गिरधर दान रतनू “दासोड़ी” द्वारा गुजराती अर डिंगल़ रा महामनीषी विद्वान अर ऋषि तुल्य पूज्य दूलाभाया काग नै सादर
कवियण वंदन काग
दूहा
सरस भाव भगती सहित, राम मिलण री राग।
गुणी मुलक गुजरात में, करी भली तैं काग।।१
छंद छटा बिखरी छिती, इल़ा करै सह आघ।
आखर साकर सारखा, करिया घर -घर काग।।२
मरू गूजर सह एक मन, भाल़ सरावै भाग।
जाती गौरव जनमियो, कीरत खाटण काग।।३
गूजर मरूधर में गिणो, पात वरण री पाघ।
ऊंची धिन राखी ईंमट, कवियण साचै काग।।४
सगती भगती एक सम, संस्कृति अनुराग।
सत वकता सींची सुरां, कवियण नामी काग।।५
वाणी आ राची विमल़, थहै न किण सूं थाग।
चित्त चारणाचार मे, कवि नित राख्यो काग।।६
नीति नग जड़िया निपट, मही दियण सत माग।
आखर कहग्यो ऊजल़ा, कवियण वंदन काग।।७
दिशाबोध सबनै दियो, जियो जात हित जाग।
रसा काम अम्मर रियो, कवियण वंदन काग।।८
साच वचन तन सादगी, आखर कहण अथाग।
गुणी !करै तो गीधियो, कवियण वंदन काग।।९
बांण उटीपी विमल़ बुद्ध, आद रीत अनुराग।
गरवीली गुजरात में, कवी भगत भो काग।।१०
~गिरधरदान रतनू दासोड़ी