ब्रह्मा के मरिची बेटै, मरिची कश्यप मुणां,
कश्यप के पूत, विस्ववान कहलायै है।
विस्ववान के वेवत्स, वेवत्स इक्षाकु बणै,
वीर महा नगर वो, अहोध्या बसायै है।
इक्ष्याकु कै कुक्षी अरू, कुक्षी कै विकुक्षी कहै,
विकुक्षी के बांण, ताकै अरण्य बतायै है।
अरण्य के पृथू अरू, पृथू के त्रिशूक पुणां,
त्रिशूंक के धुंधुमार, धरा पै तपायै है।(1)
कश्यप के पूत, विस्ववान कहलायै है।
विस्ववान के वेवत्स, वेवत्स इक्षाकु बणै,
वीर महा नगर वो, अहोध्या बसायै है।
इक्ष्याकु कै कुक्षी अरू, कुक्षी कै विकुक्षी कहै,
विकुक्षी के बांण, ताकै अरण्य बतायै है।
अरण्य के पृथू अरू, पृथू के त्रिशूक पुणां,
त्रिशूंक के धुंधुमार, धरा पै तपायै है।(1)
धुंधुमार युवनाश्व, जाकै मानधाता भणै,
मानधाता के सुगन्धी, ध्रुवसंधी धायै है।
ध्रुवसंधी भरत रू, भरत असीत भयै,
असीत के सुतन वौ, सगर सुनायै है।
सगर के पूत कही, साठ जो हजार सही,
असंमज अंशुमान, दिलिप उपायै है।
दिलिप के भागीरथ, महान तपसी दखै,
धाय नर मधूकर, गंगा धर लायै है। (2)
मानधाता के सुगन्धी, ध्रुवसंधी धायै है।
ध्रुवसंधी भरत रू, भरत असीत भयै,
असीत के सुतन वौ, सगर सुनायै है।
सगर के पूत कही, साठ जो हजार सही,
असंमज अंशुमान, दिलिप उपायै है।
दिलिप के भागीरथ, महान तपसी दखै,
धाय नर मधूकर, गंगा धर लायै है। (2)
भागीरथ कुकत्सथ रू, ताही के रघू जो भयै,
रघुकुल राघव कै वंश को रचायै है।
रघू के प्रबुध अरू, प्रबुध के शंख पुणां,
शंख सुदर्शन ताकै, अग्नी वर्ण आयै है।
अग्नी वर्ण के शीघ्ग, शीध्रग के मरू सुणै,
मरू के प्रशक वाके अमरीष उपायै है।
अमरीष के नहुष अरु, नहूष ययाती अखै,
ययाती नाभाग सुत, अज उपजायै है।(3)
रघुकुल राघव कै वंश को रचायै है।
रघू के प्रबुध अरू, प्रबुध के शंख पुणां,
शंख सुदर्शन ताकै, अग्नी वर्ण आयै है।
अग्नी वर्ण के शीघ्ग, शीध्रग के मरू सुणै,
मरू के प्रशक वाके अमरीष उपायै है।
अमरीष के नहुष अरु, नहूष ययाती अखै,
ययाती नाभाग सुत, अज उपजायै है।(3)
अज के दशरथ ताकै, चार पूत अवतारी,
राम भरत शैंस शत्रुघन सरसायै है।
कोशिल्या के राम अरू, भरत केकयी कहे,
शेंस लछमाल शत्रु, सुमित्रा सु जायै है।
शील वती सिया सती, पती ख्याती पायी राम,
वाकै पूत लव कुछ, प्रतापी वतायै है।
वीठू माड़वै विचार, चालीस पिढी चितार,
राम जी कवी रिझार, भमर भणायै है ।(4)
राम भरत शैंस शत्रुघन सरसायै है।
कोशिल्या के राम अरू, भरत केकयी कहे,
शेंस लछमाल शत्रु, सुमित्रा सु जायै है।
शील वती सिया सती, पती ख्याती पायी राम,
वाकै पूत लव कुछ, प्रतापी वतायै है।
वीठू माड़वै विचार, चालीस पिढी चितार,
राम जी कवी रिझार, भमर भणायै है ।(4)
–मधुकर माड़वा (भवरदानजी)