मैं किसी आकुल ह्रदय की प्रीत लेकर क्या करूंगा- कवि मनुज देपावत (देशनोक)
मैं किसी आकुल ह्रदय की प्रीत लेकर क्या करूंगा ! सिकुड़ती परछाइयाँ, धूमिल-मलिन गोधूलि-बेला ! डगर पर भयभीत पग धर चल रहा हूँ मैं अकेला ! ज़िंदगी की साँझ में…
मैं किसी आकुल ह्रदय की प्रीत लेकर क्या करूंगा ! सिकुड़ती परछाइयाँ, धूमिल-मलिन गोधूलि-बेला ! डगर पर भयभीत पग धर चल रहा हूँ मैं अकेला ! ज़िंदगी की साँझ में…
मैं प्रलय वह्नि का वाहक हूँ ! मिट्टी के पुतले मानव का संसार मिटाने आया हूँ ! शोषित दल के उच्छवासों से, वह काँप रहा अवनी अम्बर ! उन अबलाओं…
तुम कहते संघर्ष कुछ नहीं, वह मेरा जीवन अवलंबन ! जहाँ श्वास की हर सिहरन में, आहों के अम्बार सुलगते ! जहाँ प्राण की प्रति धड़कन में, उमस भरे अरमान…
लोहित मसि में कलम डुबाकर कवि तुम प्रलय छंद लिख डालो।। अम्बर के नीलम प्याले में ढली रात मानिक मदिरा-सी। कर जग को बेहोश चाँदनी बिखर गई मदमस्त सुरा-सी। तुमने…
दीप शिखा के परवाने की यह बलिदान कहानी है ! यह बात सभी ने जानी है ! अत्याचारी अन्यायी ने अन्याय किया भारत भू पर। डोली थी डगमग वसुंधरा, वह…
धोराँ आळा देस जाग रे ऊँटाँ आळा देस जाग। छाती पर पैणा पड़्या नाग रे धोराँ आळा देस जाग।। उठ खोल उनींदी आँखड़ल्यां नैणाँ री मीठी नींद तोड़। रे रात…
हे गाँव, तुझे मैं छोड़ चला, लाचार भरे इस भादों में। था एक दिवस जब तेरे इस आँगन में फूली अमराई ! था एक दिवस जब मेरे भी मन में…
मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन। मेरी छंदबद्ध वाणी में नहीं किसी कृष्णाभिसारिका के आकुल अंतर की धड़कन; अरे, किसी जनपद कल्याणी के नूपुर के रुनझुन स्वर…
धरती रौ कण-कण ह्वे सजीव, मुरधर में जीवण लहरायौ। वा आज कल़ायण घिर आयी, बादळ अम्बर मं गहरायो।। वा स्याम वरण उतराद दिसा, “भूरोड़े-भुरजां” री छाया ! लख मोर मोद…
जिसने जन-जन की पीड़ा को, निज की पीड़ा कर पहचाना। सदियों के बहते घावों पर, मरहम करने का प्रण ठाना। महलों से बढ़कर झौंपड़ियां, जिसकी चाहत का हार बनी। संग्राम…