चारणकवि नारणदान सुरु द्वारा रचित मां मोगल नी चरज
मोगल नी धाबडी छांये रे,उछरीये मावडी पांये रे
झरता नेणे हेतना झरणा,प्रेमना पाणी छलकावती आवे रे
आयल देवसुरनी आवे रे…
रणझण पायमां रणके रे,ठणण कांबीयुं ठणके
छोरुना वारणा लेती,आइ अनोंधा छलकावती आवे रे
आयल देवसुरनी आवे रे…
घांघणीया कुळमां आवि रे,हैयानो हिंचको लावी रे
उदरे छोरु लइने अंबा,हैडे चांपी रमाडती आवे रे
आयल देवसुरनी आवे रे…
सुणीने नाद खमकारा रे,उभरता हेत अमारा रे
वारणा लेती धुपनी सोड़म,आइमा पालव प्रसरावती आवे रे
आयल देवसुरनी आवे रे…
माथापर हाथ जो तारो रे,करे सुं काळ बिचारो रे
“नाराण”(कवि) के वारणा लेवा,हेतना भरी हाथ लंबावे रे
आयल देवसुरनी आवे रे…
रचना=चारणकवि नारणदान सुरु
टाइपिंग=राम बी. गढवी
*नविनाळ=कच्छ
फोन=7383523606
भुलचुक सुधारीने वांचवी
वंदे सोनल मातरमं