नियत किया और तनख्वाह सौ रुपये माहवार स्थिर की। वह दीवानी अदालत, फौज और मंडी का अफसर तथा नाजिम आदि के पदों पर भी समय – समय पर नियत हुआ था। उसने इन पदों पर रहते समय राजा और प्रजा के बीच पूर्ण विश्वास उत्पन्न किया। जब महाराजा डूंगरसिंह के समय विवाद – ग्रस्त विषयों को निबटाकर शासन – सुधार करने के लिए खास कमेटी बनाने की योजना हुई, तब भैरुंदान भी उसका एक सदस्य बनाया गया। फिर ई.स. 1887 (वि.सं. 1944) में वह बीकानेर की स्टेट कौंसिल का सदस्य निर्वाचित हुआ। सरदारों के झगड़े मिटाने और चारणों से चुंगी की रकम वसूल करने के संबंध में जो विवाद हुआ, उसको मिटाने में उसने अच्छी कार्यतत्परता दिखलाकर विरोध न बढ़ने दिया, जिससे उसकी बड़ी ख्याति हुई। फलतः महाराजा साहब की उस पर कृपा बढ़ती गई और उसने भी पूर्ण स्वामीभक्ति का परिचय दिया। महाराजा डूंगरसिंह का परलोकवास होने के पीछे वर्तमान महाराजा साहब के प्रारंभिक शासन – काल तक वह स्टेट कौंसिल का सदस्य रहा। वि.सं. 1971 भाद्रपद वदी 8 (ई.स. 1914 ता. 14 अगस्त) को उसकी मृत्यु हुई। वह संतानहीन था, अतएव उसका तीसरा भाई सुखदान उस का (भैरूंदान) क्रमानुयायी हुआ।
भैरूंदान का दूसरा भाई भारतदान थ, जिसका पुत्र रिड़मलदान राज्य सेवा में अच्छे पद पर है और स्थानीय वाल्टर – कृत राजपुत्र हितकारिणी सभा का सदस्य भी है।
बीकानेर राज्य का इतिहास
महामहोपाध्याय रायबहादुर गौरीशंकर हीराचन्द ओझा से साभार.
कविराजा विभूतिदानजी का जन्म 02 जुन को सींथल बीकानेर मे श्री भोमदान बीठू नगाणियो के बास में हुआ था। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी थे ओर अपनी बुद्धि और कोशल के बल से बीकानेर मे तत्कालीन राजा के उत्तराधिकारी के चयन मे महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया, और श्री डूंगरसिंहजी बीकानेर के राजा बने और जिसके फलस्वरुप डुंगरसिंहजी ने कुकणिया, बनिया इत्यादि गांव जांगीर में दिये। कविराजा विभुतिदान को अपने भाईयो से विषेश प्रेम था इस के कारण ऐक नया राजस्व गांव की स्थापना की उसका नाम लालसिंहपुरा रखा, डूंगरसिंहजी के पिताजी लालसिंहजी के नाम से और लालसिंहपुरा मे लालेशवर महादेव का मंदिर लाल सागर कुँआ और हवेली का निर्माण करवाया।
02 जुन 2004 को लालसिंहपुरा सींथल बीकानेर मे कविराजा विभुतिदानजी की मूर्ति का अनावरण हुआ इस कार्यक्रम की अध्यक्षता सी. डी. देवल ने की कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री ओंकारसिंह लखावत थे। विशिष्ट अतिथि पद्मश्री सुर्यदेवसिंह बारहठ अलवर थे। कार्यक्रम के सयोजक डा गुमानसिंह बीठू तत्कालीन सरपंच ग्राम पंचायत सिंथल थे।
हर साल 02 जुन को कविराजा विभुतिदानजी की जयंती मनाई जाती हैं। इस अवसर पर कविराजा विभुतिदान जी को कोटिश वंदन एवं नमन।