Thu. Nov 21st, 2024

दीपों की जगमग ज्योति के माध्यम से संसार को ज्ञान, प्रेम, सौहार्द, समन्वय, त्याग, परोपकार, संघर्ष, कर्तव्यपरायणता, ध्येयनिष्ठा एवं रचनात्मकता का पाठ पढ़ाने वाले विशिष्ट त्योहार दीपोत्सव की हार्दिक बधाई के साथ अनंतकोटि शुभकामनाएं। भारतीय संस्कृति में संतति यानी संतान रूपी दीपक को यश, प्रतिष्ठा एवं कीर्ति दिलाने हेतु माता-पिता बाती के रूप में पारिवारिक कुलदीपक कह कर पुकारा गया है। हमारे सामाजिक ढांचे को ठीक से समझें तो लगता है कि माता-पिता स्नेह-घृत के सहारे अंतिम समय तक रोशन रहते हुए अपने आपको धन्य मानते हैं। जलती तो बाती है लेकिन नाम दीपक का होता है। माता-पिता एवं बुजुर्ग पर्दे के पीछे रहकर अपनी औलाद को विकास के पायदानों पर चढाते हैं तथा इसी में अपने जीवन की पूर्णता समझते हैं। माता-पिता अपनी स्वयं की प्रगति से जितने खुश नहीं हुए उससे कहीं अधिक खुशी उन्हें अपनी औलाद की प्रगति से होती है। वे अपना सबकुछ लुटाकर भी अपनी संतान को सुख देना चाहते हैं। लेकिन दीपक रूपी संतान को सदैव यह भ्रम बना रहता है कि यह रोशनी केवल और केवल उसी की बदौलत है।

सच्चाई यह है कि दीपक एक पात्र है और किसी भी पात्र का मूल्य तभी है, जब उसकी पात्रता के अनुरूप उसमें सामान उपलब्ध हो। दीपक की पात्रता तभी सिद्ध होती है, जब उसमें स्नेह-घृत से सिंचित बहादुर बाती हो। बिना बाती के दीपक का कोई अस्तित्व नहीं। यद्यपि यह भी सच है कि बिना दीपक के बाती का भी अस्तित्व नहीं तथापि यह चिंतन करने योग्य विषय है। चिंतनोपरांत यह निष्कर्ष आता है कि ये दोनों अन्योन्याश्रित है यानी की एक दूसरे के पूरक हैं। बाती दीपक के होने को सार्थक करती है तो दीपक बाती के जीवन को पूर्णता प्रदान करता है। यहां विचारणीय यह है कि बाती रूपी अभिभावक/बुजुर्ग तो सदा यह मानते हैं कि उनकी पूर्णता उनकी औलाद के होने में ही है लेकिन औलाद जैसे-जैसे बड़ी होती है, वैसे-वैसे अभिभावकों को आफत मानने लगते हैं। दीपक रूपी संतान को यह भ्रम है कि रोशनी उसी की बदोलत है लेकिन वह हकीकत से रूबरू होगा तो पता चलेगा कि रोशनी करने में वह तो सहायक मात्र है, जलती तो बाती ही है। मतलब यह है कि हमें मिलने वाली हर सफलता में सदैव माता-पिता का त्याग एवं समर्पण मुख्य रहता है, इस तथ्य की पहचान जितनी जल्दी करलें उतना ही अच्छा है।

आज सर्वसमाज में बुजुर्गों के प्रति सम्मान एवं श्रद्धा में आने वाली कमी अत्यंत चिंता का विषय है। सजग एवं सक्रिय युवापीढी को यह मन से मानना चाहिए कि आज वे जिस उच्च स्थान पे खड़े होकर अपने माता-पिता को छोटा एवं कमतर आंक रहे हैं, वह स्थान उन्हीं माता-पिता के त्याग एवं समर्पण का परिणाम है। अतः संतान रूपी दीपक अपनी ताकत रूपी बाती का सम्मान करना सीखें। हर त्योहार हमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कुछ संकेत देता है। इस दीपावली को दीपमालिका में रोशन दीपक के संकेतों को शांतचित्त से सोचकर अपने आचार-विचार एवं व्यवहार को तदनुरूप ढालने का प्रयास करें। हमारे बुजुर्गों ने दीपक को फूंक से बंद करने को अपशकुन बताते हुए यह संकेत दिया कि दीपक को कभी भी बरबश बुझाना नहीं चाहिए, उसे अपनी सामर्थ्य के अनुरूप रोशन रहने दिया जाए। आजकल पाश्चात्य संस्कृति के पुतले बनती पीढी ने जन्मदिवस पर मोमबत्ती को फूंक से बंद करने और उस साहसिक कार्य की तारीफ करने हेतु तालियां बजाने का रिवाज चल पड़ा है, ऐसे में बच्चे दीपक को रोशन करने की बजाय फूंक लगाकर बुझाने में पारंगत होने लगे हैं। आइए इस दीपावली को यह संकल्प लें कि हम माता-पिता रूपी बाती को फूंक लगाकर अवसरवादी एवं असफल औलाद की श्रेणी में अपना नाम नहीं लिखवाएंगे। दीपावली की लख-लख बधाई।

स्नेह-तेल में स्वारथ पानी

यह बाती पावन है भाई
यह फैलाती भाव-भलाई
प्रभु ने इसको दी प्रभुताई
जिसकी महिमा कविजन गाई।

अवधपुरी की आशा बाती
उर्मिल की अभिलाषा बाती
प्रीत रीत की भाषा बाती
दुख में देत दिलासा बाती

स्नेह-तेल को अंग रमाती
दीपक का सम्मान बढ़ाती
ज्ञान-ज्योति से जग चमकाती
मूढ-तमस को दूर भगाती

दीपक को अहंकार हुआ है
छोटा सा संसार हुआ है
बाती से तकरार हुआ है
स्नेह-तेल बेकार हुआ है।

बाती ने दीपक से बोला
दिल का है रे तू तो भोला
मुझको बोझ मान मत बेटा
कुटिल-कमान तान मत बेटा

सत्य नहीं क्यों दिखता तुझको
बुझना ही है इक दिन मुझको
चंद पलों का जीवन मेरा
हो मुबारक तुझे सवेरा

जब-जब तमस डराए तुझको
वत्स याद तुम करना मुझको
स्वयं बुझूं या लोग बुझा दे
आपस में हमको उलझा दे

ऐसा सोच सिहरती बाती
दीपक से अब डरती बाती
स्नेह-तेल में स्वारथ पानी
अपनापन से आनाकानी

कैसे दीप सजेंगे बोलो
बिन बाती के, कीमत तोलो
दीपमालिका सूनी-सूनी
दुविधा देखो दूनी-दूनी

सूना दीपक सूनी बाती
सूना सावन सूनी काती
सूना तन-मन सूना जीवन
सूना ये संसारी-उपवन

आओ मिलकर दीप जलाएं
बाती का सम्मान बढ़ाएं
स्नेह-तेल को फिर सरसाएं
स्नेहमयी त्योहार मनाएं।।

~डाॅ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *