तर चंदन है धर वीर सबै,
मंडिय गल्ल कीरत छंदन में।
द्विजराम प्रताप शिवा घट में,
भुज राम बसै हर नंदन में।
निखरै भड़ आफत कंचन ज्यूं,
उचरै कवि वीरत वंदन में।
छवि भारत की लखि पाक लही,
इक शेर इयै अभिनंदन में।।
गल्ल कूड़ मनै धर वीरत की,
दत्त कीरत को पुनि कूड़ कहै।
नर भीम महाभड़ की गल्ल जो,
भल्ल भल्ल रु मान के नाय गहै।
धज ताण रखी धर्म राखण कूं,
विशवास पते पर नाय थहै।
तो कवि गीध कहै ललकार इन्हें,
अभिनंदन को टुकी देख लहै।।
अगराज गयो अरियांण धरा,
जयकार करी हिंद वंदन को।
ललकार करी दृढ भाव हियै,
फटकार दिवी मतिमंदन को।
धिन देह समर्पित भारत को,
पुनि ताव बताविय गंदन को।
शत्रु पाक लियो लख रूप महाभड़,
साफ इयै अभिनंदन को।।
~गिरधरदान रतनू दासोड़ी