Sat. Apr 19th, 2025

माँ भवानी पण, अति बलशाली श्रेष्ठतम शक्ति छे जेना आधारे आ जगत टकेलो छे। शक्तिविहीन जीव अथवा आखो बृहमांड नकामो छे। एज शक्ति थी बधुं संचालन थाय छे। शक्ति ना अनेकानेक रुप छे, विविधरुपा शक्ति जेने आपणे देवी, माताजी, आई,माड़ी मैया कहिये छिये एज बधा नो आधार स्थंभ भरोसो ने विश्वास।

अवतार…. जे तारी सके, पार करी सके अने त्रणे शूलो (त्रिशूल) अज्ञान, अभाव, अशक्ति अथवा एम कहिये दारिद्रय, दुख,भय या आदि, व्याधि, ओपाधी नो जड़ मूल थी दमन करी शके एज अवतार कहवाय। अवतार सुगण साकार रूप  नर नारी रुप मां पृथ्वी पर प्रगटे छे ..

आई सोनल एवोज एक अद्भुत देवी अवतार थया जेने मैं नाचीज़ स्वयं पोतानी नजरो थी कणेरी माड़ी नी वाड़िये एना तेजस्वी स्वरूप, एनी देवीकल्ला अने प्रत्यक्ष चमत्कारों नो आभास करयो… चंदनस्य परोपकाराय संतो विभुत: बधुं परोपकार माटे… अखंड बृह्मचर्य, अखंड अन्नक्षेत्र, अखंड जप तप अने  सर्वमानव उदार उद्देश्य एज माड़ी सोनल नो जीवन हतुं।

आई सोनल अमर छे, हुं लगभग डोढ महीना थी अस्वस्थ छूं साइटिका, प्रोस्टेट अने घणा बधा मैसेज वांचतां वांचतां आईसाइट पर कुप्रभाव पड़यो छे लखवानो बंद करी दीधुं पण जो माड़ी ने पावन धाम मढ़डा़ हाजरी नो आपी सकुं तो आ श्रद्धा समन अर्पित करु छु…माड़ी सोनल जे पोते…… करुणामय्यै, कल्याणमय्यै स्नेहमय्यै, अमृतमय्यै, आनंदमय्यै, दयामय्यै एवं उदारमय्यै छे …मारा वंदन स्वीकार करशे एवी द्रढता अने पूर्णतया अटल श्रद्धा ने विश्वास छे

दोहो
सुं कीर्ति करुं सोनला, तारी महीमां अपरम्पार।
नतमस्तक नमन करुं, करुं वंदन वारम्वार ।।

टेर:– रास ताल
मढड़ा वाली मात् तने, वंदन वार वार….
वंदन वार वार… एजी… करुं छुं पुकार….
डूबत चारण नैया मैया करजे बेड़ा पार….
मढड़ा वाली……

1.    तूं चारण कुल मां मैया,
जन्मी हती ज्यारे ।
हतां कुसंम्प क्लैश ने
वाद वधारे ।
एजी..मढड़ा वाली पल में
मेटया…रेटया द्वेष द्वार।।
मढ़डा़वाली……

2.   तूं छो सोरठधरा मैया
शक्ति शीरोमणी ।
तूं देवी कुलदेव चारण
मात् महीमणी ।
मध्य कलयुगे मढड़े माड़ी
अद्भुत लिधा अवतार ।।
मढड़ा वाली…….

3.     सोनल तारी वाडी़ये
अखंड जोत जागती हती।
तारी कणेरी ने कांठे
नौबत वाजती हती ।
कांँने सांभली मै..कांबियो
ने झांझर नी झणकार ।।
मढड़ा वाली ……..

4.  अखंड अन्नक्षेत्रे तारा
चालता रसोडा़ ।
लाडुवा ने लापसी
आमरस कटोरा ।
एजी…जमता जीमणवार जेम
दे्वी तारे द्वार ।।….
मढड़ा वाली………

5.  मनोरथ पूरया माड़ी
शरणे आयां सेवकों ना ।
तूं छो लाज राखणी
सहु नी मृत्यु लोक मां ।
एजी.. उन्नति अमर करजे सोनल
चारणों नी चौधार ….
मढड़ा वाली……..

