Sat. Apr 19th, 2025
श्री देवल माँ रो छंद


रचना–राजेन्द्र दांन(कवि राजन)झणकली

देवल माँ वरदायनी साचा परचा सगत।
सेवगोंय सुख सारणी भांगे पीड़ भगत।।
भलियो जी बड भागियो जिण घर जलमी सगत।
देवला नाम दाख़ियो वीरू मात तण वखत।।
भलिये जी रो बड भाग आइ रमाइ आँगणे
पल पल ते भरिया पाँव मात बाळक माँगड़े।।
देवीदास खिंडा देवी रा मेहपा सुत महान।
देवल जी रा दीकरा जाणे सकल जहांन।।
बूट बेचराय बलाल खेतु मानसरि कहत।
पातू बजरी परचाल सातों तनया सगत।।
उजळे चित सूं उच्चरुं छटा त्रिभंगी छंद।


बेगी आवजो वाहरू फटा काटजो फंद।।
छंद त्रिभंगी

भज मन भलियाई सदा सहाई वीरू जाई वरदाई
सरवत सुखदाई नाम धराई देवल बाई दरशाई।
वड क्रोड़ बधाई खुशियां छाई मृदंग बजाई ममताई।
जय जय भलियाई देवळ आई समरयो स्याई सुखदाई 
जी शरणे थारे सुरराई,,,,,,1

भूपत मन ठानी मां हिंगलानी निज कुळ आनी सुररानी
ऊमा मढ़ आनी बारमबानी प्रकट भवानी परवानी
अंबा घर आनी जनम लिरानी वर वरदानी वरदाई
जय जय भलियाई देवल आई समरयो स्याई सुखदाई 
जी शरणे थारे सुरराई,,,,,,,2

बापन घर आया मां महमाया जगत सराया जगराया
खारोडे राया धाट धराया वंश वधाया वरदाया
देथे कुळ जाया परचा पाया हिंय हुलसाया खुश थाई
जय जय भलियाई देवल आई समरयो स्याई सुखदाई 
जी शरणे थारे सुरराई,,,,,,3

वड देवीदासा मेपा खिंडासा देवल जाया सुतमाता
ऊपर आवासा रमत रमासा खेलम खासा  पड़ जाता
मही पय उबासा करण खिंचासा तूटम तासा मुरकाई
जय जय भलियाई देवल आई समरयो स्याई सुखदाई 
जी शरणे थारे सुरराई,,,,,4

अनुपम रुपाळी बहु भुजवाळी मां मछराळी ममताळी
पावन परचाळी मात कृपाळी खारोड़ाळी खपराळी
धर सुमलयाळी पीड़ मिटाळी
कुंप दिराळी करुणाई 
जय जय भलियाई देवल आई,,5

सिंढांयच सुखदाई वीश भुजाई पीड़ मिटाई परचाई
गड़सी जय गाई भेंट कराई भांडेरु भाई महमाई
सोढा सब माई भगत कहाई विघन हराई वरदाई
जय जय भलियाई देवल आई,,,6

भगतां मन भावे सदा सरावे बेगी आवे बुलवावे
जयकारा गावे धूंप धुखावे पूज चढ़ावे परचावे
दुख दूर हटावे सुख उपजावे हरख बधावे हरखाई
जय जय भलियाई देवल आई,,,7

ओंकार उच्चरणी सुकरत करणी असुरों हरणी अवतारी
ऊमा अवतरणी विघनों हरणी कारज शरणी करतारी
दुष्मी तूँ दळणी वेदों वरणी भय दुख हरणी वरदाई
जय जय भलियाई देवल आई,,,8

माता मतवारी सिंह सवारी असुर संहारी अन्नदाता
गावे ज  सारी कीरत थारी सुख उपजारी सुखदाता
राखे रखवारी समरे ज्यों री आप सहारी अबखाई
जय जय भलियाई देवल आई,,,9

हिंगलाज सरूपा मात अनूपा जय जगरूपा जगतंबा
कट क्रोध करूपा पाप हरूपा भूपम भूपा भुजलम्बा
खेवों नित धुम्पा झालर झुम्पा अमि रा कूम्पा दे माई
जय जय भलियाई देवल आई,10

हर दुख हरणी तूँ ही करणी विरवड़ वरणी वरदाता
आवड़ अवतरणी मां जगजरणी शबद उच्चरणी सुरदाता
राजन तव शरणी बालक वरणी देवल चरणी दरशाई
जय जय भलियाई देवल आई समरयो स्याई सुखदाई 
जी शरणे थारे सुरराई,,,,,11

छपय

देवला वड देवी परकट मात परचाळी
देवला वड देवी मात आसरो मतवाळी
देवला वड देवी आशा पूरणा आई
देवला वड देवी भली करे भलियाई
सिंढांयच ना समरुं सदा पांण जोड़ परभात
कवि दोछन दूर करे में बाळक तुम मात।।
आई करजो ओपर हिंगलाज अघ मारणी
कर बद्ध कवि राजन कहे चिंता मेटे चारणी।


कवि राजन झणकली कृत

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