आदरणीय डॉ.आईदानसिंहजी भाटी री ओल़ी चिड़कली सूं प्रेरित कीं म्हारी ओल़्यां ऐ नजर
तूं तो भोल़ी भाऴ चिड़कली।
दुनिया गूंथै जाऴ चिड़कली।।
धेख धार धूतारा घूमै।
आल़ै आल़ै आऴ चिड़कली।।
मारग जाणो मारग आणो
हुयगी अब तो गाऴ चिड़कली।।
बुत्ता दे बस्ती भरमावै।
वै ई पैरै माऴ चिड़कली।।
ऊंटां रै इकसार गिणीजै।
डाम ज्यूं ई आ घाऴ चिड़कली।।
तूं तो अब नाहक ई झूमै।
मनमठियां री चाऴ चिड़कली।।
डाल़ डाल़ काल़ींदर बैठा।
तूं किम लेसी टाऴ चिड़कली।।
मतो ढाण रो करिये करियो।
आई अचाणक ढाऴ चिड़कली।।
जिकै देख थूली सूं मूंघा।
वै ई जीमै थाऴ चिड़कली।।
ज्यांरो पाणी मरग्यो ओ तो।
कीकर गऴसी दाऴ चिड़कली।।
चवदै गज गऴियां में चवड़ा।
घर में मुट्ठी न्हाऴ चिड़कली।।
भलां भलां नै आज लागगी।
कुत्ते वाल़ी लाऴ चिड़कली।।
पग पग देख चिरत रा चाल़ा।
तूं मत आंशू राऴ चिड़कली।।
रीत नीत री वाणी निरभै।
प्रीत पुराणी पाऴ चिड़कली।।
कलम चोंच तीखी नित रखजै।
बण कपट्यां रो काऴ चिड़कली।।
~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”