जिसका कण-कण एक कहानी |
आओ पूजे शीश झुकाएं,
मिल हम,माटी राजस्थानी ||
सुबह सूर्य सिंदूर लुटाए,
संध्या का भी रूप सवारे |
इस धरती पर हम जन्मे हैं,
पूर्व जन्म के पुण्य हमारे ||
सघन वनों की धरा पूर्व की,
झरे कही झरनों से पानी |
बोले मोर पपैया कोयल,
खड़ी खेत में फसले धानी ||
गोडावण के जोड़ो के घर,
पश्चिम के रेतीले टीले |
ऊंट,भेड़, बकरी मस्ती से,
जहां पालते लोग छबीले ||
बंशी एकतारे, अलगोजे,
कोई ढोलक-चंग बजाए |
कही तीज, गणगौर, रंगीली,
गोरी फाग बधावे गाए ||
कहीं गूंजे भजन मीरा के
और कहीं, अजमल अवतारी |
दादू और रैदास सरीखे,
यह धरती ही तो महतारी ||
स्वामी भक्त हुए इसमे ही,
पीथल,भामाशाह,पन्ना से ||
दुर्ग-दुर्ग में शिल्प सलोना ,
दुर्गा जैसी हैं, हर नारी |
हैं हर पुरुष प्रताप यहाँ का,
आजादी का परम पुजारी ||
यहाँ भाखड़ा-चम्बल बांटे ,
खुशहाली का नया उजाला |
भारत की पावन धरती पर,
अपना राजस्थान निराला ||
🙏कवी हैपी कोटडा🙏