6.  माँ..  छोरु कछेरु थाय
नो थाय कदिये मावड़ी ।
बिर्द तारो पालजे माड़ी
मारी हृदय राख वातड़ी ।
आवजे फरी लेवा सोनल
तारा छोरूओं नी सार……
मढड़ा वाली………

7.  कर जोड़ी ने वंदन करुं
वेगी करजे वार (वाहर)
तूं  अर्द्धांगिनी शिवाशक्ति
गौरी गिर्जाकार ।
कवि ” आशू ” पर कृपा किजे
मैया नोधारों औदार ।।..
मढड़ा वाली मातः तने…
नमन वार वार…नमन वार वार…
करुं छुं पुकार… डूबत नैया मैया
करजे बेड़ा पार…..मढड़ा वाली….
सोनल शरणागत आशूदान मेहड़ू जयपुर राज।

सोनल श्रद्धा सुमन

1. करुं छुं वात हुं साची,
तजी तारी खुमारी दे ।
जो इच्छा होय अटल सुख नी,
पोता ने सुधारी दे ।।

2. जो ! जग तरवा नी जुंबिश मां,
पड़यो छे जीव तुं पापी ।
हवे हद थी हद बदतर,
वहले तुं विचारी ले ।।

3.  गमया छे दिवसो घाटा,
वर्ष वीती गयां गाफिल ।
तजी मद मोह माया ने,
नाम सोनल पुकारी ले ।।

4.  थशे एमज पार तारी,
आ  जरजर डूबती नैया ।
जो हशे कश्ती हाथ सोनल ,
तो नैया पार तारी छे ।।

5. बगाड़ी खूब छे बगिया,
उजाड़ी एह छे ब्होली ।
हवे करतो ना कपट एवा ,
ना कोई ने तुं पाड़ी दे ।।

6..शुं ? सुकृत छे करयो कोई ,
करयुं छे कोई सुधार एवो ।
बनी आधार रहे जग में ,
एवी सुं आधारी छे ।।

7. जो, नथी साहस संघर्ष नो ,
नमीं जा देव चारण तुं ।
शरण सोनल ग्रहि लिजे ,
बधुं माँ पर वारी दे ।।

8. अज्ञान, अभाव, अशक्ति जे,
त्रणे शूलो त्रिविध घाती ।
तदन कापी करे कटका ,
के्वल माड़ी कटारी छे ।।

9.  पछी तुं केम नथी करतो !
धरतो ध्यान महा माई ।
डगर डगर शुं खाय डबका ,
देह चारण धारी छे ।।

10.  शक्ति आभास थयूं सोनल ,
जेणे जोयुं जिगर झांकी ।
बधा बीजा फोगट फफड़ा ,
फरकी फौजदारी छे ।।

11.  करोड़ों ना कार्ज सारया ,
सोनल आई श्री रुपा ।
भंडार अन्न धन भरी दिधां ,
मढड़ा मात् मारी छे ।।

12. ज्यां दिल मां कटरपण ना,
बीज अंकुरित थया देखो ।
त्यां लड़ाई राम अल्ला नी,
नकामी तरफदारी छे ।।

13. बचयुं बाकी जवानुं छे ,
मंजिले-मज़ार नी हारे ।
लिबासे-कफ़न ओढी ने ,
खरी धरती पथारी छे ।।

14. बोल कड़वा छे बहु मारा ,
कलम् कड़वी हाथ लिधी ।
रस ऊँडांण मां राख्यो ,
भाख्यो बिन गद्दारी छे ।।

15. जो  गयो ! भूली अवर ठौड़े,
दुकाने दूर जा बेसी ।
तने उधार नो आपे ,
माँ बिन जग मदारी छे ।।

16. “मैं” “मैं ” शुं करे मूर्ख ,
” मैं ” “मैं ” ने मटाड़ी दे ।
ईरादो नेक छे ” आशू ” ,
भ्रांति  ने  भगाड़ी  दे  ।।
कहुं छुं वात हुं साची ….
तजी तारी खुमारी दे ।
जो इच्छा होय अटल सुख नी,
पोता ने सुधारी दे ।।

~आशूदान मेहड़ू जयपुर राज.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *