!! हरमाङा गांव के विषय में !!
वर्तमान में जयपुर शहर का नगर निगम का वार्ड बनगया हरमाङा पहले गाडण चारणों की जागिर की स्वशासन का गांव था, इस गांव की सरसता, सजलता, सम्पनता व संमृध्दता पर महाकवि हिंगऴाजदानजी कवियानें छप्पय की एतिहासिक रचना की थी जो आज की नवयुवा पीढी के अवलोकनार्थ मैं संप्रेषण कर रहा हूं !!
!! छप्पय !!
किल्ला जैम कोटङी,
दूर हूँताँ दरसावै !
बीथ्यां सहित बजार,
पार शोभा कुण पावै !
जऴ अमृत जेहङो,
केई कूपाँ कासाराँ !
बागां तणी बहार,
अजब सहकार अनाराँ !
सातही तूङ निपजैसदा,
जोङै नह सांसण जुवो !
जैसाह भूप दीधो जिको,
हरपुर जग जाहर हुवो !!
भावार्थः- किल्ले के समान पर्वत पर स्थित कोटङी दूर से ही दिखाई देती है, गलियां सहितबाजार की शोभाका पार कौन पासकता है कई कुओं व बावङियों का जऴअमृत जैसा मीठा है, बागों की अजब बहार है जहां के आम अमरूद विचित्र हैं, जहां सात ही प्रकार के धान पैदा होते है, इस गांव के जोङका कोईभी सांसण दूसरा नहींहै, यह गांव मिर्जाराजा जयसिंह जी ने दिया वह विश्व में प्रसिध्द, विख्यात हो गया !!
महाकवि की मूल्यांकन की अदभूध्द क्षमता व समष्टि थी, आज भी हरमाङा गांव की भूमि जोकि अब गज के भाव से मूल्य निर्धारण होती है यह राजस्थान के समस्त चारणों के गांवों में सबसे अधिक मूल्यवान है, यह गांव अब जयपुर महा नगर का ही हिस्सा बन गया है आवागमन के साधनों से भी व रोजगार के लिहाज से जैसी सुदृढ स्थिति इस गांव की है वैसी किसी भी चारणों के गांव की नहीं है !!
~राजेंद्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!