मन मंदिर रा मावड़ी, करणी खोल कपाट।
सुंदर रचना कर सकूं, वरणी रूप विराट।।
छंद जात लीलावती
तो आदि अहुकारण सकल उपासण मान वधारो जोगमया।
पंचों तंत सारे त्रिगुण पसारे थिर धारा ब्राहमंड थया।
नखतर निहारिका नेम नचाया ध्रुव गगन गंगा धरणी।
नित नमस्कार नवलाख निरंतर करणी करणी जय करणी माँ।।1।।
इकवार दिनँकर अभय अचानक भिड़े व्योम पंथ शोर भया।
घमसाण समर विच बणया नवग्रह थिरे पिंगल उदगम थया।
क्रमवार गति रव पवन प्रकाश ऊर्जा आकर्षण अणणी।
नित नमस्कार नवलाख निरंतर करणी करणी जय करणी मां।।2।।
वारुणी अरुण यम बुध वृहष्पति शुकर शनि मंगल सरू।
वसणा पुनि विरद बखाणु वसुमति अष्टि सजिया सीस तरू।
शक्ति नव करोड़ मिळ तज सूर वाप तरल पुनि ठोस वणी।
नित नमस्कार नवलाख निरंतर करणी करणी जय करणी माँ।।3।।
दिवस कर रेंण चक्रधर दिनकर वणी भयंकर विकराळी।
ग्रह घोर रूप घनघोर घटा सूं तमर ढकी तूँ चिरताळी।
जळधर वर्षा कर वणी जळधरी सज्यो शीतला रूप सुणी।
नित नमस्कार नवलाख निरंतर करणी करणी जय करणी माँ।।4।।
प्राले प्रकट रच सात पयोधि जड़ चेतन जुग जीव जणी।
रचिया सूर सात सती मुनेश्वर विश चार अवतार वणी।
तूँ ही तीन काल अरू चुहन चतुर दस विंध्य जक कारण तूँ ही जनणी।
नित नमस्कार नवलाख निरंतर करणी करणी जय करणी माँ।।5।।
दिग्गज दस नवे खंड सात दिपम चतुर स्वर्ण प्राणी रचिया।
सातों छंद नवे निधि आठ सिद्धियाँ राग रसावल खट रसिया।
सोले कर कला चातुरदस विधिय धर पाताळ अम्बर धरणी।
नित नमस्कार नवलाख निरंतर करणी करणी जय करणी माँ।।6।।
अनियाद भवानी भगवती आर्या तूँ ही बनेता जगदम्बी।
हिंगलाज लक्ष्मी हँस वाहिणी ऊमा चामुंडा अंबी।
जणणी जग तात सुमंगल ज्वाला सुरकाली रुंड मुंड धरणी।
नित नमस्कार नवलाख निरंतर करणी करणी जय करणी माँ।।7।।
निंशभ विंशभ मारण नव दुर्गा चली केहर ओर हो चंडी।
आवड़ निज होय हाकड़ो उल्टयो झिली त्रेमड़ा पर झंडी।
राजल धर रूप कटण नव रोजा रक्षण धर्म राजपूत तणी।
नित नमस्कार नवलाख निरंतर करणी करणी जय करणी माँ।।8।।
वणकर विरवड़ नवघण नमतरियो तण दिन ताजा ताम तपे।
वट पांन तोड़ पकवान पुरसिया धन्य सुभट नवलाख धपे।
जलधि जळ विच वचाय जांगड़ू तुरत लिया ते ही तरणी।
नित नमस्कार नवलाख निरंतर करणी करणी जय करणी माँ।।9।।
वांकल सेणळ नागल मालण देवल परचा नेक दिया।
खोड़ल आंन बूट बेचरा ख़ूबड़ अंबर नाम ईल पर अखिया।
सीलां देमां सतरूप सभाई धारण किया रक्षण धरणी।
नित नमस्कार नवलाख निरंतर करणी करणी जय करणी माँ।।10।।
विकराल घड़ी मों गोरा बादळ सांगा ने पातल समरी।
गंगा अभयमाळ शिवाजी गोविंद की तुमने नित शाय करी।
विजल चन्द्र हास वांकल खुद तोल धड़स तलवार वणी।
नित नमस्कार नवलाख निरंतर करणी करणी जय करणी माँ।।11।।
महोदध मंझधार आद सुत माघण आरत साद पुकार अखे।
पर घर इकवार अवश धरणी पर लोहड़ी वाळी लाज रखे।
भक्ति रस भाव भणे कव भँवर विठू तुझ वरणी।
नित नमस्कार नवलाख निरंतर करणी करणी जय करणी माँ।।12।।
छप्पय
जय करणी जगतंब अंब ब्राहमंड उपाया
महुत तत्व महमाय सत्व रज तमो समाया
पांच तत्व प्रकटाय कार्य अंतःकरण कहाया
दस इंद्री दस देव प्राण स्तम्भ थपाया
परधान कर्म आठों पुरी धर्म पाप सुख दुख धरे
कर जोड़ कवि भँवर कहे करणला ऐम श्रष्ठी करे।
~कवि भंवरदान झणकली