धोराँ आळा देस जाग रे ऊँटाँ आळा देस जाग।
छाती पर पैणा पड़्या नाग रे धोराँ आळा देस जाग।।
उठ खोल उनींदी आँखड़ल्यां नैणाँ री मीठी नींद तोड़।
रे रात नहीं अब दिन ऊग्यो सपनाँ रो कू़डो मोह छोड़।।
थारी आँख्याँ में नाच रह्या जंजाळ सुहाणी रातां रा।
तूं कोट बणावै उण जूनोड़ै जुग री बोदी बातां रा।।
रे बीत गयो सो गयो बीत तूं उणरी कू़डी आस त्याग।।
छाती पर पैणा पड़्या नाग रे धोराँ आळा देश जाग।।१।।
खग्गाँ रै लाग्यो आज काठ खूँटी पर टँगिया धनुष-तीर।
रे लोग मरै भूखाँ मरता फोगाँ में रुळता फिरै वीर।।
रे उठो किसानाँ-मजदूराँ थे ऊँटाँ कसल्यो आज जीण।
ईं नफाखोर अन्याय नै थे करद्यो कोडी रो तीन-तीन।।
फण किचर काळियै साँपाँ रो थें आज मिटा द्यो जहर-झाग।
छाती पर पैणा पड़्या नाग रे धोराँ आळा देश जाग।।२।।
रे देख मिनख मुरझाय रह्यो मरणै सूँ मुसकल है जीणो।
ऐ खड़ी हवेल्याँ हँसै आज पण झूँपड़ल्याँ रो दुख दूणो।।
ऐ धनआळा थारी काया रा भक्षक बणता जावै है।
रे जाग खेत रा रखवाळा आ बाड़ खेत नै खावै है।।
ऐ जका उजाड़ै झूँपड़ल्याँ उण महलाँ रै अब लगा आग।
छाती पर पैणा पड़्या नाग रे धोराँ आळा देश जाग।।३।।
ए इन्कलाब रा अंगारा सिलगावे दिल री दुखी हाय।
पण छांटां छिड़कां नहीं बुझेली डूंगर लागी आज लाय।।
अब दिन आवैला एक इस्यो धोरां री धरती धूजैला।
ऐ सदां पत्थरां रा सेवक वै आज मिनख नै पूजैला।।
ईं सदां सुरंगे मुरधर रा सूतोड़ां जाग्या आज भाग।
छाती पर पैणा पड़्या नाग रे धोराँ आळा देश जाग।।४।।
~स्व. मनुज देपावत (देशनोक)