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आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ ?

नभ में घिरती मेघ-मालिका,
पनघट-पथ पर विरह गीत जब गाती कोई कृषक बालिका !
तब मैं भी अपने भावों के पिंजर खोल उड़ाता हूँ !
आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ ?

जब सावन की रिमझिम बूँदें,
आती है हरिताभ धरा पर, गिरती है पलकों को मूंदे !
धूमिल मेघों में तब मैं पदचाप किसी की सुन पाता हूँ !
आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ ?

आँधी में उड़ जाता है मन,
पथिक-पिया के विरह-गीत से गुंजित होते शैल-शिखर-वन !
अपने गीतों की पंखुड़ियाँ, अन्तरिक्ष में छितराता हूँ !
आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ ?

चंदा के दर्पण में आकर,
निशा झाँकती है निज यौवन तारों का शृंगार सजाकर !
तब छंदों में बाँध गगन से, स्वप्न-कुमारों को लाता हूँ !
आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ ?

~कवि स्व. मनुज देपावत (देशनोक)

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