तुंही नाम तारण ,सबै काम सारण,
धरो उसका धारण , निवारण करेगो।
न था दन्त वांको, दिया दुध मां को,
खबर हैं खुदा को, सबर वो धरेगो।
तेरा ढुंढ सीना, मिटै दिल का कीना,
जिन्हें पेट दीना, सो आपैही भरेगो।
मुरादन कहै या मुकद्दर के अन्दर,
जिन्हें टांक मारा, न टारा टरेगो।।१।।
रहै शेर बन में, यहीं मस्त मन में,
उसे तीन दिन में, वो रोजी दिलाता।
सकरखोर पंछी, शुक्र नीत गुजारे,
फिक्र कर उसी को खुदालम खिलाता।
मतंगन को मण दे, किड़ी को कण दे,
परिन्दे को चूंण दे, सो बन्दे दिलाता।
मुरादन कहै मैने सही करके दैखा,
खुदा ने किया सो अकल में ना आता ।२।।
खुदा हैं खैरादी, अकल उसकी जादी,
वो आदि अनादि, का कर्ता कहाया।
पवन आग पानी, लि मिट्टी मिलानी,
दम की निशानी, से आदम बनाया।
दिया कान नाशा, चश्में का तमाशा,
जुबां का खुलाशा, सो कलमा पढाया।
मुरादन कहै मैने सही करके देखा,
खुदा की खुबी का नहीं पार पाया।।३।।
खुदा सेठ सबका, किया हाट कबका,
वसीला हैं रबका, उसे धीर धारै।
सुबहो शाम देता, नहीं दाम लेता,
न करता फजैता, सो मिलते को मारे।
दिया सोही लिखता, बिना हक ना बकता,
हिसाबों में रखता, न नुक्ता बिसारे।
मरादन कहै तूं अकड़ कैसे फिरता,
खुदा चाहै ऐसा पकड़ चीर डारे।।४।।
खुदा खेल करता, किसी से न डरता,
किसी मौत मरता, किसी को जिलाता।
किसी राज पाता, किसी मांग खाता,
किसी को हंसाता, किसी को रूलाता।
किसी के हैं घोड़ा, किसी पांव खोड़ा,
किसी ने न जोड़ा, वो पैदल चलाता।
मुरादन कहै मैने सही करके देखा,
खुदा ने किया सो अकल में ना आता।।५।।
खुदा रहनुमा हैं, न किसी की तमा हैं,
न पैसा जमा हैं, खलक को पसाता।।
नहीं खेत वांटा, नहीं फोज फांटा,
नहीं पास कांटा, वो अदल को चलाता।
नहीं दोस्तदारी, नहीं साहुकारी,
नहीं कारभारी, कहां से वो लाता।
मुरादन कहै मैने सही करके देखा,
खुदा ने किया सो अकल में ना आता।।६।।
खुदा बादशाह हैं, सबे पर निगाह है,
न छोटा बड़ा है, उसी रब्ब के घर में ।
गहंद अरु गदा है, दोऊ पर फिदा है,
न कोई से जुदा हैं, खुदा की नजर में।
गाय भैंस घोड़ी, किड़ी अर मकोड़ी,
सबे जान की जोड़ी, बनाई बशर में।
मुरादन कहे तुं क्या यार हंसता,
हिसाबों का रस्ता मिलेगा हश्र में ।।7।।
~मुराद मीर कृत