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चारणकवि कीरीट भाइ रचीत चरज
चारणोमां थइ चंडीयु जेवी मढडे सोनल मात
नोतरी चारण नात आखी मांए विश्वे राखी वात
मायाळु मात छो मीठी,अमी भरी आंखडी दीठी..(२)
मोणीये नागल आइ थया ने हेमाळे गाळ्या हाड
समजाव्यो मांडळीक मान्यो नइं…मां विनवे वारंवार
रा’ये मरियादा मेली..बुढी नागबाइ कोपी..(२)
चारणोमां…
बाकरशेख हतो नबळो ओलो सत्ताधीश सरदार
जीवणी ते सिहण थइ मार्यो उतर्यो अहंकार
मरते मुख बोल्यो मांजी…स्थाप्यो पीर थइने राजी..(२)
चारणोमां…
आवड खोडल मोगल थी छे उजळी चारणनात
घांघणीया देवसुर सोहिता मोगल छे प्रख्यात
मामडीयाने वंश वधारो…मिणल नो भव सुधारो…(२)
चारणोमां…
चारणोमां थइ मावडी चांपल सिंह जोड्यो सीममांय
वर्षो जासे ना विसरासे पुजासे गामोगाम
आवे युग “कीरीट” के एवो…सोनल ना सपना जेवो…(२)
चारणोमां…
रचना=चारणकवि कीरीटभाइ
टाइपिंग=राम बी. गढवी
नविनाळ=कच्छ
फोन=7383523606

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