*ये चारण किसमें आते है*
मेरे मित्र ने मुझसे पूछी बात।
किसमें आती है चारण जात।
वर्ण व्यवस्था में वर्ण चार है।
सनातन धर्म का यही सार है।
वेद पुराण भी यहीं गाते है।
पर ये चारण किसमें आते है।।
मैंने पहली बार विचार किया।
अोर उतर भी पहली बार दिया।
चारों वर्णों से चारण बाहर है।
देव वर्ण है यह जग जाहर है।
रामायण महाभारत बतलाते है।
ये चारण किसमें आते है।।
हम स्वर्ग लोक में रहते थे।
देवताओं की स्तुति कहते थे।
राजा पृथु पृथ्वी पर ले आया।
कैलाश पर्वत उसके मन भाये।
मृत्युलोक में सब को लुभाते है।
ये चारण किसमें आते है ।।
शिव ने उसको आदेश दिया।
आज्ञा पालन हमेश किया।
पार्वती का संग छोड़ न सका।
माँ का वचन कलयुग तोड़ न सका
देवी अवतार इसी जात में पाते है।
ये चारण किसमें आते है।।
ब्राह्मण सी आध्यात्मिकता चारणमें
चारण संतपरंपरा इसी कारण में।
स्वरचित छंदों से स्तुति पाठकिया
ग्रंथसृजनकर सतयुगसा ठाठदिया
कलयुगमें सच्चा विप्र दिखलाते है
ये चारण किसमें आते है।।
क्षत्रिय सा जिसमें रक्षा भाव रहा।
पूरे इतिहास में धोखे का अभाव रहा
विपती में भी धर्ममार्ग छोड़ा नहीं।
कभी स्वामिभक्ति से मुख मोडा़ नहीं
मरकर भी जो मरणपर्व मनाते है।
ये चारण किसमें आते है।
वैश्यके व्यवहार जैसा उदाहरण है
ओर वर्तमानमें चारण एक धारण है
शिक्षा व प्रशासन में डंके बजते है।
विश्व कल्याण हेतु नित सजते है।
ज्ञान मोती हेतु जो गहरे गोते खाते है
ये चारण किसमें आते है।
लोक सेवा भावना शुद्रों से ही सीखी है
प्रभुता संग सादगी इसी जातिमें दीखी है।
सत्याग्रह की चारण परंपरा गांधी का आधार बने।
खरी बात सभी को कहते शत्रु चाहे संसार बने।
क्रांतिगीत लिखकर जो सोए राष्ट्र जगाते है।
ये चारण किसमें आते है।।
मित्रको जाति गरिमा का जब भान हुआ।
चारण जाति पर उसको भी अभिमान हुआ।
चारों वर्णों के श्रेष्ठ गुण जिनमें पाए जाते है।
तभी तो चारण गीतों में गाए जाते है।
भवानीसिंह कविया यह सबको विगत सुनाते है।
ये चारण किसमें आते है।।
~भवानीसिंह कविया नोख ”आर. सी. एस.”