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जोगा मिनखां नैं आ जगती,
पीढ्यां पलकां पर राखै है।
कोई पण बात बिसारै नीं,
हर बात चितारै भाखै है।।

कुण कह्वै जगती गुण भूलै,
कुण कह्वै साच नसावै है।
जोगां री जोगी बातां रा,
जग पग-पग ढोल घुरावै है।।

मोटा-छोटां सूं नीं मतलब,
ना लाभ-हाण रो लेणो है।
ओ लोक साच रो सीरी है,
अर साच लोक रो गैणो है।।

है सीर सपूती में सब रो,
इण तथ नै दुनियां जाणै है।
ओ कूड़ कितोई कोकावै,
धरती रो धरम ठिकाणै है।।

बरसां नीं बात पड़ै बोदी,
भावां रो पलड़ो भारी है।
ज्यां मिनखां राख्यो मिनखपणो,
वां रो ओ जगत पुजारी है।।

मेवां हित सेवा जो साधै,
वां रो हर दावो झूठो है।
‘सेवा सूं मेवा मिलणै’ री,
कैबत रो अरथ अनूठो है।।

सेवा में भाव समरपण रो,
राख्यां ई साव सवायो है।
पावण री इच्छा ज्यां पाळी,
पीढ्यां रै दाग लगायो है।।

हिवड़ै रो हेलो सुण हाल्या,
पर पीड़ हियै में पाळी ही।
है साच इतो ई खराखरी,
बस परापरी वां पाळी ही।।

वै जात-पांत री जकड़ण सूं,
सौ कोसां अळगा रैता हा।
मजहब रा घेरा लांघ मतै,
वै वाट साच री बै’ता हा।।

भ्रात-भतीजा सगा-गिनायत,
देख ईमां खोता कोनी।।
वै न्याय-नीत री वेळा में,
अन्याय-पखै होता कोनी।

सगळां रै हित में हित खुद रो,
जोवण री दीठ जकां री ही।
मरियां पाछै पण मुलक-मुखां,
बातां बस चालै वां री ही।।

वां री थरपीजै देवळियां,
गुण-जस वां रा ई गाईजै।
वां री ई बातां ख्यातां में,
वां री ई रात जगाईजै।।

वां री ई धजा फरूकै है,
वां रा ई डंका बाजै है।
है नाम उणां रो साहित में,
वै आम खास में राजै है।।

आयोजन वै ई आछा है,
सौ योजन ज्यां री साख बणै।
सैणप रो होवै शंखनाद,
तो ‘खाख’ हुवै सो ‘लाख’ बणै।।

~डाॅ. गजादान चारण “शक्तिसुत” नाथूसर

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