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पेमां महा सती

पेमां महा सती का जन्म बोगनियाई मीसण जाती में हुवा था। जन्म समय ओर माता पिता का नाम अग्यात है। पेमां सती का विवाह मदासर नाला रतनू मेघराज के साथ हुवा था। उनके दो पुत्र सेणीदान ओर अखदान थै। एक बार पेमां सती अपणी मवेशी ओर गाम के हाली मेगवालां कि गायै भी साथ लेकर ऊचपदरा गांम गयै वहां अच्छा जमाना था। एक दिन डाकू सिराइयां का कटक आया ओर मेगवालां कि गायां का हरण किया तब पेमां के पुत्र नै उण डाकुवां से लोहा लिया ओर आखिर लड़ते हुए काम आयै तब मां पेमां ने अपनै पुत्र को गोद में लेकर अग्नी स्नान किया गायां को छोड बचे खुचे डाकु भाग गयै कही दुष्ट सती प्रकोप सें मारे गयै। सती माता का थान बहुत प्राचिन ऊचपदरा में बना हुवा है।रतनुवां, नालां, के अलावा अनेक विरादरी के लोग सदियां से पुजा करते आ रहे है। यह जानकारी मुझै नखतुदान नाला, रतनू मदासर ने दी ओर कहा एसी महासती पर काव्य बनानै का आदेश किया तो में मधुकर मीसण महासती को नमन करता हुवा एक त्रिभंगी छंद सादर निजर करता हू। जानकारी में कोय त्रुटी हो तो विधवान गण सुधार करावै सादर ।मधुकर नमन।
पुजाई सति ऊचपदरे,
आई पेमां अस्थान।
बाई बोगनियाई बणी,
मिसण जाई महान।

मिसण पती मेघराज नै,
पेमल दी परणाय।
अखजी सेणो आपरै,
पेट पुतर दो पाय।

मेघवालां री मवेशी,
टोल सिराई टाल।
आडा फीरिया अखजी,
बण रतनू बिकराल।

सिराई करै सांमनो,
सज अखजी संग्राम।
बण गहुवां रा वाहरु,
कव नालो अय काम।

मीसण पेमां महा सती,
रतनू परणी रीत।
सिराई लिया सोमटै,
नाला भया नचिंत।

विधर्म हूर विडारिया,
कर्म अदभूत कराय।
पेमां महा सती पर्म,
सती धर्म सजवाय ।
      ।।छंद त्रिभंगी ।।

पेमां प्रगटाई सति सरसाई,
बोगनियाई वो बाई।
ऊचपदरै आई गाम जचाई,
जमर जलाई जस थाई।
मीसण महमाई सोख सिराई,
गाय बचाई प्राण गमे।
गढवां गुण गाई सुजस सुणाई,
नालां माई जगत नमें।
जिये,, पेमल माई तो प्रणमे।

मदासर थारा सुतन सुधारा,
कुल उजियारा कर वारा।
जहसोड़ जिकारा प्रोल प्रचारा,
भाटी धारा जद भारा।
मेघवाल विचारा सेवग तिहारा,
साथ सिधारा काल समें।
गढवां गुण गाई सुजस सुणाई ..

डाका जब डारण धैन होकारण,
मुसल वारण गहू मारण
दुष्टी दुतकारण कुबध करारण, 
धैन छुडारण धिकारण।
बड तेग बजारण, लड़ ललकारण,
अखजी आरण काम अमे।
गढवां गुण गाई …..

रतनू रखवाली आय अंताली,
डोकर भाली डाढाली।
कर दुषमण काली रोष भराली,
नागण काली विकराली।
सुत गोद संभाली जमर जगाली,
पंड प्रझाली साथ पमें।
गढवां गुण गाई …….

पती मेघ परखा नाला नखा,
रतनू दखा लज रखा।
पेमां तण पखा सुतन सरखा,
सेणा सखा अरू अखा।
हुय अंजस हरखा भय दुख भखा,
रंग कुल रखा सगत रमें।
गढवां गुण गाई ….

पंथ अगम पयानम रतन घरानम,
परम पुजानम परचानम।
कही वखत कहानम थान थपानम  
जमर जलानम जबरानम।
जयकार जपानम मधुकर दानम,
ताय कथानम सुजस तमें।
गढवां गुण गाई सुजस सुणाई,
नालां माई जगत नमें।
जियै,, पेमल माई तो प्रणमें।
     ।।छप्पय ।।

पेमल करै प्रणाम,
नाम भजै नित नाला।
जलै दुष्टी कर जाम,
काम किया विकराला।
धर ऊचपदरै धाम,
आम वर्ण उजवाला।
रिखिया निरखे राम,
गाम हेत निज ग्वाला।
सिराई संहार कर साथरो,
वाहर गहुवां री वणी।
मेघ वंशां पर मधुकरा,
धन ओपर पेमां धणी।
इति पेमां प्रशंसा मधुकर माड़वा ।

By admin

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