अजा उमाजी अंबाजी-रचना = चारणकवि श्री शंकरदान जेठीदान देथा लींबडी राजकवि
|| दुहो ||
प्रसन्न प्रसन्न प्रसनाननी, हम पर रहो सदाय
प्रणतपाल परमेश्वरी, जय अंबा जगराय
||छंद-त्रिभंगी||
जय जगरायाजी, महामायाजी, शुचि कायाजी, छायाजी
होवो शिशु पाजी, तउ क्षमाजी, कर तुं हा जी, हा हा जी
प्रीति नित ताजी, नहिं ईतराजी, वा माताजी, वा वा जी
रहो राजी राजी, हम पर माजी, अजा उमाजी, अंबाजी
जीय अजा उमाजी, अंबाजी….टेक (१)
धवलांबर धरनी, उजवल बरनी, शंकर घरनी, शंकरनी
निज जन निर्जरनी, रक्षा करनी, अशरन शरनी, अध हरनी
वासी गिरिवरनी, शिव सहचरनी, हिम भूधरनी दुहिता जी
रहो राजी राजी….(२)
चकवे चरिताळी, बूढी बाळी, जोबनवाळी, जोराळी
विध विध वपु वाळी, अकळ कळाळी, मृडा दयाळी, मायाळी
आपत्ति अघ टाळी, कर रखवाळी, तूं एको मम, त्राता जी
रहो राजी राजी…(३)
प्राक्रम पामेवा, विजय करेवा, लेवा जग जश, लाभेवा,
अजरामर एवा, अभय अभेवा, देवन देवा, महादेवा
चाहत तुज सेवा, हरि-हर जेवा, देवी वांच्छित फल दाताजी
रहो राजी राजी…(४)
निगमागम जाणी, विविध वखाणी, पुनित पुराणी, परमाणी
सुर सेव्य सयाणी, मा महाराणी, रुप ब्रह्माणी, रुद्राणी
विद्याप्रद वाणी, वीणा पाणी, वरदाणी, विख्याताजी
रहो राजी राजी…(५)
महिषादीक मारणि, असुर-अहारणि, खळदळ धारणि, खग धारणि
सुरकाज सुधारणि, अमर उधारणि, कष्ट निवारणि, शुभ कारणि
आश्रित उगारणि, दुर्मति हारणि, चारणि चंडि, प्रख्याताजि
रहो राजी राजी…(६)
शंकर कैलासी, संग प्रवासी, सदा हुलासी, सुखराशी
गिरि गबर निवासी, विंध्य विलासी, टाळण फांसी, चोरासी
ऋषि सहस्त्र अठ्यासी, सिद्ध सन्यासी, गुण चारण सुर, गाताजी
रहो राजी राजी…(७)
सेवक कवि ‘शंकर’, कहत जोरी कर, कृपा नजर कर, करुणाळी
मोहि ताप मुगतकर, षड रिपु क्षयकर, तन-मन दु:ख हर, त्रिशुळाळी
गिरिजा मा मम घर, रिद्धि सिद्धि वृधी कर, दे सुबुद्धी सुख, शाताजी
रहो राजी राजी….(८)
|| छंद :छप्पय ||
नमो अंबिका उमा, अद्रिका अजा अपर्णा
नमो गोरी गिरिसुता, आशपुर्णा अन्नपूर्णा
नमो भीड भंजणी, भवा भगवती भवानी
नमो दया सागरी, देवि दुर्गा महादानी
दु:ख दमनि सिद्धेश्वरी शंकरी, कृपा सिघ्र मम पर करो
शिवा प्रिया हुं ‘शंकरदास’ के, दुरित रोग दारिद हरो
रचना = चारणकवि श्री शंकरदान जेठीदान देथा
लींबडी राजकवि
टाइपिंग = राम बी गढवी
नविनाळ-कच्छ
फोन =7383523606