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राजपूताना और गुजरात मे सौदा बारहठ शाखा के चारणो के जागीर ग्रामो(स्वशासीत ग्राम/शासन जागीर) की जानकारी
>महाराणा हम्मीर जी ने बारुजी सौदा को अपने दसोंदी नीयुक्त कर 25,000 की वार्षीक आय का आंतरी सहीत 12 ग्रामो का पट्टा जागीर मे दीया। सौदा बारहठ की पदवी से विभुषीत कर दोवडी ताजीम,पैरो मे सोने के लंगर, बाह पसाव,उठण बेठण रो कुरब,पालकी, चंवर, सोने चांदी के जवेरात, हाथी -घोडे, शस्त्र, ईत्यादी सन्मानो से नवाजा। बारुजी सौदा शाख के मुल पुरुष है।
 
> महाराणा हम्मीर जी ने बारुजी के पुत्र बाजुडजी को 50,000 आय वाला कपासन परगना जागीर मे देकर दरबारी सन्मान दीये।
 
>ठाकुर बाजुडजी ने अपने तीनो पुत्र(कौलसिंह,करमसेनजी,बेलाजी)  कौलसिंह को आंतरी की जागीर,करमसेनजी को बीकाखेडा,और बेलाजी को मावली की जागीर दी।आज ईन के वंशज ईन ठीकानो के जागीरदार है।
 
>ठा.बाजुडजी के पुत्र बेलाजी के पुत्र कुँ.राजारामसिंह सौदा को महाराणा उदयसिंहजी ने ओडा नामक ग्राम जागीर मे दीया।राजारामसिंहजी सौदा ने कुंभलगढ की लडाई मे विरगती प्राप्त हुए।
 
>राजारामसिंहजी सौदा के पुत्र लुंभाजी को महाराणा प्रताप ने तलाई नामक ग्राम जागीर मे दीया।
बारुजी की छठ्ठी पीढी मे पालमजी सौदा हुए जीनको महाराणा रायमल ने सन्मानीत कर दरबारी कुरब कायदे सहीत आलीशान सेणोंद/सोनीयाणा ग्राम जागीर मे दीया। विर पालमजी चीतौडगढ के पाडीपौल पर विरता से लडते हुए विरगती को प्राप्त हुए। *ईसी सोनीयाण जागीर के दो शूरविर चारण सिरदार ठा.जैसा सौदा व ठा.केशव सौदा प्रसिध्द्ध हल्दीघाटी युद्ध मे महाराणा प्रताप की सेना के महानायक थे!!! जीन्होने बहोत से दुश्मनो के सर काट कर विरगति का वरण कीया था।
> पालमजी सौदा के पुत्र जवणाजी महाराणा सांगा का मोहंमद खीलजी के साथ हुए युद्ध मे हरावल टुकडी मे रहकर विरता से लडते हुए रणखेत रहे। जवणाजी के पुत्र ठाकुर राजविरसिंह को महाराणा प्रताप ने बडला ग्राम जागीर मे दीया ,दरबारी कुरब कायदे दीए।
 
>ठाकुर राजविरसिंह जी सौदा के पुत्र कुँ खेमराजसिंह जी को देवगढ के रावत संग्रामसिंह जी ने डीडवाणा नामक ग्राम जागीर मे देकर दरबार मे स्थान दीया।
 
>खेमराजसिंह सौदा के पुत्र केशरीसिंह को महाराणा राजसिंह प्रथम ने पाणेर ग्राम जागीर मे दीया।
 
>बारुजी की नौ वी पेढी मे देवीसिंह जी को विक्रम संवत 1657 मे ईडर शासक राव कल्याणमलजी ने टोकरा सहीत 3  ग्राम का पट्टा जागीर मे देकर अपने दरबारी कुरब कायदे प्रदान कीए।
 
>विक्रम संवत 1652 मे डुंगरपुर रावल आसकर्ण ने ठाकुर नाग जी सौदा को बरछावाडा ग्राम जागीर मे दीया।
 
>विक्रम संवत 1713 मे डुंगरपुर रावल खुमानसिंह जी ने ठाकुर हाथी जी सौदा को हरौली ग्राम जागीर मे दीया ।
 
> विक्रम सवंत 1791 मे डुंगरपुर रावल शिवसिंह जी ने ठाकुर कुशालसिंह जी सौदा को करावाडा ग्राम जागीर मे दीया।
डुंगरपुर महारावल उदयसिंह जी ने ठाकुर जगतसिंह जी सौदा को 11 ग्रामो का पट्टा जागीर मे दीया, करावाडा को मीलाकर कुल 12 ग्रामो का उमराव ठिकाना हुआ ईन 12 ग्रामो के पट्टे का करावाडा पाटवी ठिकाना बना।
 
ठाकुर जगतसिंह जी का डुंगरपुर रीयासत के प्रतीष्ठीत दरबारी उमराव सिरदारो की श्रेणी मे स्थान था। दोवडी ताजीम जागीरदार का उमराव पद, पालकी और चंवर का सन्मान, हाथी तथा पैरो मे सोने के लंगर  ईत्यादी फीताब एवं कुरब कायदे डुंगरपुर दरबार से एनायत हुए थे।
 
>बारुजी की नवमी पीढी मे शुरविर नरुजी सौदा को महाराणा राजसिंह ने दरबार मे उमराव पद एंव राजकीय सन्मान के साथ राजसभा सद (मुसाहब) का पद देकर पालखी और चंवर का अधीकार दीया,जो आमात्यो को ही प्राप्त होता था!
 
