कवित्त !!
सन्नी जमराज दोऊ धारत महीषन को,
मृग पे मयंक अर्क अश्व पे दिखात है !
ब्रह्मा अरू सुरसती हंस पे सवार बनें,
तारख पे विष्णु मैन मीन पे विख्यात है !
मूसा पे गजानन रू मोर पे षडानन है,
गज पे सवार होत इन्द्र गरजात है !
मेरे माने देवन मे महादुर्गा ही को मानो,
सिंह पै चढी है सो तो बङी करामात है !!
मोडसिंहजी महियारिया !!
मैं तो मतिमंद अंध जानूं नहिं ध्यान तेरो,
तूतो सरवज्ञ कृपा उर आनिये !
जैसे सुत माय ढिग बोलें तुतराय बैन,
रोटी कहै ओटी पापा पानी ते बखानिये !
ताहिकी अशूध्दताने शुध्द कर माने मात,
ऐसे ही हमारे वाक्य आप मन मानिये !
आनिये कृपा की दृष्टि बेग जगदम्ब मो पै,
ऐसे “बालक” को तिहारो दास जानिये !!
प्रतापसिंह जी राजावत !!
दुर्गा प्रति पुकार दशा निज मुरारि कहै,
बाल वय में ही भयो अंत बाप को !
जननी के बपु को रोग ग्रसित कीनो जब,
काटनो कठिन हुयो समय विलाप को !
भक्त भय हार ब्रद धार गिरराय सुनो,
कहाँ लों बखान करूँ विपता अमाप को !
सारेदुख अगार बीच आदि हीते रहो मात,
अनुचर के आधार है एक सिर्फ आपको !
मुरारीदानजी कविया सांढियों का टीबा जयपुर !!
प्रातःकालीन प्रार्थना के सुन्दर भावार्पण के प्राचीन कवित्त, धन्य है तीनो ही महान कवैसरों को जिन्होने ऐसे सुन्दर पद रच कर आनेवाली भक्तों की पीढियों के लिए थाती बना गये है, भगवती व भक्तों का सनातनी सम्बन्ध जुङवाने वाले कवित्त है !!
~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!