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गर्विली गुजरात रै मढड़ै गांम में जनमी मा सोनल जिकै “मढड़ै वाल़ी मात” रै नाम सूं लोकप्रिय रैयी। उणां समाज रै हित चिंतन सारू अथग प्रयास किया। उणां रै सुभग संदेश रै भावां नै कीं शब्द देवण री कोशिश करी हूं। आपरी निजर कर रह्यो हूं-

।।गीत – वेलियो।।
मढड़ो महमाय थान इऴ, मोटो,
जग में आज चारणां जात।
कऴजुग-पाप दरसणां काटण,
सोनल उथ राजै सुखदात।।१

धारण-चारण एक धरा रा,
भायां मांय किसो ओ भेद।
सोनल तणो संदेशो साचो,
इऴ पर पूगो थपण अभेद।।२

पूगा पात तीरथ धर पावन,
परस आई रै पड़बा पाव।
मन धर हरस उठै हिऴमिऴिया,
चारण-धारण एको चाव।।३

माता देख जात रो मेऴो,
पावन वचनां किया पवीत।
परहर-नशा नीत मग पकड़ो,
अकरम आऴस तजो अनीत।।४

आचरण शुद्ध राखणो अंतस,
मन शुद्ध बहो साच रै माग।
छऴ-कऴ अनै छदम नै छोड़ो,
आपस में रखणो अनुराग।।५

पावन जात जनम हद पायो,
भोम सरायो थांरो भाग।
देवी-पूत जगत सह दाखै
अवनी भूप आपणा आघ।।६

ओ अफसोस मूझ मन आवै,
किसड़ा जात पोऴाया काज।
बेटा अनै बेटियां बेचो,
लोयण भली त्याग नै लाज।।७

सुणजो बात कहूं इक साची,
ध्यान जिकण रो लीजो धार।
रिस्तां मांय विणज री रीतां
करजो मती अजोगा कार।।८

बोलै परसाद बकरिया बेखो,
करुणानिध आगै दे काट।
देव जात मानै ज्यां दुनिया!
वसुधा बहै हिंसा री वाट!।।९

जिण थांनग बैठी जगजामण!
जीव जंत रखवाऴी जोय!।
कहणा चकर बकरिया काटै!
कीकर कहै देव -कुऴ कोय?।।१०

महिषां जेम पीवै नित मदिरा!
ऊगां ऐम करै अट्टहास!।
भलपण काज लाज नै भूलै!
भूंडा बकै सैण नै भास!।।११

बुद्धवंत देख कुबुद्धि बहणा!
अकरम उर नै दैण उचाट।
आई जनम दियो अणदागल!
काया मूढ लगाड़ै काट!।।१२

किरसण करो पवित्र कारज,
बछड़ा रखो आवखा वीर।
अंतस द्वेष ईसको तजनै,
शिक्षा लीजो होय सधीर।।१३

मदिरा-मांस हिंसा रै मोरो,
निरमऴ रखो आपरो नेस।
गिरधर कहै सांभऴो गुणियां,
आई ऐह दिया उपदेश।।

~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

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