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हरिभक्त चारण कवि !

!! छप्पय !!
कर्मानन्द अल्लू चौरा, चंड ईसर केसो !
दूदो जीवद नरौ, नारायण मांडण बेसो !
कोल्हरू माधौदास, बहुत जिन वाणी सोहन !
अचलदास चौमुखारू, अचल सांपा हरि मोहन !
राघव उधरे राम भण, गुरु प्रसाद जग सूं जुवा !
घर घर चारण कवि घणा, इतरा तो हरि कवि हुवा !!

भावार्थः…… चारणों के घर घर में कवि हुए हैं किन्तु यह सोलह तो हरिभक्त कवि हुए हैं ये कर्मानंन्द, अलूनाथजी, चौराजी, चंडजी, ईसर दासजी, केशवजी, दूदाजी, जीवादासजी, नरा जी, नारायणजी, मांडणजी, कौल्हदासजी, माधवदासजी, अचलदासजी, चौमुखजी और सांपाजी ! यह चारण भक्त कवि भगवान का भजन कर श्रीहरि की कृपा से जगत के जंजाऴ से मुक्त हो गये। यह तो उनके नाम का स्मरण मात्र ही है !!
इन प्रसिध्द भक्तों की जीवनी को पढने पर इनके विराट व्यक्तित्व और समृध्द भक्ति आराधना सरलता सहजता परोपकार व मानवीय गुणों का निर्वहन आदि देखने को मिलता है इनमें से कई भक्तों का तो बाकायदा मंदिर स्थापन कर नित्य नैमित्य पूजनभी किया जाता है जैसे जसराणा जिला नागौर कुचामण में अलूनाथजी कविया का मंदिर है वैसे ही भादरेस जिला बाडमेर में महात्मा ईसरदास जी बारहठ का मंदिर बना है वहां भी पूजनादि की बङी अच्छी सुन्दर व्यवस्था है और गुजरात में तो ईसरदास जी के बहुत अधिक अनुयायी है वहां की बहुत सी गाङियों पर ईसरा परमेसरा का नाम लिखा पाया जाता है !!

!!चारण भगत !!
         
!! छप्पय !!
चरण शरण चारण भगत, हरि गायक एता हुवा !
चौमुख चौरा चंड, जगत ईसर गुण जाणै !
करमानन्द अरू कोल्ह, अल्ह अक्षर परवाने !
माधौ मथुरा मध्य, साधु जीवानंद सींवा !
दूदा नारायणदास, नाम मांडन नतग्रीवा !
चौरासी रूप रूपक चतुर, बरनत बानी जूजुवा !
चरण शरण भगत चारण, हरि गायक ऐता हुवा !!
चारण घर घर कवि घणा, इतना तो हरि कवि हुवा !!
कर्मानंद अरू अलू चौरा, चंड ईसर केसौ !
दूदो जीवद नरो, नरांइण मांडण बिसौ !
कौल्ह ‘र’ माधोदास, बहुत जिन बांणी सोहन !
अचलदास चौमुख अचल, सींवा हरि मोहन !
जन राघो उधारै रांम भणि, गुरु प्रसाद जग सूं जुवा !
ये चारण घरि घरि कवि घणां, इतणां तो हरि कवि हुवा !!

!! छप्पय !!
ईसर बारठ एक, दूजौ नरहर दाखूं !
तियो तेजसी अलू,जिम चौथौ भाखूं !
पंचम आसौ प्रकट, छटौ केसौ जग चावौ !
सांयां जिम सातमों, कान्ह आठमों कहावै !
नवमों हमीर जाहर नरां, दसमों माधव दासियौ !
तारजै मूझ इतरा तरण, ऐकज ‘बुधियो’ आसियौ !!
बुधजी आशिया भांडियावास, जोधपुर !!

हरि सुमरण रै हेत, वीण तुंबुरु बजाई !
हरि सुमरण रै हेत, कान्ह कह कवित कताई !
हरि सुमरण रै हेत, गीत करमानन्द गाया !
हरि सुमरण रै हेत, सहस कवि जोति समाया !
हरि सुमरण रै हेत ईसर अलू, विसन चरण जाइ वांनिया !
जिण खाल मांहि पायो जनम, पढ रै हरि प्रभू दानिया !!
प्रभूदान जी मिश्रण !!

पद पंकज सम प्रकट, सुघट पांवङियां साजै !
अगै अम्बर जां पर, रंग खाखंम्बर राजै !
जऴहऴ सूरज जेम, कान उजऴा बहु कुंडऴ !
माथै अटरौ मुकुट, करां चींपियो कमंडऴ !
भस्मी शरीर सोभित भली, गऴै नाद सैली गहर !
उपदेश मेस दादा अलू, “मानां” पर करीजै महर !!
मानदानजी कविया दीपपुरा सीकर !!

गोदङ मेहङू परम गुण, प्रिथवी किया प्रकास !
सांमि अलू कविया सरस, गाडण केशवदास !!
अलू ईसर आसकरण, माधौ मथुरा दास !
टैलै बारठ तेजसी, निज गुण भगत निवास !!
रचियता श्रध्दैय कवि अज्ञात है !!

वैकुंठ वास वुंवाह, गोविन्द रा गुण गावतां !
हेतव भगत हुवाह, अलू सरिसा ‘आदिया’ !!
रिङमलदानजी सांन्दू मिरगेसर पाली !!

हरिभक्त चारण कवि हरि सुमरण से पार उतर गये एंवं अपना नाम भक्तों की मणि माला में अमर कर गये, अपनै जीवन में इन्होने अनैकानेक चमत्कार कर दुनिया का भला किया इसिलिए इन चारण भक्तों के सिध्दान्त और विचारधारा आज भी प्रासंगिक व पूजनीय है !!

~राजेंन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!

By admin

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