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एकली ऊभी अयोध्यानी नार=चारणकवि पद्मश्री कागबापु द्वारा रचीत भजन

एकली ऊभी कोइ अटूली अजोधानी ना…र (२);
बाप बेटानां दाण मांगे छे,मसाणुं मोझार
एकली ऊभी…

राणी हती ते दासी बनेली,दास थयो राजकुमार (२);
वेण काजे हरिचंद वेचाणो,बारवाळाने बार
एकली ऊभी…

भूत होंकारे ने प्रेत खोंखारे,डाकणीना पडकार (२);
तोय तारांदेनुं दिल न कंप्युं,कंपी उठ्यो किरतार
एकली ऊभी…

ओढणुं फाडीने लाश ओढाडी,चूमी लीधी बे चार (२);
जायाने माथे ऊभी जनेता,आभ डोलावणहार
एकली ऊभी…

बळती चेमांथी ईंधणां लावी,पुत्रनी पाळणहार (२);
फूंक मारे ने आग चेतावे,न सळगे अंगार
एकली ऊभी…

‘दाण दीधा विना आग न देजे’,हाक उठी ते वार (२);
सामुं जाेयुं त्यां स्वामी पोतानो,ताणी उभाे तलवार
एकली ऊभी…

हाल्यो हेमाळो ने धरती ध्रूजी,देवनां कंप्यां द्वार (२);
शिव, ब्रह्मा, हरि, धोडी आव्या,(एने) ताप लाग्यो ते वार
एकली ऊभी…
‘धन राजा! राणी! टेक तमारा,धन्य छे राजकुमार! (२);
‘काग’ के तारा कुळमां लइश,हुं अजोधामां अवतार
एकली ऊभी…
रचना= चारणकवि पद्मश्री दुला भाया कागबापु
टाइपिंग=राम बी गढवी
नविनाळ-कच्छ
फोन=7383523606
आ भजन कागवाणी भाग=4 मांथी टाइप करेल छे भुलचुक सुधारीने वांचवी

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