>संवत 1736 मे उदयपुर पर औरंगजेब के आक्रमण समय जब महाराणा समस्त प्रजा सहीत पहाडो मे चले गए तब शूरविर नरुजी सौदा ने उदयपुर छोडना स्वीकार नही कीया। राजद्वार और जगदीश मंदीर की रक्षार्थ हेतु औरंगजेब के ईक्के(प्रमुख सैनीक) ताजखाँ और रुहीलखाँ का सामना करते हुए विरता से युद्ध करते हुए अपने 12 साथीयो सहीत विरगती को प्राप्त हुए। उनका सर कटने के बाद भी धड लडता रहा और 300 कदम दुर जाकर गीरा!!
>नरुजी के सात पुत्रो मे से चार र्निवंश रहे। शेष तीन मे से ठाकुर बीहारीदासजी को बांसवाडा रावल कुशलसिंहजी ने लाखपसाव सहीत करणपुर नामक ग्राम जागीर मे देकर बांसवाडा दरबार मे स्थापीत कीया।
 
>नरुजी के ज्येष्ठ पुत्र ठाकुर उदयभाणसिंह उदयपुर छोड राजा भीमसिंह के साथ बनेडा चले गए भीमसिंह जी ने उनको दरबारी कुरब कायदे देकर गीहड्या नामक ग्राम जागीर मे दीया।उदयभाणसिंह जी मेडता से हुए युद्ध मे रणखेत रहे।
 
>ठाकुर उदयभाणसिंह जी के दो पुत्र चंद्रभाणसिंह(गीहड्या के पाटवी जागीरदार) और कीशोरसिंह ये दोनो भाई महाराजा सूर्यमल्लजी की सेना के महानायक थे अटलनदी पर हुए युद्ध मे दोनो विर चारणो ने तलवारो से कई दुश्मनो के सर धड से अलग कीये और रणखेत रहे।
>किशोरसिंह जी के पुत्र देवाजी को शाहपुरा के महाराजा उम्मेदसिंह ने सह सन्मान आमंत्रीत कर अपने दशोंदी बनाकर दरबार मे स्थान दीया। जोधपुर महाराजा बखतसिंह से पराजीत होकर जयपुर सवाई जयसिंह के पलायन कर जाने पक शाहपुर राजा उमेदसिंह द्वारा बखतसिंह पर कीये गए वीजयप्रद आक्रमण मे विरता प्रर्दशीत करते हुए ठाकुर देवाजी सौदा भी घायल हुए थे ,उनके सिने पर तलवार और तिरो के घाव लगे थे। पूर्ण स्वास्थ्य होने पर राजा उमेदसिंह ने उन्हे पालखी की सवारी व चंवर का सन्मान और सांमतो के बराबर उमराव पद से नवाज कर सोने के जवेरात के साथ बीसनीया ग्राम जागीर मे दीया। यह ग्राम देवाजी के भाई ठाकुर सम्मानसिंह से खाल्सा कर देवाजी को दीया गया था परंतु देवाजी ने वह ग्राम सम्मानसिंह को दीलाकर अपने भ्राता धर्म का पालन करते हुए खुद बीना जागीर के रहे।
देवा जी के पुत्र किरतसिंह जी उनके ओनाडसिंहजी, उनके ठाकुर कृष्णसिंहजी (जो बहोत बडे विध्वान और रजवाडो मे सम्मानीय थे जीनके बारे मे करीब सभी लोगो को पता ही है ईनकी एक पोस्ट क्रमशःभेजी जाएगी) उनके तीन पुत्र ठाकुर केशरीसिंह जी(ईन महापुरुष व क्रांतिकारी के बारे मे कौन नही जानता!!एक पोस्ट है ईनके विषय मे जो मे क्रमश भेजुंगा), ठाकुर जोरावरसिंहजी(क्रांतीकारी विर पुरुष ईनके बारे मे भी एक पोस्ट क्रमशः भेजी जाएगी) ,ठाकुर कीशोरसिंहजी (दरबारी विध्वान कवि थे),ठाकुर केशरीसिंह जी के पुत्र कुँ. प्रतापसिंह जी (विरशहीद नौजवान अंग्रेजो से लोहा लेने वाले!! ईनकी भी एक पोस्ट बनाई है जो क्रमशः भेजी जाएगी)
संदर्भ:-

1)ठाकुर जोरावरसिंह बारहठ स्मृती
– राजलक्ष्मी जी साधना
2)चारण दीगदर्शन
-श्री शंकरसिंह जी आशीया
3)चारण कुलप्रकाश
-ठाकुर कृष्णसिंह जी बारहठ
जयपालसिंह(जीगर बऩ्ना) थेरासणा

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