Thu. Nov 21st, 2024

जय हिंगलाज । वंदे मातरम् ।सुरेंद्र सा के साथ इस महती समूह के सभी सम्मानित सदस्यों को सादर जय माताजी री सा ।
समस्त मार्शल कौमों को एक ध्वज तले लाने के भागीरथी प्रकल्प हेतु आपका वंदन करता हूँ ।
समाज में विध्वंशकारी संक्रमणकाल चल रहा है । तथाकथित ताकतें संविधान और जातीय विद्रूपता की दुहाई देकर हमारे सुदृढ़ जातीय ताने -बाने को बिखरने का कुचक्र चल रही है ।
समानान्तर बहुत से दैत्य – दानव उद्भूत होते जा रहे हैं । सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्य तिरेहित होने की कगार पर हैं । और यह सब हमारी ही निस्क्रिय पीढी की नंगी आँखों के सामने कुछ ही सालों में होने वाला है ।
सो यदि पुरखों की विरासत को बचाए रखना है तो उदारमना होना पड़ेगा । राजपूतों( राजा के पुत्रों) को रजपूत ( रज- मिट्टी,धरती के पुत्र) बनना पड़ेगा । सामंतवादी सोच को सहकारवादी ,समभाव सोच में बदलना पड़ेगा । जातीय गौरव को जिंदा करना पड़ेगा । “एक सबके लिए-सब एक के लिए ” भाव से एक लम्बा सशक्त कारवां बनाना पड़ेगा ।
चारणों को इकेवड़िया-बेवड़िया-डोळिया- कींजरा -की दीवारें छोड़ कर सिर्फ चारण बनना पड़ेगा ।
राजपूतों को( माफ कीजिएगा आज की इस रक्तबीज व्यवस्था के चलते जिनकी दुर्गति सबसे ज्यादा हो रही है) को भी बढेर,रावळा,भोमिया, दरोगा,रावणा, छुटभईया….की विभेदकारी दीवारें गिराकर एक होना ही पड़ेगा ।
इसी तरह से राजपुरोहितों को भी पुरोहित- राजपुरोहित,गुरु- राजगुरु,खळायकिया,डोळिया…जैसी भीतें तोड़कर “एक धारण” होना पड़ेगा ।
अभी नहीं तो कभी नहीं । हम राष्ट्र,राष्ट्रीय मूल्यों और संविधान के सृजक व पालक रहे हैं और सच्चे भारतीय हैं , परंतु आज की लचर तुष्टिकरण सरकारी पॉलिसियों और आरक्षण व्यवस्था ने हमारे यूवाओं को कुण्ठा ,अवसाद और प्रतिभा पलायन का दंश ही दिया है और यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहेगा ।
सो मेरे मुअज्जीज मित्रों! यदि व्यवस्था बदलनी है तो इस मुहिम को व्हाट्सअप व सोशल मीडिया की रूहानी- फानी दुनिया से बाहर निकाल कर जन -जन के दिलो-दिमाग में बिठाओ । घर-घर,ढाणी-ढाणी,गाँव-गाँव जाओ । स्वयंसेवकों की टीमें बनाओ । छत्तीस कौम  के प्रति सद्भावना फलीभूत करो । फौलाद की तरह संगठित और अपनों के लिए मोम की तरह नरम बन जाओ । छोटे- बड़े का भेद मिटाकर संस्कारों की संजीवनी से समाज को सिंचित करो । समाज में व्याप्त तमाम कुरीतियों की पोटली बनाकर किसी अँधे कूँएं में डाल आओ । शिक्षित बनो- सक्षम बनो ।
और यह सब तब होगा ,जब व्यक्तिश: हम सभी इसे अपनी प्राथमिकता में रखकर इसे निजधर्म समझना शुरु कर देंगे ।
कालचक्र तो अबाध गति से चल ही रहा है । यह निहायत ही क्रूर है ।
डार्विन बरसों पहले ही हमारे लिए कह गए हैं कि यदि जिंदा रहना है तो आपको सक्षम बनना ही पड़ेगा ।
“Survival of the fittest”
“लांठां री सकराँयत”
समय आपका इंतजार नहीं करने वाला । सो जो करना है और वाकई करने की नीयत रखते हो तो आज,अभी ,इसी पल से लग जाओ इस युगांतरकारी मुहिम में ।
वरना मरोगे तो वैसे भी एक दिन । पर वो मौत भी कुत्ते की मौत होगी और तिल- तिल करके मरोगे ।
चारण हूँ सो खारी व खरी कहना मेरी वंश परंपरा में है । यदि किसी सज्जन को मेरी कोई बात अशोभनीय और चुभती सी लगी हो तो मुझे माफ करें ।
पर निवेदन यही है कि आप अपना निर्णय खुद लें और एक सुदृढ़ व सुखी राष्ट्र व सशक्त समाज के पुनर्निर्माण में अपने हिस्से की एक अदद् मोमबत्ती जरूर जला दें ।
वंदे मातरम्
– नारायण सिंह तोलेसर
( विराट राजपूत सभा के लिए मेरे ताजा विचार,जो पाँच मिनट में मेरे अपरिपक्व मानस में कौंधे ।
यहां यह संदेश प्रेषित करना आपको असंगत लग सकता है परंतु एक नूतन समाज को जागृत करने का दायित्व हम चारणों का प्राथमिक कर्तव्य है ।
आप सभी को नई सरकार की अनंत बधाई ।
आपकी प्रभात शुभ हो । जय हिंगलाज ।
– नारायण सिंह तोलेसर
🙏🏻🌻🙏🏻🌼🙏🏻🌺🙏🏻🌸🙏🏻🌹🙏🏻

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *