(23 दिसम्बर शौर्य दिवस पर विशेष)
आज ही के दिन लॉर्ड होडिंग् पर बम फेंक कर सम्पूर्ण भारत में यह संदेश दिया कि ब्रिटिश हुकूमत अजेय नहीं है इसको भी हम धराशाई कर सकते हैं। इस बम कांड से क्रांतिकारियों में एक नवीन चेतना आई थी। बम काण्ड के फलस्वरूप बाजीसा पर वारन्ट जारी हो गया तथा एक भारी रकम ईनाम स्वरूप उन्है पकड़वाने वाले के लिये घोषित की थी. इसलिये वे कभी कभी ही घर आ पाते थे जब वे पधारते तो एक विशेष प्रकार की तेज सिटी की आवाज सुन कर संकेत से सभी सावचेत हो जाते थे | उनके पधारते ही घर में चहल पहल हो जाती थी|
एक बार घर आते ही किसी ने पुलिस को सुचना दे दि तब तेज बुखार में कोटड़ी तालाब की छतरी पर शीत ज्वर में एक कम्बल में दो दिन तक यहीं रूकना पड़ा.
साकेत की उर्मिला की तरह अनोप कंवर जी ( जोरावर सिंह जी की पत्नी) ने ताउम्र बाजीसा का साथ दिया. देश की आजादी की बलिवेदी पर परिवार का सर्वस्व लुट चुका था, यातना के सिवाय कुछ न बचा था. एक बार बाजीसा रूग्णअवस्था में घर आये तब उनको कमरे में ताला लगाकर रखा गया . रात को खाना दवा मरहम पट्टी व सुबह ४ बजे वापस ताला , ताकि परिवार का कोई अन्य या नोकर को किसी के होने का शक न हो. फिर उन्हे तीसरे दिन ही बेलगाड़ी में चारे के बीच छिपा कर मोरटहुका ( बूंदि) गांव में पहुंचाया.क्यों की कोटा मे खतरा था , पकड़ में आना, मतलब फांसी .वहां पर भी ठहरने कि सुचना पुलिस को लग गई.गांव को घेर लिया गया मगर वे यत्न पुर्वक गांव से निकल गये .तीन मील दूर जाल के पेड़ के नीचे शरण लेनी पड़ी , क्यों कि उन दिनों उनकें पांवो मे बाले (नारू ) निकल रहे थे . असहनीय दर्द होता था तब अनोप कंवर जी उनके पास रहती व जब सारा गांव सो जाता तब भाभा उनके लिये भोजन पानी का घड़ा पैरों में बांधने कि पट्टी , दवांईया लेकर जाती व दिन में दो तीन मिल चक्करदार रास्ते से घुमकर पहुचाती ताकी पुलिस को शक न हो.छः माह तक निरन्तर कठोर यंत्रणा सहनी पड़ी . कई बार भय के कारण किसी को शक न हो जाये उनको केवल एसी हालत में सिने पर पत्थर रख कर उन्हे अकेला छोड़ कर आना पड़ता . पैर में पट्टी खोलने पर मवाद के कनस्तर भर जाते थे, उठने बैठने पर भयंकर दर्द होता . केसरी सिंह जी पर अंग्रेजो की पुरी नजर रहती थी रोजाना की रिपोर्ट रेजीडेन्ट कोटा और एजेन्ट गवर्नर जनरल के पास आबु पहुंचती थी , इस कारण वे भाई को मिलने तक नहीं आ सकते थे
वहीं से इंतजाम करवाते डॉक्टर वैध्य के सही उपचार के अभाव में जब ठीक हुए तो एक पैर सदा के लिये खिंच कर छोटा हो गया. जिससे जीवन भर कुछ लंगड़ा कर चले थे.
–आदरणीया राजलक्ष्मी साधनाजी ने जैसा बताया
जिस वीर ने जीवन के सभी भौतिक सुखों को त्याग कर जीवन पर्यन्त मात्रभुमि की स्वतन्त्रता का अलख जगाया उनको हम इतिहास में यथोचित वो स्थान नही दिला पाये जिनके वो हकदार थे, 2012 में राष्ट्र गौरव रथ यात्रा के बाद इस वर्ष 2018 में अमर शहीद कुंवर प्रतापसिंह बारहठ शताब्दी समारोह में मेवाड़ गौरव क्रांति रथ यात्रा निकाल कर जनसामान्य में इन महानायकों के लिए अलख जगाई है। उदयपुर में हरेंद्र सिंह जी एवं शाहपुरा में कैलाश सिंह जी जाडावत के सानिध्य में कुछ काम हुए हैं पर बहुत काम बाकी है
महेन्द्र सिंह चारण
संपादक
चारणत्व मेगज़ीन