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श्री लूंग माँ रो छंद
 
रचना- राजेन्द्रदान विठू (कवि राजन) झणकली
संकटों कीजो शायता सरवत दीजो साथ
बेल आवजो वीश हथ हरदम हाथो हाथ।।
भय दुख पीड़ा भाँगजे दीजे सुख दातार
कष्ट मन तन सब काटजे आय लूंग अवतार।।
छंद नाराच
करो कृपाय लूंग माय निरखाय नजरे
सदा सहाय आप आय भरमाय भजरे
हरो दुखाय कष्ट काय जनताय जम रे
खमा खमाय लूंग माय सुख थाय समरे जी आय बेल हमरे,,,,1

देवी दयान वळदरांन आशियांन आविया
मैया मेतांन अजितान पी भूरान पाविया
जपे जपान हिंगलांन सुबे शाम समरे
खमा खमाय लूंग माय सुख थाय समरे जी आय बेल हमरे,,,,2

करो सुखाज हिंगलाज राज काज राजिया
भरो हिंयाज शब्द ताज कंठ साज काजिया।
बसों मुखाज रचनाज डिंगळाज डमरे
खमा खमाय लूंग माय सुख थाय समरे जी आय बेल हमरे,,,3

कथूं कथन शुद्ध तन मांन मन मायरे
पूरी प्रसन्न देत कन्न अरज सुन्न आयरे
दीजे दरशन्न प्रातः पन्न धान धन्न धमरे
खमा खमाय लूंग माय सुख थाय समरे जी आय बेल हमरे,,,,4

हुवे हुलास प्रातः रास छबि खास देखतां
मिटे मलास शोक त्रास भय भ्रास भेंटतां
आवे ओजास खूब खास गम ग्रास गम रे
खमा खमाय लूंग माय सुख थाय समरे जी आय बेल हमरे,,,,5

मेटो विकार नरनार कुअचार करम रा
त्रिशूळधार दे अपार सुविचार श्रम रा।
तूँ ही आधार सेवगार मोह मार भ्रंम रे
खमा खमाय लूंग माय सुख थाय समरे जी आय बेल हमरे,,,,6

रीझे रिझान इहगांन हिंय आंन हेत रे
टीका टीकान दहेजान मदपांन मेट रे
करो कल्याण बालकांन दे सुज्ञान दम रे
खमा खमाय लूंग माय सुख थाय समरे जी आय बेल हमरे,,,,7

सिद्धि अपार सुख सार किरतार केवणा
भजूं दातार त्रश तार ले उवार लेवणा
हरे हजार कष्ट कार आप द्वार अंब रे
खमा खमाय लूंग माय सुख थाय समरे जी आय बेल हमरे,,,,,8

नमूं नमाय मस्तकाय मढ़ माय मात रे
हिंये बसाय लूंग माय पलकाय पात रे
सदा सहाय बेल आय राजनाय रम रे
खमा खमाय लूंग माय सुख थाय समरे जी बेल आय हमरे,,,,,9
छपय
लूंग मात लाजाळी सगत हिंगळाज सरूप
लूंग मात लाजाळी आई भगत अनु
लूंग मात लाजाळी अबखी बेळा आय।
लूंग मात लाजाळी गुण राजन तव गाय।
अबखी वेळा आवजे भाँगेज पीड़ भगत
कवि राजन अंक राखजे सहाय कीजे सगत।।

~कवि राजन झणकली कृत

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