जन्म | संवत 1515 श्रावण शुक्ल बीज को प्रातः काल में |
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माता पिता | माता का नाम अमरबाई गाडण व पिता सुराजी रोहड़िया शाखा के चारण थे |
जन्म स्थान | भादरेस, बाडमेर राजस्थान |
विवाह | |
संवत 1532 कार्तिक शुक्ल ग्यारस (देवउठनी ग्यारस) के दिन झांफली गाँव के भेरुदानजी झीबा की सुपुत्री देवलबाई के साथ ईश्वरदास जी का विवाह हुआ | |
महाकवि ईशरदासजी बारहठ से समंधित सामान्य जानकारी | |
01. – ईश्वरदास जी के चार भाई – भोजा, चोला, नंदा, कुरा और पांच पुत्र – जागा, चुंडा, काना, जैसा और गोपाल थे ! 02. – संवत 1539 में ईश्वरदास जी की अर्धांगिनी देवल बाई जहरीले बिच्छू के काटने से देवलोक सिधार गए, अंतिम क्षणों में ईश्वरदास जी से कहा कि मैं अगले जन्म में सौराष्ट्र में रासला गाँव के पेथा चारण के घर जन्म लूंगी आप मेरी वहीं सार लेना ! 03. – दूसरा विवाह देवलबाई के वचनानुसार रासला गाँव के पेथा अवसुरा की पुत्री राजबाई के साथ हुआ, इस विवाह में बारात जाम खंभालिया से चढी थी ! जिसमें रावल जाम स्वयं बाराती बने और राजसी ठाठ से विवाह हुआ ! 04. – ईश्वरदासजी के छः संतान थी पहली पत्नी देवलबाई की कोख से दो पुत्रों (जागा और चुण्डा) ने जन्म लिया और दूसरी पत्नी राजबाई की कोख से 3 पुत्र (काना, जैसा ओर गोपाल) और सबसे छोटी एक पुत्री (पार्वती उर्फ पदमा) ने जन्म लिया ! 05. – 107 वर्ष की आयु में संवत 1622 रामनवमी के दिन जामनगर के संचाणा गाँव में ईश्वरदासजी ने अपने पुत्र, पोत्रो, सगे सम्बन्धियो और गाँव वासियों को अपने हाथो से मिश्री बाँट कर संचाणा की भूमि को अंतिम नमन करके समुद्र में पानी पर घोड़ा द्वारिका की और यह कहते हुए झोंक दिया — 06. – ईश्वरदास जी की दूसरी पत्नी राजबाई को ईश्वरदासजी के देवलोक गमन की सूचना दो-तीन दिन बाद पहुंचने से वह ईश्वरदासजी के पीछे संवत 1622 के चैत्र सुदी तेरस के दिन सती हुई ! 07. – ईश्वरदासजी ने 45 ग्रंथ लिखे थे जिनमें से मुख्यत – 08. – ईश्वरदासजी का जन्मदिन भादरेस में और निर्वाण दिवस संचाणा में मनाया जाता है, दोनों जगह भव्य मंदिर है ! 12 – ईश्वरदासजी के गुरु पितांबर भट्ट थे ! 09. – ईश्वरदासजी जामनगर के राजकवि और सलाहकार थे ! 10. – मां रुक्मणी ने देवियाण के पाठ को सुनकर आशीर्वाद देते हुए कहा – ईश्वरदास यह देवियाण चंडी पाठ के समान भक्तों को फलदाई होगा ! 11. – हरिरस ग्रंथ को अनूठे रसायन की संज्ञा दी गई है — 12. – ईश्वरदासजी के नाम का धूप करके तांती बांधने से बिच्छू का जहर तुरंत उतर जाता है ! 13. – रावलजाम के खिलाफ काँमेई माँ ने जब जमर किया था तब ईश्वरदास जी साथ थे ! 14. – ईश्वरदासजी ने द्वारिका के गूगली ब्राह्मणों को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था जो आज भी ईश्वरदास जी को बहुत मानते हैं ! 15. – ईश्वरदासजी ने ग्वाला सांगा गौड और अमरेली के बीजा के युवा पुत्र करण को प्राणदान दिया था ! 16. – अमरेली में ईश्वरदास जी की मूर्ति है जिसका अनावरण नरेंद्र मोदीजी ने किया था ! | |
जीवन परिचय | |
संवत पन्नर पनरमें, जनम्या ईशर दास भक्त कवि ईसरदास की मान्यता राजस्थान एवं गुजरात में एक महान संत के रूप में रही है | संत महात्मा कवि ईसरदास का जन्म बाडमेर राजस्थान के भादरेस गाँव में वि. सं. 1515 में हुआ था। पिता सुराजी रोहड़िया शाखा के चारण थे एवं भगवान् श्री कृष्णके परम उपासक थे। जन मानस में भक्त कवि ईसरदास का नाम बडी श्रद्घा और आस्था से लिया जाता है। इनके जन्मस्थल भादरेस में भव्य मन्दिर इसका प्रमाण हैं, जहॉ प्रति वर्ष बडा मेला लगता हैं। ईसरदास प्रणीत भक्ति रचनाओं में हरिरस, बाल लीला, छोटा हरिरस, गुण भागवतहंस, देवियाण , रास कैला, सभा पर्व, गरूड पुराण, गुण आगम, दाण लीला प्रमुख हैं। हरिरस ग्रन्थ को तो अनूठे रसायन की संज्ञा दी गई हैं। सरब रसायन में सरस, हरिरस सभी ना कोय। हरिरस ग्रन्थ को सब रसों का सिरमौर बताया बताया गया हैं। हरिरस हरिरस हैक हैं,अनरस अनरस आंण। हरिरस एकोपासना का दिव्य आदर प्रस्तुत करने वाला ग्रन्थ हैं जिसमें सगुण और निर्गुण भक्ति के समन्वय का, भक्ति के क्षैत्र में उत्पन्न वैशम्य को मिटानें का स्तुत्य प्रयास किया गया हैं। हरि हरि करंता हरख कर,अरे जीव अणबूझ। ईसरदास के समकालीन (मध्यकालीन) साहित्य में वीर, भक्ति और श्रृंगार रस की त्रिवेणी का अपूर्व संगम हुआ हैं। परंपरागत रूप से इनके साहित्य में भी वीर रस के साथ साथ भक्ति की उच्च कोटि की रचनाऐं मिलती है। भक्त कवि ईसरदास का हरिरस भक्ति का महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं तो उनकी रचना हाळा झाळा री कुण्डळियॉ वीर रस की सर्वश्रेष्ठ कृतियों में गिनी जाती हैं। यह छोटी रचना होते हुए भी डिंगळ की वीर रसात्मक काव्य कृतियों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं। काव्य कला की द्रष्टि से इनके द्वारा रचे गये गीत भी असाधारण हैं। इनके उपलब्ध गीतों के नाम इस प्रकार हेैं:- गीत सरवहिया बीजा दूदावत रा, गीत करण बीजावत रा, गीत जाम रावळ लाखावत रा आदि। ईसरदास उन गीत रचयिताओं में से हैं, जो अपने भावों को विद्वतापूर्ण ढंग से प्रकट करतें हुऐं भी व्यर्थ के शब्द जंजाल तथा पांडित्य प्रदर्शन से दूर रहे हैं। ईसरदास का रचनाकाल 16वीं शताब्दी का प्रथम चरण हैं। ईसरदास मुख्यतः भक्तकवि हैं इसलिए उन्होने अपनी वीर रसात्मक रचनाओं में किसी प्रकार के अर्थ लाभ का व्यवहारिक लगाव न रखते हुऐ सर्वथा स्वतंत्र और सच्ची अभिव्यक्ति प्रदान की हैं। नक्र तीह निवाण निबळ दाय नावै,सदा बसे तटि जिके समंद। भक्त ईसरदास की मान्यताएं व चमत्कार ईसर नाम अराधियां, कष्ट न व्यापे कोय। संत शिरोमणि, भक्तवर, महात्मा कवि ईसरदास ईसरा परमेसरा के नाम से जगत प्रसिद्ध हैं। लोक देवता बाबा रामदेव की तरह ईसरदास भी सभी जातियों के देवता माने जाते हैं। इनके चमत्कारों की फेहरिस्त काफी लंबी है। काव्य ग्रंथों के उल्लेख के अनुसार भादरेस में दीपावली के मेराइये ((दीपक)) व होली की ज्योति स्वत: ही प्रज्जवलित हो जाती है। ईसरदास जी के बाजरी के भंडार की जली हुई बाजरी भक्तों को आज भी खोदने पर मिलती है। जिनको बाजरी मिलती है उनके घर में जली बाजरी रखने पर भखारी (अन्न भण्डार) की बाजरी ईसरदास जी के परचे से कभी खत्म नहीं होती है। ईसरदास का धूप करके इनके नाम की तांती बांधने पर बिच्छु का जहर तुरंत उतर जाता है। ईसरदास को सच्ची श्रद्धा से पूजने व उनकी आराधना करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है। गुजरात में ईसरदास ने मांडण भक्त के सामने पल में मांस व शराब का अपनी करामात से प्रसाद व अमृत बना दिया। गुजरात के आयरो द्वारा राजा का कर समय पर नहीं भरा जाने पर ईसरदास ने चांद उगने तक अपनी जमानत दी। चांद उगने तक भी रकम की व्यवस्था नहीं हो सकी तो ईसरदास ने अपनी करामात से चन्द्रमा को छिपा दिया। जिसके कारण बादशाह ने उन्हें ईसरा परमेसरा की उपाधि दी। अमरेली के राजा विजाजी सरवैया के पुत्र कर्ण की सांप डसने से मौत हो गई। अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट जा रहे थे। उस वक्त ईसरदास ने अर्थी श्मशान घाट पर रुकवा दी तथा देवताओं की आराधना करके उनको जीवित किया |
ईसरा परमेसरा अवतरण
प्राचीन काल से गिरिनामा संन्यासी, नाथ योगी और अनेक श्रद्धालु हिंगलाजधाम की दुर्गम यात्रा करते आये हे ! इस पावन यात्रा को माई-स्पर्श करना कहते हे !
