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।।दोहा।।
सक हय बसु सत्रह समय, माधव दरस मिलाप।
घटिय रुद्र रवि के चढत, उलटि समुद्रन आप।।१

।।छंद – दुर्मिला।।
दुव सेन उदग्गन खग्ग समग्गन
अग्ग तुरग्गन बग्ग लई।
मचि रंग उतंगन दंग मतंगन
सज्जि रनंगन जंग जई।।१

लगि कंप लजाकन भीरु भजाकन
बाक कजाकन हाक बढी।
जिम मेह ससंबर यों लगि अंबर
चंड़ अडंबर खेहू चढी।।२

फहरक्कि निसान दिसान बडे
बहरक्कि निसान ऊड़ैं बिथरैं।
रसना अहिनायक की निकसैं कि
परा झल होरिय की प्रसरैं।।३

गज घंट ठनंकिय भेरि भनंकिय
रंग रनंकिय कोच करी।
पखरान झनंकिय बान सनंकिय
चाप तनंकिय ताप परी।।४

धमचक्क रचक्कन लग्गि लचक्कन
कोल मचक्कन तोल कढयो।
पखरालन भार खुभी खुरतालन
व्याल कपालन साल बढ्यो।।५

डगमग्गि सिलोच्चय श्रृंग डुले
झगमग्गि कुपानन अग्गि झरी।
बजि खल्ल तबल्लन हल्ल उझल्लन
भुम्मि हमल्लन घुम्मि भरी।।६

मचि घोरन दोर दु ओर समीरन
जोर उमीरन घोर जम्यों।
अभमल्ल उछाहन हड्ड हठी
कछवाहन गाहन चाह क्रम्यों।।७

सुव जैत इतैं भट देव सही
करि स्वामि मही हित संग सज्यो।
दुहुओर कुलाहक तोप दगी
लगि भद्द बलाहक नद्द लज्यो।।८

~~महाकवि सूर्यमल्ल मीसण (वंश भास्कर)

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