एक बार गिरिनामा सन्यासियों की एक जमात माई-स्पर्श करने को मारवाड़ से सिंध प्रदेश की और बढ़ रही थी ! बाडमेर के निकट भाद्रेस ग्राम में जमात ने दोपहर का विश्राम लिया हारे-थके पदयात्री पेड़ो की छाया में सुस्ताने लगे ! गाव के प्रांगण में सामने ही सूरा चारण का घर था ! सूरा अपनी पोल में अनमना सा बेठा था ! जमात को देखते ही उसके मन में प्रसन्नता की लहर दोड़ गई सूरा ने जमात के महंत को भोजन प्रसादी के लिए आमंत्रित कर लिया ! तनिक अन्तराल के बाद वह जमात को बुलाने चला आया ! श्री महंत और साधुओ ने सूरा के घर भरपेट भोजन किया !
महंत ज्वालागिरी को यह देख बडा आश्चर्य हुआ की एक ग्रामवासी ने पूरी जमात को इतने कम समय में मिष्टान बना कर केसे जिमा दिया ! भोजनोपरांत महंतजी ने सूरा से पूछा की भक्त तुमने भोजन प्रसादी इतने अल्प समय में केसे तयार कर ली ! सूरा चारण सरलवृति का एक सज्जन व्यक्ति था ! पहले तो वह बात को टालता रहा , किन्तु महंत जी का आग्रह देख उसने आप बीती सुना दी !
शताब्दियों पूर्व गाव में सहकारिता की भावना से खेतो में सामूहिक श्रम कार्य चला करता था ! ग्रामवासी अवसर आने पर एकसाथ मिलकर काम करते ! जिसके खेत में श्रम कार्य चलता वह सबको मीठा भोजन बना कर खिलाता ! उस दिन सूरा ने अपने बीड का घास कटाने को ग्राम वासियों के लिए पकवान तेयार किया था , किन्तु उसका भतीजा ग्राम वासियों को अपने खेत में ले गया ! सूरा की पोल में कडाव भरा सीरा पड़ा ही रह गया ! सूरा के कोई संतान नहीं थी ! वह अपने भतीजे से कोई विवाद खड़ा करना नहीं चाहता था , अतः मन मसोज कर रह गया ! संयोगवश उसी समय गाव में जमात आ गयी और वह सीरा सूरा ने जमात को जीमा दिया !
जब श्री महंत को इस घटना का पता लगा तो सूरा के भतीजे शिवराज को बुलाया ,सन्यासी के नाते उसे अपने पास बैठाकर स्नेह और सद्भाव का उपदेश दिया ! उपदेश सुनना तो दूर रहा , वह अविवेकी अकारण ही आपे से बाहर हो गया और क्रोधवस यह कह बेठा कि आप मोटे महात्मा हो , काकाजी को बेटा देदो !
महंत मुस्कराए और बोले “माई ने चाहा तो ऐसा ही होगा” भगवत्ती की अपार लीला हे ! एक वर्ष के अन्दर ही सूरा के घर ईसर आ गया ! घर में आनंद छा गया ! इस घटना को लेकर लोक प्रचलन में एक दोहा प्रसिद्ध हे !
कापडियो हिंगलाज रो, हिंवाले गलियोह !
सूरा बारठ रे घरे, ईसर अवतरीयोह !
माई-स्पर्श कर महंत ज्वालागिरी ने एक शुभ संकल्प के साथ अपना शरीर त्याग दिया ! चारण समाज में शताब्दियों से यह मान्यता चली आ रही हे की ईसरदासजी पूर्व जन्म के महात्मा थे जो दया विचारकर सूरा बारठ के घर अवतरित हुए !
नाभादास की भक्तमाल में चवदह चारण भक्तो का उल्लेख मिलता हे जिनमे भक्त कवी ईसरदास का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया गया हे !
प्रेषित – गणपतसिंह मुण्डकोशिया-9950408090
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